"हौसले को सलाम" लॉकडाउन की बंदिशो को उड़नछू करता बचपना
खास रपट
लॉकडाउन के इस बेहद कठिन हालात में बाल मनोविज्ञान का तुलनात्मक विश्लेषण करती एलएनआई की एक खास खबर:
- बच्चों की रचनात्मकता को मिली उड़ान
- दिल को छू गई लॉक डाउन के समय मासूमों का आत्म-अनुशासन
देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर,
कर्मयोगी बनकर कर रहे कर्म का अनुसंधान'
अनिल कुमार द्विवेदी
लोकल न्यूज़ ऑफ इंडिया।
बीजपुर, सोनभद्र।लाकडाउन के ऊब एवं अवसाद को धता बताते यह बच्चे जिस उत्साह एवं संयम के साथ मन की उमंग एवं कल्पनाओं को हकीक़त में बदलते हुए जिस प्रकार से लाकडाउन को यादगार लम्हों में बदल रहे हैं, उसी परिपेक्ष में 'जान मिल्टन' ने शायद इन्हें-Child is the father of man' की उपाधि दी होगी।
अपनी भूमिका के सजग प्रहरी यह 'बालवीर'ऐसे बेहद कठिन घोषित कारागार के समय जिस धैर्य, साहस, संयम एवं संकल्प के साथ ऑनलाइन शिक्षण द्वारा सिर्फ अपना पाठ्यक्रम ही नहीं पूरा कर रहे हैं अपितु इस परीक्षा की घड़ी में आत्म-अनुशासन का अनुकरणीय उदाहरण भी पेश कर रहे हैं।
जिस समय पूरा विश्व समुदाय जीवन संकट के अग्निपरीक्षा से गुजर रहा है तथा लाकडाउन के इस बेहद कठिन समय में बड़ों का भी विश्वास डगमगा जा रहा है उसी समय कोरोना जैसी वर्तमान सदी की भयावह त्रासदी में भी पांचवीं के छात्र
'शाश्वतदेव पांडेय'जो बड़ा होकर एक सफल डॉक्टर बनना चाहते हैं,"करो योग रहो निरोग" का सिर्फ नारा ही नहीं बुलंद कर रहे हैं अपितु जब वे योग में तल्लीन हो जाते हैं तो उनकी साधना देखते ही बनती है।
सेंट जोसेफ की क्लास टॉपर तथा बड़ी होकर आईएएस बनने का लक्ष्य लेकर चलने वाली 'अन्वीक्षा तथा अन्विता द्विवेदी' लाकडाउन की चुनौतियों से कभी झूकी नहीं अपितु और निखर कर सामने आई। इनके आर्ट,क्राफ्ट,पेंटिंग, योगा, प्राणायाम देखा तो लगा निगाहें धोखा न खा जाएं और देखते ही रह गया।
स्थानीय लिटिल किंग्डम स्कूल में 'प्रेप'के छात्र तथा बड़ा होकर पायलट बनने वाले अभिनव ने अपनी रुचियों को पूरा करके समय ब्यतीत किया उन्होंने कभी भी न तो टॉफी चॉकलेट के लिए और ना ही कभी माल एवं मार्केट जाने की जिद की। उन्होंने थोड़े में ही अपना गुजारा किया मगर मुख से चू तक नहीं की।
यस.यस.यस पब्लिक स्कूल बखरिहवा के 'रागिनी तथा अतुल दुबे' भी कोरोना के खिलाफ जंग में सिर्फ घरों में ही रह कर अपनी रुचियों का निखार करते हुए सिर्फ समय का ही सदुपयोग नहीं कर रहे हैं अपितु इनके कारनामों से बड़े भी हतप्रभ एवं अचंभित हैं।
'एलएनआई'ने जब भविष्य निर्माण में शिद्दत से जुटे इन नौनिहालों से सम्पर्क साधा तो उन्होंने अपने सराहनीय प्रयास का पूरा श्रेय अपने परिवार एवं संस्कार को दिया जिसके बल पर वे समाज में यह अनूठी नज़ीर पेश कर सके।
अंतर्निहित रचनात्मक ऊर्जा एवं फूर्ति के प्रतीक ये 'चुनौतियों के बीच निखरते सितारे'जब लाक डाउन की बंदिशों में बंधा बचपना एवं अपने अन्तःकरण की नकारात्मकता की बेड़ियां तोड़कर उन्मुक्त हवा में सांस लेने को लालायित होते हैं तो सिर्फ़ यह चुनौतियों से लड़ने का सन्देश ही नहीं देते वरन् यह 'बालयोद्धा' एक सार्थक पहल का सुखद परिणाम भी परिलक्षित कराते हैं।
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