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आखिर शिव जी को जल क्यों चढ़ाया जाता है?

आखिर शिव जी को जल क्यों चढ़ाया जाता है?



पंडित विनय शर्मा


लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया


हरिद्वार।आखिर शिव जी को जल चढ़ाने के पीछे का राज क्या है? आप संभवतः जानते हो अगर नही तो आइये आपको लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया के इस छोटी सी जानकारी से अवगत कराता हूँ। समुद्र मंथन से निकले हलाहल या कालकूट विष से जब संसार जलने लगा और सृष्टि पर संकट आ गया तो संसार के कल्याण के लिए भगवान भोलेनाथ ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया. विष शरीर में न समा जाए इसके लिए माता पार्वती ने भोलेनाथ का कंठ दबाया.


 


इस तरह विष कंठ में ही स्थिति रह गया और भगवान नीलकंठ हो गए. विष के प्रभाव से प्रभु के शरीर में जलन महसूस हुई तो ब्रह्माजी के सुझाव पर देवों ने उनके मस्तक पर जल डालकर शांत करने की कोशिश की थी. शिवजी को जल अतिप्रिय है. इसीलिए जलाभिषेक किया जाता है.


 


गंगाजी उनकी जटाओं में वास करती हैं और अमृत बरसाने वाले चंद्रमा मस्तक पर विराजते हैं. संसार में जिसे कोई धारण नहीं कर सकता, जिसका कोई आसरा नहीं बनता, भोलेनाथ उसको प्रेम से स्वीकार कर लेते हैं, इसीलिए वह नाथों के भी नाथ भोलेनाथ हैं.


 


शिवजी की आराधना पूरे वर्ष करनी चाहिए लेकिन सावन का विशेष महत्व है. महादेव को श्रावण मास सर्वाधिक प्रिय है. सावन में संसार शिवमय हो जाता है. देवतागण महादेव की स्तुति करके सभी सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति करते हैं.


 


इसलिए सुख-शांति के लिए शिवजी का अभिषेक करना चाहिए. जल के अतिरिक्त, दुग्ध, गन्ने का रस, पंचामृत, तीर्थों के जल, दही आदि से अभिषेक और हल्दी, बेलपत्र, कनेर-धतूरे, मदार आदि फूल चढाए जाते हैं फिर भी जलाभिषेक का अलग महत्व है.


 


शिवजी तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं. हर तरह के अभिषेक का विशिष्ट महत्व है, विभिन्न फल प्राप्ति के लिए सभी अभिषेक करना चाहिए फिर भी जो सर्वाधिक सुलभ है वह है जलाभिषेक, यानी शिवजी को जल चढ़ाना.


 


प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध पात्र में जल भरें. संभव हो तो कुछ गंगाजल मिला दें. फिर शिवलिंग को अच्छे से धुलकर भोलेनाथ का ध्यान करके जल अर्पित करें. शिवजी के विभिन्न अभिषेक के वैदिक मंत्र हैं किंतु उन्हें वेदपाठी ब्राह्मणों से ही कराना चाहिए.


 


सबसे सरल विधि बताता हूं- शिव पंक्षाक्षर स्तोत्र अथवा रूद्राष्टकम का सस्वर उच्चारण करते हुए शिवजी को जल चढ़ा दें. यदि ये मंत्र याद नहीं हो पाते तो ऊं नमः शिवाय का उच्चारण करें. फिर कनेर, धतूरा, बेलपत्र आदि जो भी उपलब्ध हों वह भी अर्पित करें.


 


बेलपत्र पर हल्दी अथवा पीले चंदन से ऊं लिख लेना श्रेयष्कर होता है. इसके बाद शिवालय में ही रूद्राक्ष की एक माला से "ऊं नमः शिवाय" का जप कर लें. महादेव तो इतने पर भी प्रसन्न हो जाते हैं. वह भाव देखते हैं, मंत्र आदि तो भाव के आगे गौण हो जाते हैं.


 


संभव हो तो शिवमंदिर में बैठकर पंक्षाक्षर मंत्र और रूद्राष्टकम का एक-एक पाठ कर लें. समय 5 मिनट से ज्यादा नहीं लगेगा. शिवजी का ध्यान करने और माला जप के लिए रूद्राक्ष की माला प्रयोग करें तो श्रेष्ठ होता है.


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