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आंदोलन और नारायण सहनी

अनिल प्रकाश
मुंगेर . गंगा किनारे मल्लाहों  की बहुलता वाला एक मुहल्ला है लल्लू पोखर.  बिहार के मुंगेर शहर का यह मुहल्ला मेरे लिए बहुत खास है. यह  गंगा मुक्ति आंदोलन का जिले का मजबूत केन्द्र रहा है. वहां कमली सहनी नामक बहुत जहीन इंसान थे.. अपनी जवानी के दिनों में वे समाजवादी आंदोलन में सक्रिय रहे थे. जब लोहिया  मुंगेर आते थे कमली सहनी की उनसे मुलाकात जरूर होती थी.
  मैं जब भी मुंगेर जाता तो कमली सहनी के घर के झोपड़ीनुमा कमरे में रुकता था. एक खाट कमली जी की और एक खाट पर मैं. देर रात तक उनसे बातचीत होती रहती. कमली सहनी के बेटे नारायण सहनी लम्बे कद के गठे बदन वाले बहादुर इंसान हैं. उनकी मूंछें उनके व्यक्तित्व को और भी निखारती हैं. जन नेता है और गंगा में मछलियां पकड़कर अपनी जीविका चलाते हैं. जन समस्याओं को लेकर अक्सर बीडीओ, एसपी, डीएम के पास जाते रहते हैं. कभी जुलूस लेकर तो कभी कोई प्रतिनिधि मंडल के साथ. वैसे तो नारायण सहनी एक सीधे साधे इंसान हैं लेकिन अक्खड़ और स्वाभिमानी भी हैं. कोई सरकारी अधिकारी उनकी उपेक्षा नहीं कर पाता. एकबार एक बीडीओ से मिलने गए थे. अधिकारी नया था.उसने नारायण सहनी को डांट डपट कर अपमानित करना चाहा. नारायण ने तत्काल कुर्सी उठाई और बीडीओ पर चला दिया. तब से कभी कोई अधिकारी  मिलने जाने पर उनको देर तक इंतजार नहीं कराता. एक बार एक नए डीएम ने मिलने जाने पर उन्हें काफी देर तक दफ्तर से बाहर बैठाए रखा और मिलने पर बुरी तरह पेश आए. फिर तो नारायण भी उबल पड़े. तत्काल नारायण गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें जेल भेज दिया गया. उनको छुड़ाने के लिए हमलोगों को मुंगेर में आंदोलन चलाना पड़ा, तब वे छूटे.
 एक दिन हम नारायण सहनी के घर पर थे और उनके पिता कमली सहनी से बात कर रहे थे. इसी बीच नारायण की पत्नी ने मुझे अंदर बारामदे में बुलाया और कहने लगीं- 'लोग सनी कहै छै कि तोहर मरद एतना बड़ा नेता छौ, आ तों माथा पर दौरा लेके मुहल्ला मुहल्ला किशमिश, काजू बेचै छें.  इहां त छोटे मोट नेता सब बहुते कमाइछै'.( लोग कहते हैं कि तुम्हारा पति इतना बड़ा नेता है और तुम सर पर टोकरी रखकर मुहल्ले मुहल्ले काजू, किशमिश बेचती हो. जबकि छोटे मोटे नेता भी बहुत कमा लेते हैं.)
      एक बार मुंगेर के मछुआरों की कुछ समस्या लेकर नारायण सहनी तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के यहां पटना पहुंच गए. गेट पर  उन्होंने बताया कि वे गंगा मुक्ति आंदोलन, मुंगेर के संयोजक है और लालू यादव से मिलने आए हैं. लेकिन उनको अंदर जाने से रोक दिया गया. फिर तो गेट पर नारायण  ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया. मुख्यमंत्री को जैसे ही पता चला उन्होंने नारायण को बुला लिया. ध्यान से उनकी बात सुनी और अधिकारियों को फोन करके तत्काल जरूरी निर्देश दे दिया. उनका काम हो गया. पटना से वे मुझसे मिलने मेरे घर मुजफ्फरपुर आए. मैं घर पर मौजूद नहीं था. मेरे पिताजी ने नारायण जी को नाश्ता वगैरह करवाया और नारायण ने पिताजी को मुख्यमंत्री आवास का सारा किस्सा सुनाया तो पिताजी ने पूछा कि 'मुख्यमंत्री से मिलने के लिए आपको अनिल प्रकाश की जरूरत नहीं पड़ी? '  नारायण जी ने उन्हें बताया कि ' हर बात में उनका समय बर्बाद क्यों कराएं. ऐसे साधारण से काम के लिए हमलोगों को पूरा प्रशिक्षण गंगा मुक्ति आंदोलन में मिल चुका है.
 गांव गांव में फैले ऐसे नायकों के परिश्रम और संघर्ष के जज्बे के कारण ही सन् 1982 में कहलगांव से शुरू हुआ आंदोलन पूरे बिहार के गंगा क्षेत्र में फैल गया था. उसमें लाखों स्त्री पुरुष शरीक हो गए थे  और  सन् 1990 में पांच सौ किलोमीटर की गंगा की बहती धारा में अत्याचारी और जुल्मी जलकर जमींदारी तथा ठेकेदारी व्यवस्था को उखाड़ फेंका था. बिहार की तमाम नदियों की बहती धारा में परम्परागत मछुआरों को निःशुल्क मछली पकड़ने का अधिकार  प्राप्त हुआ. तत्कालीन लालू प्रसाद यादव की सरकार को अंततः इसका फैसला करना ही पड़ा था.
लेकिन आज भी अपराधी और गुंडे मल्लाहों से छीन झपट करने से बाज नहीं आते. इसलिए संघर्ष निरंतर चल ही रहा है. फरक्का बराज के कारण गंगा और उसकी सहायक धाराओं में 80 प्रतिशत मछलियां समाप्त हो गईं.  कल कारखानों, थर्मल पावर स्टेशनों से निकलने वाले जहरीले रसायनों के कारण गंगा का पानी जहरीला होता गया. इसमें मछलियां, डौल्फिन और तमाम जीव जन्तु तथा वनस्पति समाप्त होते जा रहे है. ये सब नदियों को साफ रखते थे. इसलिए आंदोलन आज भी जारी है, आगे भी जारी रहेगा. जनादेश से साभार 


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