दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा नैतिक शिक्षा पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
दिल्ली।दिल्ली पब्लिक लाईब्रेरी द्वारा दिनांक 1 सितम्बर 2020 को जन-साधारण हेतु वेबिनार के माध्यम से नैतिक शिक्षा पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. रामशरण गौड़, अध्यक्ष, दिल्ली लाईब्रेरी बोर्ड द्वारा की गई तथा वक्ता के रूप में डॉ. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी, सदस्य, दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड उपस्थित रहे ।
डॉ. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने वेबिनार की विषय वस्तु प्रस्तुत करते हुए बताया कि मानव के आतंरिक भावों की व्यवस्था ही नैतिक शिक्षा है। यह जीवन मूल्यों के उत्थान के लिए मनुष्य को निरंतर प्रेरित करती है। यह हमें और हमारे व्यक्तित्व को मज़बूत बनाने वाले मूल्य हैं जो हमें समाज से जोड़ते हैं। उन्होंने नैतिक शिक्षा को समाज सुधार की प्रथम सीढ़ी बताते हुए कहा कि एक नैतिक व्यक्ति हर क्षेत्र व परिस्थिति में अच्छा आचरण, बेहतर कार्य ही करता है और एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान देता है । उन्होंने बताया कि पहले के समय में माताओं के द्वारा कहानियों के माध्यम से बच्चों के मन और मस्तिष्क में नैतिक मूल्यों का संचार किया जाता था परन्तु समय के अभाव में अब यह कार्य मशीनों द्वारा किया जा रहा है जिससे उनमें नैतिक मूल्यों का संचार नहीं हो पा रहा है। बच्चों में नैतिक मूल्यों को विकसित करने हेतु बाल साहित्य की अत्यंत आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने बताया कि जब तक हमारे कार्यों, आचरण एवं व्यवहार में नैतिकता नहीं आयेगी तथा उसका बोध नहीं होगा, तब तक नैतिकता का संचार, नियमों और कानूनों का सही ढंग से पालन नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमें खुद का आंकलन व मूल्यांकन करना भी अति आवश्यक है। साथ ही उन्होंने लघु कहानियों के माध्यम से नैतिकता का बोध करवाया और अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने नैतिक मूल्यों का बीजारोपण करने, उनका समाज में विस्फोट करने का आव्हान किया।
डॉ. रामशरण गौड़ ने अपना अध्यक्षीय भाषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि मशीनीकरण के कारण संस्कार में हीनता जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती जा रही हैं। उन्होंने बताया कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करने का आव्हान कर रहे हैं ऐसे ही संस्कृति के मामले में भी आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है। हम पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होकर हमारे आतंरिक मूल्यों को त्याग कर बाहरी चमक धमक को अपना रहे हैं जिससे हमारी अर्थ प्रधान संस्कृति का उत्थान होता जा रहा। शिक्षा का उद्देश्य होता है कि मानव को सही अर्थों में मानव बनाया जाये। उसमें आत्मनिर्भरता की भावना को उत्पन्न कराया जाये, चरित्र निर्माण कराया जाये परन्तु आज यह सब केवल पूर्ति के साधन बनकर रह गये हैं। नैतिक मूल्यों का निरंतर ह्रास किया जा रहा है। पहले के समय में माता पिता बच्चों की जिज्ञासा को संवाद द्वारा पूरा किया करते थे जबकि आज के समय में यह संवाद समाप्त हो गए हैं। आज समय के अभाव में बच्चों की जिज्ञासा की पूर्ति करने की बजाय उन्हें मोबाइल फ़ोन दे दिए जा रहे हैं ताकि वह उसमें व्यस्त रहे जिससे उनका संपोषणीय विकास नहीं हो पा रहा है। उन्होंने अपने जीवन वृतांत द्वारा भी श्रोताओं को नैतिकता का भावबोध करवाया और सभी श्रोताओं से बच्चों को पंचतंत्र की कहानियों, उनके पात्रों से आत्मसात करवाने का आव्हान किया।
अंत में श्री आर. के. मीणा, पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया ।
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