एक स्वामी का जाना
अंबरीश कुमार
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
स्वामी अग्निवेश नहीं रहे .वे सन्यासी थे .घर परिवार से कोई मतलब नहीं रहा .समाज के लिए जीते थे .समाज के लिए लड़ते भी थे .समाज भी उनसे कई बार लड़ भिड जाता था .पर वे कभी बुरा नहीं मानते थे .पिछली मुलाक़ात तो रामगढ़ में ही हुई जब वे घर आये थे .फिर आने को कह गए थे .पर कब कौन चला जाए क्या पता .कोरोना की वजह से उनकी जान चली गई .अपना संबंध अस्सी के दशक से था .इस दशक के मध्य से ही दिल्ली आना जाना शुरू हुआ और फिर जनसत्ता से जुड़ गया .वर्ष 1988 से जनसत्ता में अपना लिखना पढना आंदोलन से जुड़े लोगों से ज्यादा रहा .खासकर बिहार उड़ीसा उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में आंदोलन में जुटी जमात से .इनपर लिखा भी खूब .किसान आदिवासियों पर भी इसी दौर में स्वामी अग्निवेश से मुलाक़ात हुई .अस्सी के दशक के अंतिम दौर से .बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने तब हरियाणा में बंधुआ बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था . जनसत्ता की तरफ से इसकी कवरेज की जिम्मेदारी मुझे दी जाती थी .कैलाश सत्यार्थी को अग्निवेश सुबह सुबह घर भेजते थे .26 आशीर्वाद एपार्टमेंट पटपड़ गंज दिल्ली .यही अपना ठिकाना था .इसी ठिकाने पर कैलाश सत्यार्थी सुबह सुबह पहुंचते और याद दिलाते कि स्वामी जी ने आपसे बात की थी . एक पुरानी जीप के साथ जिससे हम आगे जाते .फिर उस खटारा जीप से हरियाणा की यात्रा होती .बंधुआ मजदूरों को छुडाने के अभियान की कवरेज करना होता था .एक दो बार तो हमले में बाल बाल बचा भी .पर आंदोलन आदि अगर आप कवर करते है तो इसके लिए तैयार रहना चाहिए .बस्तर में मेधा पाटकर के साथ जब यात्रा कर रहा था हमला तो तब भी हुआ था .यह सब पत्रकारों के कामकाज का हिस्सा होता है .खैर स्वामी अग्निवेश के निधन की खबर मिलते ही यह सब दृश्य सामने आ गए .
पिछली बार वे घर आये तो यह सब उन्हें भी याद आया .अब तो कैलाश सत्यार्थी बड़े लोगों में शामिल है .पर पहले वे सामान्य कार्यकर्त्ता थे स्वामी अग्निवेश उनके गुरु थे .पर गुरु शिष्य परम्परा अब कहां बची .दो साल पहले वे पहाड़ पर घर आये .वे मुंशियारी से लौटे थे और कई पुराने किस्से बताये .प्रणब मुखर्जी कोलकाता विश्विद्यालय में ला की पढ़ाई में इनके एक साल जूनियर थे ,यह जानकारी भी प्रणब मुखर्जी ने उन्हें दी थी बहुत समय पहले .खैर इससे पहले लखनऊ में इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर में वे मिलने आये जब राम जेठमलानी को वे चुनाव लड़ा रहे थे .खबर तो लिखता ही रहता था पर स्वामी अग्निवेश का असर अपने पर भी रहा .वे आर्यसमाजी रहे और बदलाव की राजनीति में बढ़ चढ़ हिस्सा लेते रहे .उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी चुनाव से पहले वे फिर आये देर तक चर्चा की और कहा राज्य में शराब बंदी को लेकर राजनीतिक दलों को घोषणा करनी चाहिए .पर यह संभव नहीं हुआ .हरियाणा की राजनीति से लेकर देश में बदलाव की राजनीति तक वे लगातार सक्रिय रहे .किसान आंदोलन से लेकर जन आन्दोलनों में भी उनकी बड़ी भूमिका थी .विवाद भी हुए पर विवाद से उनके योगदान को कम कर नहीं आंका जा सकता है .बहुत याद आएंगे स्वामी अग्निवेश .
फोटो रामगढ़ की . जनादेश
स्वामी अग्निवेश नहीं रहे .वे सन्यासी थे .घर परिवार से कोई मतलब नहीं रहा .समाज के लिए जीते थे .समाज के लिए लड़ते भी थे .समाज भी उनसे कई बार लड़ भिड जाता था .पर वे कभी बुरा नहीं मानते थे .पिछली मुलाक़ात तो रामगढ़ में ही हुई जब वे घर आये थे .फिर आने को कह गए थे .पर कब कौन चला जाए क्या पता .कोरोना की वजह से उनकी जान चली गई .अपना संबंध अस्सी के दशक से था .इस दशक के मध्य से ही दिल्ली आना जाना शुरू हुआ और फिर जनसत्ता से जुड़ गया .वर्ष 1988 से जनसत्ता में अपना लिखना पढना आंदोलन से जुड़े लोगों से ज्यादा रहा .खासकर बिहार उड़ीसा उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में आंदोलन में जुटी जमात से .इनपर लिखा भी खूब .किसान आदिवासियों पर भी इसी दौर में स्वामी अग्निवेश से मुलाक़ात हुई .अस्सी के दशक के अंतिम दौर से .बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने तब हरियाणा में बंधुआ बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था . जनसत्ता की तरफ से इसकी कवरेज की जिम्मेदारी मुझे दी जाती थी .कैलाश सत्यार्थी को अग्निवेश सुबह सुबह घर भेजते थे .26 आशीर्वाद एपार्टमेंट पटपड़ गंज दिल्ली .यही अपना ठिकाना था .इसी ठिकाने पर कैलाश सत्यार्थी सुबह सुबह पहुंचते और याद दिलाते कि स्वामी जी ने आपसे बात की थी . एक पुरानी जीप के साथ जिससे हम आगे जाते .फिर उस खटारा जीप से हरियाणा की यात्रा होती .बंधुआ मजदूरों को छुडाने के अभियान की कवरेज करना होता था .एक दो बार तो हमले में बाल बाल बचा भी .पर आंदोलन आदि अगर आप कवर करते है तो इसके लिए तैयार रहना चाहिए .बस्तर में मेधा पाटकर के साथ जब यात्रा कर रहा था हमला तो तब भी हुआ था .यह सब पत्रकारों के कामकाज का हिस्सा होता है .खैर स्वामी अग्निवेश के निधन की खबर मिलते ही यह सब दृश्य सामने आ गए .
पिछली बार वे घर आये तो यह सब उन्हें भी याद आया .अब तो कैलाश सत्यार्थी बड़े लोगों में शामिल है .पर पहले वे सामान्य कार्यकर्त्ता थे स्वामी अग्निवेश उनके गुरु थे .पर गुरु शिष्य परम्परा अब कहां बची .दो साल पहले वे पहाड़ पर घर आये .वे मुंशियारी से लौटे थे और कई पुराने किस्से बताये .प्रणब मुखर्जी कोलकाता विश्विद्यालय में ला की पढ़ाई में इनके एक साल जूनियर थे ,यह जानकारी भी प्रणब मुखर्जी ने उन्हें दी थी बहुत समय पहले .खैर इससे पहले लखनऊ में इंडियन एक्सप्रेस के दफ्तर में वे मिलने आये जब राम जेठमलानी को वे चुनाव लड़ा रहे थे .खबर तो लिखता ही रहता था पर स्वामी अग्निवेश का असर अपने पर भी रहा .वे आर्यसमाजी रहे और बदलाव की राजनीति में बढ़ चढ़ हिस्सा लेते रहे .उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी चुनाव से पहले वे फिर आये देर तक चर्चा की और कहा राज्य में शराब बंदी को लेकर राजनीतिक दलों को घोषणा करनी चाहिए .पर यह संभव नहीं हुआ .हरियाणा की राजनीति से लेकर देश में बदलाव की राजनीति तक वे लगातार सक्रिय रहे .किसान आंदोलन से लेकर जन आन्दोलनों में भी उनकी बड़ी भूमिका थी .विवाद भी हुए पर विवाद से उनके योगदान को कम कर नहीं आंका जा सकता है .बहुत याद आएंगे स्वामी अग्निवेश .
फोटो रामगढ़ की . जनादेश
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