"मानवता पर लगा धब्बा"
"जिंदगी पर आई आंच"
- "मानकों का उल्लंघन,घटिया एवं सस्ते सामानों से निर्मित तथा 'विकास को ठेंगा दिखाता' "बिच्छी नदी" पर बना पुल हुआ ध्वस्त!
- "जान हथेली पर रखकर" मौत से आंखों में आंख डालकर,गले तक पानी से स्कूल जाने को मजबूर हुए मासूम बच्चें।
- 'जनता की टूटती खामोशी के बीच हुई यह चूक- "प्रशासनिक अधिकारियों,जनप्रतिनिधियों की "भूमिका पर लगा सवाल"!
- "योजना एवं गंभीरता के स्पष्टता" अभाव में असाधारण परिस्थितियां बन रहीं मौत की वजह!
- "अहंकार के नशे में चूर" व्यवस्था पर टूटा जनता का मौन, "हिल उठा पिंडारी" आने वाले तूफान का हुआ इशारा ?
साधना द्विवेदी
लोकल न्यूज आफ इंडिया
पिंडारी,सोनभद्र।शाइनिंग इंडिया तथा ग्लोबल लीडरशिप के नेतृत्व के दावे के बीच जहां एक ओर जन-समस्याओं का त्वरित हल निकालने में तत्पर केंद्र एवं राज्य सरकार गांवों में "बदलाव की नई बयार बहा रही है तो वहीं "चौंकाने वाली खबरों के बीच"बजटीय अड़चनों या प्रशासनिक उदासीनता का द्योतक ग्राम सभा "पिंडारी" के बिच्छी नदी का टूटा पुल 'तस्वीर का दूसरा पहलू' भी साझा कर रही है, जहां 'बदनियत का परिणाम' तथा नकारात्मक उदासीनता के बीच 'दुर्व्यवस्था की यह पीड़ा' सरकारी फाइलों से ज्यादा विद्यालय जाते "नौनिहालों मासूम बच्चों" तथा नौकरी पेशा लोगों को है जो गर्दन तक पानी तथा सवारियों के अभाव में प्रतिदिन 10 से12 किलोमीटर पैदल जाने की मजबूर भरी कल्पना मात्र से ही तड़प उठते हैं।
दुर्घटना से 'कांप उठने वाले अन्देशों के बीच'आज जब फिर खतरनाक स्तर तक पहुंची नदी पार करते समय डूबते हुए "गिरधारी यादव"तथा "रामा यादव" को बचाने के साथ ही "रौद्र- रुप" में आए ग्रामीणों का धैर्य जवाब दे दिया। जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने वाले "व्यवस्था के खिलाफ" नदी के पास 'सच्चाई का दुहाई' देता भारी जन सैलाब उमड़ पड़ा तथा आक्रोशित ग्रामीणों ने सरकार विरोधी नारे भी लगाए।
"लोकल के लिए वोकल" की अपील करते असंतुष्टों की बढ़ती तादाद के बीच क्षुब्ध ग्रामीणों ने "बदनियति की धृष्टता"को जवाब देते हुए स्वयं पहल करके "प्रतीकात्मक रूप"से तुरंत अस्थाई पुल का निर्माण भी किया।
"जोखिमों से लबरेज हुई चुनौतियों के बीच" मौके पर उपस्थित "ज्ञान चंद्र यादव" (समाजवादी पार्टी लोहिया वाहिनी पिछला प्रकोष्ठ अध्यक्ष), वासुदेव यादव,भीमसेन जायसवाल(क्षेत्र पंचायत सदस्य ग्राम सभा पिंडारी) बबलू यादव, प्रदीप सिंह, रमेश पनिका ने "अच्छे दिन आने के इंतजार के बीच"इस व्यापक जनहित के कार्य पर रणनीति के तहत "प्रशासनिक चुप्पी का कारण" पूछने के साथ-साथ चुनौतियों का सम्यक पहचान करते हुए "चेतावनी भरे लहजे में"सतर्कता के साथ व्यवस्था निर्माण का तत्काल अनुरोध किया कहीं ऐसा ना हो जाए कि हवा का रुख देखते हुए 'अनसुनी फरियाद के बीच' "मुंहतोड़ जवाब"देने को तैयार जनता व्यवस्था के "ताबूत की आखिरी कील" भी ठोकने को मजबूर ना हो जाए क्योंकि...
"जनता को ठगती" इन व्यवस्थाओं के खिलाफ "एलएनआई" के सभी रिपोर्टरों के लिए चीफ एडिटर"विजय शुक्ला"का आत्मकथ्य याद आ गया कि...
सच कहने की हिम्मत रखते है
हम,
दुनियादारी की कला नहीं रखते।
आवाज तल्ख है तीखी है तो है क्योंकि,
हम दो स्वर वाला गला नहीं रखते।
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