विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
दिल्ली. कितनी अजीब बात हैं आज मोदी जी के प्रति शत प्रतिशत वफादार भाजपाई बड़ी असमंजस में हैं और मानो आगे कुआँ पीछे खाई वाली कहावत इन्ही के लिए बनायी गयी हो। एक तरफ जहां किसान बिल को लेकर किसान सड़क पर हैं और ज्यादातर खेती किसानी से जुड़े लोगो के मोदी जी के पीछे पीछे भक्त तो बन गए पर आज जब वो अपने परिवार के लोगो को सड़क पर देख रहे हैं तो उनका साथ देना चाहते हैं और शायद दे भी रहे हैं। वही दुसरी और सोशल मीडिआ पर धारदार पोस्ट करने वाले इन भाजपाई रण बांकुरो के होश फाख्ता हैं और यह ना तो किसान बिल के समर्थन में लिख पा रहे हैं ना विरोध कर पा रहे हैं। क्योकि विपक्ष में लिखे तो भाजपा सख्त और पक्ष में लिखे तो किसान तल्ख।
अब ज़रा उनके बारे में सोचिये जो पंजाब और हरियाणा में हैं उन की हालत तो और खराब हैं क्योकि किसान उनके घर बार को ढूंढकर कही उनके चौखट पर तालाबंदी ना कर दे। अब जिनको चुनाव लड़ना हैं वो ना तो पार्टी के विरुद्ध जा सकते हैं और ना किसानो के। बस वो इन्तजार कर रहे हैं कि कोई करिश्मा हो और किसान वापस चले जाय क्योकि उनको यह पता हैं कि मोदी जी तो बिल वापस लेने से रहे।
इधर किसानो के साथ अब धीरे धीरे आम आदमी भी जुड़ने लगा हैं क्योकि पेट का भरना सबको अच्छा लगता हैं और रही बात कुछ लोगो की जो शायद अपनी अपनी बॉलकनी में पुदीना उगाने को ही खेती करना मान बैठे हैं तो ऐसे किसानो और उनके नेताओ से सरकार लगातार बात कर रही हैं और वो सरकार की बात पर खुश हो रहे हैं पर डर तो वो भी रहे हैं कही किसान उनकी नेतागीरी का जनाजा ना निकला बैठे।
क्या सच में सरकार और सियासत किसान बिल के सहारे अन्नदाताओ के घर के चूल्हे का मालिकाना हक़ उद्योगपतियों के हाथो दे रही हैं या वास्तव में किसानो को मालामाल करने का काम कर रही हैं। सोच हो सकता हैं ऐसी हो पर करनी में तो सब गुड़ गोबर ही हैं। रही बात किसान आंदोलन की तो इस बार किसान मूड में हैं और खाली भी। पर सरकार ने मानो कानो में रुई डाल ली हो और किसानो के दुःख दर्द को साइड में रखकर चुनाव और नए साल के आयोजनों में मस्त हैं।
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