मनुष्य को उसका अस्तित्व पता चल जाए तो सारे झगड़े समाप्त हो जाए
गणेश वैद
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
हरिद्वार । महाकुंभ पर्व में देश के कोने कोने से आए संतो के बीच निरंजनी अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी सोमेशवरानंद जी ने अपने कनखल स्थित आश्रम पर मानव जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण विषय "मानव का अस्तित्व व उसकी खोज " को छुआ । जिस पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आज मनुष्य को पता ही नहीं की वो है कौन उसका अस्तित्व क्या है और यदि ये पता चल जाए तो सारे झगड़े ही समाप्त हो जाए । उन्होंने चार प्रकार की योनियों का जिक्र किया जिसमे
जरायुज (गर्भ से जन्म लेने वाले),अंडज(अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी) स्वदेज(मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न) व उदि्भज़(पृथ्वी से उत्पन्न)
उन्होंने कहा कि प्रत्येक मानव के लिए ईश्वर को पाने का रास्ता भी एक है और वह रास्ता सबके अंदर है। संसार में मनुष्य का जन्म एक विशेष उद्देश्य के तहत हुआ है। इस संसार में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसके अंदर सोचने, समझने और पूर्वानुमान की शक्ति है वरना मनुष्य और जानवर में ज्यादा फर्क नहीं है उक्त बातें स्वामी सोमेशवरानंद जी ने अपने कनखल स्थित आश्रम में उपस्थित भक्तो के बीच ये बाते कही उन्होंने कहा कि प्रत्येक कण में परमात्मा का अक्ष है। उसे देखने के लिए लोभ एवं लालच का मुखौटा उतारने की आवश्यकता है। लोभ, लालच एवं ईष्या का त्याग करने से मनुष्य का जीवन सरल हो जाता है। वह प्रत्येक प्राणी से प्रेम करने लगता है। उन्होंने कहा कि जब भी भगवान ने धरती पर जन्म लिया है, उन्होंने संसार को प्रेम के मार्ग पर अग्रसर होने का संदेश दिया है। प्रेम के मार्ग पर अग्रसर होने से जीवन की सभी कठिनाइयां स्वयं ही दूर हो जाती हैं। सतगुरु हमारे मार्ग दर्शक होते हैं। हमें उनके प्रत्येक कथन को आदेश मानकर उसका पालन करना चाहिए। ऐसा करने से हमारा जीवन सरल हो जाता है।
सनातन का अर्थ समझाते हुए स्वामी जी ने कहा कि "जो समाप्त ही नहीं हुआ वहीं सनातन है" अर्थात सनातन का नाम ही है कभी ना मिटने वाला इसलिए हमारा धर्म जिसे हम सनातन धर्म कहते है उसका मूल भी यही है कि आज विश्व का सबसे प्राचीन व सबसे बड़ा धर्म सनातन धर्म है जिसके मूल में ही इंसान का अस्तित्व छुपा है । उन्होंने उसी सनातन धर्म व सनातन संस्कृति की रक्षा व प्रचार प्रसार पर भी जोर दिया
व्यावहारिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इंसान अपनी आत्मा को शुद्ध कर जप, ध्यान दृष्टि योग की क्रिया करता है तो इंसान की आत्मा में एक ज्योति प्रज्वलित होती है।जिससे इंसान के सारे दुख व कष्ट का अंत होने लगता है। क्योंकि इंसान अपने अंदर से सूखी और दुखी होता है। हमें व्यवहारिक जीवन जीना चाहिए। कई बार हम छोटी-छोटी बातों को लेकर आपस में झगड़ना शुरू कर देते हैं। इससे ईष्या की भावना प्रबल होने लगती है। ईष्या अशांति का कारण बनती है। छोटी-छोटी बातों को मन में कभी नहीं रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि सतगुरु मनुष्य को जीवन जीने का राह दिखाते हैं। मनुष्य को निस्वार्थ भाव से स्वयं को उनके चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। निस्वार्थ भाव से की गई सेवा विशेष फलदायी होती है।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक कण में परमात्मा का अक्ष है। उसे देखने के लिए लोभ एवं लालच का मुखौटा उतारने की आवश्यकता है। लोभ, लालच एवं ईष्या का त्याग करने से मनुष्य का जीवन सरल हो जाता है। वह प्रत्येक प्राणी से प्रेम करने लगता है। उन्होंने कहा कि जब भी भगवान ने धरती पर जन्म लिया है, उन्होंने संसार को प्रेम के मार्ग पर अग्रसर होने का संदेश दिया है। प्रेम के मार्ग पर अग्रसर होने से जीवन की सभी कठिनाइयां स्वयं ही दूर हो जाती हैं। सतगुरु हमारे मार्ग दर्शक होते हैं। हमें उनके प्रत्येक कथन को आदेश मानकर उसका पालन करना चाहिए। ऐसा करने से हमारा जीवन सरल हो जाता है।
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