अगर पहचान पत्र की पुष्टि के बाद अगूंठा सही से दबा कर मतपत्रों पर लगाया गया होगा तो वो मान्य होगा। और जनपद के सभी मतगणना केन्द्रो पर मान्य होगा - एडीएम सोनभद्र
विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
सोनभद्र , दिल्ली। हजार किलोमीटर दूर बैठे बैठे मुझे मेरे टोली ने खबर दी की इस बार चुनाव में ज्यादातर भोले भाले आदिवासी अगूंठा ठोककर चले आये हैं और ना जाने कितने प्रधान , पंचायत सदस्य , जिला पंचायत सदस्य का भविष्य इन अंगूठो के सहारे निपट जाय अगर यह सब अमान्य करार दिए जाय।
सोनभद्र हैं सब कुछ जायज हैं पर जब अंगूठा लगाने और उसकी वजह से उदास आदिवासी मतदाताओं का दुःख पता चला जिन्होंने वाकई में यह आखिरी रात को और ज्यादा दर्द भरी बनाने के लिए काफी था खासकर उन उम्मीदवारों के लिए जिनको इन अंगूठे के मालिकानों से बस इस घड़ी के लिए उम्मीद थी क्योकि इन आदिवासी अंगूठा धारको का मालिकाना हक़ कल के बाद से फिर पांच साल के लिए इन्ही प्रधान जी और पंचायत जिला पंचायत सदस्य लोगो की कृपा पर निर्भर करेगा और उनका अंगूठा तो आपको पता हैं कि कब लगेगा ?
इसी उंहापोह की स्तिथि को सुलझाने का काम करने के लिए हमने डीएम सोनभद्र साहब की घंटी बजाने की कोशिश की जो इस कोरोनाकाल में योगी जी की सशक्त व्यवस्था की पहली बड़ी उम्मीद हैं तो उम्मीद के मुताबिक़ ही सही और उनकी व्यस्तता के बावजूद चौथी पांचवी बार में फ़ॉर्वर्डेड नम्बर को उठा ही लिया गया क्योकि सवाल लोगो की जान जोखिम में डालकर कराई गयी पंचायती व्यवस्था से था तो मैंने भी थोड़ा ज्यादती कर ही ली वर्ण औक्सीजन , बेड और अस्पताल की मदद के लिए इन लोगो से कोई उम्मीद नहीं खासकर मुझे। जो दिन भर में योगी जी के सभी डीएम साहब लोगो को फोन कर ही लेता होगा चार पांच बार किसी ना किसी की मदद को लेकर। बस अपवाद के रूप में राजलिंगम साहब थे जो फोन उठाते जरूर थे। बहरहाल अब शिकायत की बात अगली खबरों में की जाय तो बेहतर हैं।
एडीएम साहब ने डीएम साहब की फ़ॉर्वर्डेड कॉल को उठाया और मैंने उनको अपना परिचय देने के साथ साथ सीधा सा सवाल किया कि साहब इन अंगूठो का क्या होगा जो स्टाम्प की जगह लगा दिए गए हैं इन आदिवासी या ग्रामीण मतदाताओं के द्वारा। उस पर एडीएम साहब का सीधा जबाब था कि अगर पहचान पत्र की पुष्टि के बाद अगूंठा सही से दबा कर मतपत्रों पर लगाया गया होगा तो वो मान्य होगा।
मैंने और स्पष्ट करते हुए पूछा कि क्या यह जनपद की सभी मतगणना केन्द्रो पर मान्य होगा तो उनका जबाब था हाँ।
तो भैया भले ही इन ग्रामीण और पंचायती व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी आदिवासी मतदाताओं को किसी ने स्टाम्प लगाने की बात न बतायी हो और उन्होंने गलती से अंगूठा ही ठोंक दिया था अपने अपने उम्मीदवारों के भविष्य वाले बैलट पेपर पर वो अब सब जायज होगा। अब यह अलग बात हैं की अँधेरे में कुछ लोग अंगूठा बिना देखे ही ठोंक आये हैं तो उनका राम भला करे।
अब इस खबर से मुझे भी थोड़ा चैन मिलेगा क्योकि यह सीधे सादे भोले भाले मेरे अपने गाँव माटी की अस्मिता की रक्षा करने वाले आदिवासियों की जान जोखिम में डाल अंगूठा लगाने की कोशिश किसी काम आ जाएगी। और साथ में उम्मीदवारों को भी यह आखिरी रात थोड़ी हलकी लगेगी पर यह सबको मालूम हैं क्योकि यह तो रामानंद सागर के राम रावण युद्ध की रात वाले वो बोल याद आ रहे हैं कि यही रात अंतिम यही रात भारी नहीं पता तो व्हाट्सप्प पर घूम रहे यह वीडियो सुनिए और आनंद लीजिये।
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