विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
ना जाने क्यों आज बेबस रामबिलास पासवान याद आ गए . चिराग की प्रेस कांफ्रेंस भी जरूरी थी और अपने परिवार के लोगो और कुछ मौजूदा सांसदों का अलग होकर राजनीतिक आपदा को अवसर में बदलने का यह खेल तोड़ने समझने और समझाने का शायद यह वक़्त सही हैं। जाहिर सी बात हैं कि चिराग एक अच्छे बच्चे की तरह पेश आये भले ही रामबिलास पासवान की भीख में दी गयी राजनीतिक औकात को शायद उनके चाचा नहीं पचा पाए और उन्होंने मौके का फायदा उठाना ही चाहा।
चिराग का पार्टी और परिवार को एक साथ एकजुट रखने का पूरा प्रयास शायद सफल नहीं रहा तब शायद कही जाकर प्रेस कांफ्रेंस करने का निर्णय लिया होगा क्योकि पार्टी जरूरी हैं तो पार्टी के संविधान के आधार पर अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी यह भगोड़े तो तय नहीं करेंगे। अब चिराग की यह बात शायद कोई और समझ सके कि लोकसभा स्पीकर अपने अधिकार को आपदा में अवसर वाला पूरा मौका न गंवाते हुए नेता का चयन संसदीय व्यवस्था में कर दिया गया। जबकि चिराग की माने तो वो चाचा को संसदीय दाल का नेता बना ही देते। पर इनके चाचा ने शायद अब तक रामबिलास पासवान के इस खून को समझने में नाकाम रहे।
अब सोचने वाली बात यह हैं कि नीतीश की चरण वंदना न करने का जो फैसला चिराग ने लिया था शायद वो जायज था क्योकि ना सिर्फ बिहार की जनता ने चिराग के इस फैसले का समर्थन किया वो काबिले तारीफ हैं और शायद नीतीश की हार के पीछे मोदी के इस हनुमान का ही हतः रहा होगा। बहरहाल चिराग अब यह जानते हैं कि वो एक कानूनी लड़ाई में प्रवेश कर चुके हैं और शायद लम्बे समय के बाद चिराग पासवान को जीत हार के रूप में परिणाम मिले लेकिन शायद अब वक़्त आ गया हैं कि चिराग पासवान को अपने पिता के द्वारा रखे गए सभी राजनीतिक नीतियों को मशाला बनाकर जलाये। रही बात चाचा लोगो की तो इस अफीम का असर उनपर से जनता आने वाले समय में उतार देगी।
शेर का बेटा हूँ कहकर चिराग पासवान ने अपने पिता गयी बेहतरीन राजनीतिक जमीन पर अपने वारिश होने का ना सिर्फ हक़ जताया बल्कि शायद यह सही भी था क्योकि रामबिलास पासवान को अगर कोई मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था तो उसके पीछे उनकी राजनीतिक नब्ज पकड़ने की उनकी अपनी बेहतरीन समझ थी। रही बात पार्टी के प्रदेश की राजनीती में पकड़ की तो चिराग देर सबेर इस पर अपना एकाधिकार साबित भी कर सकते हैं पर यह तय मानिये की अगर चिराग वास्तव में राजनीतिक जमीन पर अपने पिता की धमक को बैठाना चाहे तो उनको जमीन से उतारकर जनता से संवाद करना होगा टकराव की पॉलिटिक्स तो राम बिलास पासवान से आज तक कोई नहीं कर पाया था तो चिराग से कोई क्या ही कर पायेगा।
यह नया खून रामबिलास पासवान की वारिश होने के साथ साथ नयी सोच वाली राजनीती को भी समझती हैं। बस अब देखना यह हैं कि आलोचना का जबाब देने में क्या चिराग अपना वक़्त जाया करेंगे या राजनीतिक बिसात पर अपने और अपनों को तोड़ने की कोशिश में जुटे लोगो को निपटाने के लिए जनता में उनको उखाड़ फेकने की कवायद के साथ करेंगे। यही शायद उनकी आने वाली राजनीतिक यात्रा को उनकी पैतृक राजनीतिक जमीन का असली वारिस मानेगा।
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