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आज से पितृपक्ष हो रहा आरंभ, जाने श्राद्ध की तिथियां और संपूर्ण विधि



प्रिया पटवाल

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया 

प्रयागराज ।शास्त्रानुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष आरंभ होता है जो अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक अर्थात् पूरे 16 दिनों तक मनाए जाते हैं जो 06 अक्टूबर तक है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों से संबंधित कार्य करने पर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। सनातन धर्म में पितृ गण देवतुल्य माने ग्रे हैं।  


आचार्य धीरज द्विवेदी "याज्ञिक" जी ने बताया कि पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण एवं श्राद्ध नहीं करने पर पितृदोष लगता है। पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध करना चाहिए । यदि किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर सबका श्राद्ध करना चाहिए। अमावस्या पितरों की तिथि है अतः आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या को सर्व पितृश्राद्ध योग होता है।

पितृपक्ष की महत्त्वपूर्ण तिथियां


पंचांग के अनुसार इस वर्ष पितृपक्ष आज 20 सितंबर से शुरू हो रहा है जो कि 6 अक्टूबर को समाप्त होगा।


पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर ।

प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर ।

द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर ।

तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर ।

चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर ।

पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर ।

षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर ।

सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर ।

अष्टमी श्राद्ध - 29 सितंबर ।

नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर ।

दशमी श्राद्ध – 1 अक्तूबर ।

एकादशी श्राद्ध – 2 अक्टूबर ।

द्वादशी श्राद्ध - 3 अक्टूबर ।

त्रयोदशी श्राद्ध – 4 अक्टूबर ।

चतुर्दशी श्राद्ध - 5 अक्टूबर ।

अमावस्या श्राद्ध - 6 अक्टूबर ।


श्राद्ध विधि


किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के सानिध्य में ही श्राद्ध कर्म (पिंडदान,तर्पण) करवाना चाहिए।

श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान देना ही चाहिए साथ ही यदि किसी गरीब,जरूरतमंद को भी दान दिया जाय सहायता की जाय तो बहुत पुण्य मिलता है।

इसके साथ-साथ गाय,कुत्ता,कौवा चींटी आदि पशु-पक्षियों एवं जीवों को भी भोजन का एक अंश देने से पितरों को तृप्ति होती है।

यदि संभव हो तो गंगा जी एवं किसी तीर्थ में श्राद्ध कर्म करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए।भोजन के बाद वस्त्र, दक्षिणा आदि देकर ब्राम्हणों को संतुष्ट करना चाहिए।

आचार्य धीरज द्विवेदी याज्ञिक जी ने बताया कि श्राद्ध की क्रिया मध्याह्न काल (दोपहर) में करनी चाहिए।योग्य ब्राह्मण की सहायता से गोत्र,नाम,एवं पूर्वजों के नाम संबंध सहित सविधि मंत्रोच्चारण पूर्वक जल से तर्पण एवं श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध एवं तर्पण में काला तिल,कुश,सफेद पुष्प,सफेद चंदन,तुलसी पत्र,गंगा जल,पलाश पत्र का अवश्य प्रयोग करना चाहिए।

भोजन सामग्री को भगवान का भोग लगाकर गाय,कुत्ता,कौवा चींटी का हिस्सा निकालकर किसी पात्र में अपने पूर्वजों के लिए भी भोजन सामग्री घर से बाहर रखना चाहिए फिर ब्राम्हण,भांजा,एवं घर के बड़े बुजुर्गों तथा बच्चों को भोजन कराएं। 

श्राद्ध करने से एक दिन पहले एवं श्राद्ध के दिन नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।

श्राद्ध में केले का फल एवं पत्तों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

श्राद्ध के समय क्रोध नहीं करना चाहिए तथा श्राद्ध पुरे श्रद्धा एवं तन्मयता से करना चाहिए।

उपरोक्त समस्त क्रिया करते समय अपने पूर्वजों - पितृगणों से अपने एवं परिवार के सुख,शांति,कल्याण तथा आशीर्वाद के लिए मन ही मन प्रार्थना करते रहना चाहिए। 

किसी भी विशेष जानकारी के लिए आप संपर्क करें : 

आचार्य धीरज द्विवेदी "याज्ञिक"

(ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र एवं वैदिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ)

संपर्क सूत्र - 09956629515

08318757871


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