कब मनाए रक्षाबंधन, जानिये शुभ मुहूर्त
पंडित विनय शर्मा
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
"भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा ।।"
अर्थात श्रावणी (रक्षाबंधन) तथा होलीपर्व कदापि भद्रा में नही मनाने चाहिये, चाहे भद्रा का निवास कहीं भी हो। तो रक्षाबन्धन कब मनायें आइये पूरी तरह शास्त्रीय दृष्टि से निर्णय करते हैं। सबसे पहले जानते हैं कि यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की ५ घटी जो भद्रा का मुख होती है, अवश्य त्याग देना चाहिए।
भद्रा ५ घटी मुख में, २ घटी कंठ में, ११ घटी ह्रदय में और ४ घटी पुच्छ में स्थित रहती है। अब जानते हैं भद्रा के प्रमुख दोष :-
• जब भद्रा मुख में रहती है तो कार्य का नाश होता है।
• जब भद्रा कंठ में रहती है तो धन का नाश होता है।
• जब भद्रा हृदय में रहती है तो प्राण का नाश होता है।
• जब भद्रा पुच्छ में होती है, तो विजय की प्राप्ति एवं कार्य सिद्ध होते हैं।
तो आइये शास्त्रसम्मत निर्णय की ओर चलते हैं कि रक्षाबन्धन पर्व कब और किस समय मनायें ?
रक्षाबन्धन पर्व में भद्राकाल रहित अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा ग्रहण करनी चाहिये। यदि पूर्णिमा पहले दिन अपराह्नव्यापिनी हो और भद्रा भी हो तो दूसरे दिन त्रिमुहूर्तव्यापिनी पूर्णिमा तिथि में रक्षाबंधन पर्व मनाना चाहिये किन्तु अगले दिन पूर्णिमा त्रिमुहूर्तव्यापिनी न हो तो पूर्व दिन भद्राकाल को त्यागकर यह पर्व मनाना चाहिये। इस वर्ष श्रावण पूर्णिमा पहले दिन अपराह्नव्यापिनी है, दूसरे दिन त्रिमुहूर्त से रहित है परन्तु पहले दिन अर्थात ११ अगस्त २०२२ को अपराह्नव्यापिनी पूर्णिमा के साथ भद्रा भी व्याप्त है। भद्रा प्रातः १०-४१ से रात्रि ८-५३ तक है। ऐसी स्थिति में शास्त्रीय निर्णयानुसार भद्रा के पुच्छकाल अर्थात सायं ५-१९ से सायं ६-२० के मध्य रक्षाबंधन पर्व मनाना पूरी तरह उचित है।
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