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विजय पथ-सम्पादकीय-लेख-खास रपट लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तृणमूल और भाजपा की जंग में बढ़ता माओवाद

पश्चिम बंगाल कही फिर ना बदल जाय लाल गढ़ में विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  कोलकाता।  पश्चिम बंगाल आजकल भाजपा और तृणमूल के बीच राजनीतिक जमीन हथियाने और सत्ता पर काबिज होने को लेकर हाशिये पर हैं. बंगाली मानुष जहां एक और ममता पर अपना विश्वास जताता दिख रहा है और कभी कट्टर कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक आज ममता का वोट बैंक बनते नजर आ रहे है।  तो वही भाजपा अपना नया गढ़ बनाने के फिराक में है।  पर क्या इन सबसे माओवादियों को पश्चिम बंगाल में फिर लाल गढ़ बनाने की ताकत मिल रही है ? फिर सर उठाता माओवाद  क्या पश्चिम बंगाल के जंगल महल के नाम से कुख्यात चार सीमावर्ती जिलो में लगभग एक दशक बाद एक बार फिर माओवाद अपना सिर उबार रहा है. इलाके में हाल में मिले माओवादी पोस्टरों से तो यही संकेत मिलता है कि अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले माओवादी संगठति होने का प्रयास कर रहे हैं. ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांगर्स सरकार के सत्ता में आने के छह महीने बाद ही इलाके के सबसे बड़े माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी की पुलिस मुठभेड़ में हत्या के बाद जंगल महल में माओवाद का सफाया हो गया था. लेकिन बीते म

गांव का पैसा गांव में

गांव का पैसा गांव में चंचल साल भर पहले इसपर लिख चुका हूं . और यह कोई नई बात नही थी , 71/ 72 में  बिल्थरा  रोड बलिया  में समाजवादी युवजन सभा का एक सम्मेलन हुआ था .'  पूर्वांचल विद्रोह सम्मेलन .सम्मेलन में  'किसान:  दसा और दिशा ' पर लम्बी बहस चली थी ,  ' गांव क पैसा  गांव में ' उसी सम्मेलन का निचोड़ था . मांग जो निकली वह कोई नई बात नही कह रही थी . गांधी जी के नेतृत्व में चलरही कांग्रेस में इस विषय पर  '34 /' 35 से ही किसान और जमीन को लेकर कई विन्दुओं पर प्रस्ताव पास हुए हैं . विद्रोह सम्मेलन उन्ही प्रस्तावों के परिप्रेक्ष में,  वक्त के साथ आये बदलाव  को जोड़ कर आंदोलन की रूपरेखा  बनी .  किसान को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत मिले , इसके लिए सरकार ठोस कदम उठाए और आढ़तियों  की लूट से किसानों को बचाये .    खेत उत्पाद से जुड़े  उद्योगों को मनमानी मुनाफा कमाने पर प्रतिबंध लगे तथा खेत और कारखाने के बीच का रिश्ता एक और डेढ़ के अनुपात में  हो .  इन सब के विस्तार में न जाकर आइये इस '   आढ़तिया सरकार '  की नियति को जाने .     5 जून 2020  ( शायद यही तारीख है )  को केंद्र स

जन्मदिन आज एक दबंग बिहारी कट्टर हिंदूवादी केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का

आखिर कौन हैं यह गिरिराज सिंह  विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  दिल्ली।   किस्सा करीब पिछले साल अक्टूबर का हैं जब मैं पहली बार गिरिराज सिंह से विश्व एड्स दिवस के एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रण देने के लिए उनसे मिला।  सूना तो बहुत था इस दबंग मंत्री के बारे में और इनके हिंदुत्व और बार बार लोगो को पाकिस्तान भेजने को लेकर इनका चर्चा में बने रहना।  बड़ा अजीब सा लगा था उस वक़्त जब उन्होंने साथी साहिल जो कि खुद HIV  संक्रमण के साथ जीवन जीते हुए लोगो को एक अलग उदाहरण पेश कर रहे थे उनको एक अलग अंदाज में बिचककर हटाना।  खैर आज इनका जन्मदिन है और ऐसे मौके पर इस तरह के बातो का कोई मायने नहीं रखता।  जन्मदिन ख़ास इसलिए भी क्योकि बिहार में चुनाव है और आजकल नीतीश की वर्चुअल रैली भी लगभग ना के बराबर असरदार है और इस बाढ़ में चुनाव की बयार वो भी कोरोना के साथ शायद अब राम की मर्जी से ही आगे बढ़ पाए।    कट्टर हिंदूवादी चेहरा, विवादित बयान और विरोधियों को बात-बेबात कड़े बयानों के कारण गिरिराज सिंह की छवि भाजपा के फायरब्रांड नेता की बनी हुई है और आज वो केंद्र सरकार में मंत्री है  साल 2014 में नवादा से पहली बार सांसद

आंदोलन और नारायण सहनी

अनिल प्रकाश मुंगेर . गंगा किनारे मल्लाहों  की बहुलता वाला एक मुहल्ला है लल्लू पोखर.  बिहार के मुंगेर शहर का यह मुहल्ला मेरे लिए बहुत खास है. यह  गंगा मुक्ति आंदोलन का जिले का मजबूत केन्द्र रहा है. वहां कमली सहनी नामक बहुत जहीन इंसान थे.. अपनी जवानी के दिनों में वे समाजवादी आंदोलन में सक्रिय रहे थे. जब लोहिया  मुंगेर आते थे कमली सहनी की उनसे मुलाकात जरूर होती थी.   मैं जब भी मुंगेर जाता तो कमली सहनी के घर के झोपड़ीनुमा कमरे में रुकता था. एक खाट कमली जी की और एक खाट पर मैं. देर रात तक उनसे बातचीत होती रहती. कमली सहनी के बेटे नारायण सहनी लम्बे कद के गठे बदन वाले बहादुर इंसान हैं. उनकी मूंछें उनके व्यक्तित्व को और भी निखारती हैं. जन नेता है और गंगा में मछलियां पकड़कर अपनी जीविका चलाते हैं. जन समस्याओं को लेकर अक्सर बीडीओ, एसपी, डीएम के पास जाते रहते हैं. कभी जुलूस लेकर तो कभी कोई प्रतिनिधि मंडल के साथ. वैसे तो नारायण सहनी एक सीधे साधे इंसान हैं लेकिन अक्खड़ और स्वाभिमानी भी हैं. कोई सरकारी अधिकारी उनकी उपेक्षा नहीं कर पाता. एकबार एक बीडीओ से मिलने गए थे. अधिकारी नया था.उसने नारायण सहनी को

गाँव गरीब और किसान

गाँव गरीब और किसान विजय शुक्ल भारत का मतलब शायद यह तीन शब्द पूरा कर सकते है वो है गाँव गरीब और किसान। सरकार या प्रशासन ना तो कभी इनको लेकर चिंतित थे ना आज है। अगर आज इनकी चिंता भी है तो शायद इस समझ के साथ है कि इस लॉक डाउन मे फसले उगी भी और किसानो ने उसको काटा भी। आज उनको खाने के लाले तो नही है बल्कि दस बीस परिवारो को और खिला ही रहे है और साल भर खिला भी देगे। क्योकि खेतो मे काम करते वक़्त सोशल डिस्टेंस से लेकर नेचुरल गमछा सर और मुंह पर होना आम बात है। और यही किसान खेती और प्रकृति के साथ गाँव बनाते है। इन शहरी छुटभैये लालची व्यापारियो से कही बेहतर सबका साथ सबका विकास करने की सोच के साथ मुस्कराहट के साथ सबका शुक्रिया कहते हुए वो भी तब जब उनको पता है कि सामने वाला लाला उनको काट रहा है। यहा लाला का मतलब बनिया जाति से नही है यह साफ जान ले हम आप सब लाला है जो किसानो की जेब पर अपना हाथ साफ करते है और उनको भिखारी मानते है जिन्होने आज सबको अन्न्दाता होने का एहसास दिलाया है। बहरहाल दूसरा तबका आया गरीब का। किसान ना कभी गरीब था ना आज है हां वो खुद्दार था है और रहेगा भी। बस उसको थोड़ा सा कमजोर किया स

श्रीनगर से ऐसी दिखी पीर पंजाल रेंज

श्रीनगर से ऐसी दिखी पीर पंजाल रेंज गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो... लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  श्रीनगर . यह डल लेक है .सामने जो दृश्य दिख रहा है वह पीर पंजाल रेंज है .शायद ऐसा ही दृश्य देखकर जहांगीर ने फारसी में कहा था ,'गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त' अर्थात अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं पर है और सिर्फ यहीं पर है .लॉकडाउन के चलते श्रीनगर से यह नजारा दिख रहा है .जिसमें हजरतबल दरगाह, उसके पीछे हरि पर्वत किला और उसके पीछे पीर पंजाल की रेंज दिखाई दे रही है. पीर पंजाल रेंज हिमालय का भीतरी हिस्सा है. डल लेक अमूमन प्रदूषित हो चुकी थी .कई बार सफाई भी हुई .यही हाल वितस्ता यानी झेलम का भी था .हब्बा कदल की तरफ निकल जाइए तो झेलम का पानी काला नजर आता था .हवा भी कम प्रदूषित नहीं थी .शंकराचार्य मंदिर ने नीचे देखने पर धुंध ज्यादा दिखती .इसी तरह दूर हिमालय की चोटियां भी ऐसी तो कभी नहीं दिखी थी . डल के किनारे किनारे जाती सड़क जो हजरत बल दरगाह और कश्मीर विश्वविद्यालय के सामने से गुजरती उससे कभी ऐसा नजारा तो नहीं दिखा .हरि पर्वत किला के पीछे हिमा

गाँव ने दो गज़ की दूरी का मन्त्र दुनिया को दिया  : पंचों से बैठक में पंचायत राज दिवस पर PM ने क्या कहा...

गाँव ने दो गज़ की दूरी का मन्त्र दुनिया को दिया  : पंचों से बैठक में पंचायत राज दिवस पर PM ने क्या कहा...   एडिटोरियल अड्डा   लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया    दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए देश भर मे चुनी हुई पंचायतो के लोगों से बातचीत की। राष्ट्रीय पंचायतराज दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) पूरे देश की ग्राम पंचायतों के साथ वीडियो कांन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की. केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम में ग्राम पंचायतों ने अहम भूमिका निभाई है जिसमें गरीबों और प्रवासी मजदूरों तक अनाज की आपूर्ति में अहम भूमिका रही है. इस मौके पर पीएम मोदी एकीकृत ई-ग्राम स्वराज पोर्टल भी लांच किया. इसके साथ ही पीएम मोदी ने स्वामित्व योजना की भी शुरुआत की. ग्राम पंचायतों से बातचीत की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने सभी लोगों को पंचायतीराज दिवस पर शुभकामनाएं दीं.   पीएम मोदी ने इस दौरान पंच और सरपंचों से क्या कहा और क्या बातचीत की, आइए 10 प्वाइंट में जानते हैं. पंचों से बैठक में PM की 10 बड़ी बातें   कोरोना संकट ने अपना सबसे बड़ा सं

सात समुन्दर पार बेगार बैठे अपने

सात समुन्दर पार बेगार बैठे अपने   लोकल न्यूज  ऑफ़ इंडिया   कोरोना चाइना से निकलकर पूरी दुनिया को अपनी कैद मे ले चुका है और अगर बात आज हम बात जापान , कनाडा , इंग्लैंड और अमेरिका की करे तो यहां जैसे इस चाइनीज़ बायो वैपन ने तांडव मचा रखा है और सौ दिनो मे इसने सबकी नानी याद दिला दी है। आज सात समुंदर पार रोजी रोटी के लिये गये हमारे अपने बेसब्र होकर बिना किसी मदद की उम्मीद मे नाउम्मीद बैठे है। वहां उनकौ ना तो देश की माटी की महक मिल रही है नस अपनो का सहारा। मानो सब कुछ लॉक सा हो गया है वहां काम करने से लेकर अपने वतन लौटने की उम्मीदे भी। कुल मिलाकर इन सौ दिनो मे लोगो ने एक लाख अपनो को खोया  है तो करीब 65 लाख लोग कोरोना की गिरफ्त मे हैं। यह आकड़ा खत्म होते खाने पीने के सामान के साथ मानो उम्मीदो को भी खत्म कर रहा है। ना नौकरी बची है ना उम्मीद। अब देखना यह है की भारत सरकार क्या कर पाती है इं सबके लिये जो अब नौकरी के साथ साथ उम्मीद भी खो चुके है और जिन्दा रहने की जंग लड़ रहे हैं।

यह मोदी की दीपावली थी जिसे आश्रम दिल्ली के विजय सैनी ने मनाया तो मुम्बई की अभिनेत्री हर्षदा पाटिल ने भी

यह मोदी की दीपावली थी जिसे आश्रम दिल्ली के विजय सैनी ने मनाया तो मुम्बई की अभिनेत्री हर्षदा पाटिल ने भी लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया   दिल्ली। कमाल का मोदी मैजिक दिखा दिया तो जला ही जला लोगो ने दीवाली भी मना दी क्योकी अन्धेरे मे दिया जलाना मतलब पटाखा बजाना तो हम भारत वालो का तो परम कर्तव्य है इसमे चरम सुख जो मिलता है। पर आज जब टीवी देखा तो पता चला जैसे दिया सिर्फ सेलिब्रिटी ने ही जलाया हो पर यह तो सब बड़े चैनल थे इनको हमारे जैसे गाँव की गूँज से क्या वास्ता। पर एक बात साफ है की यह पहली दीपावली है जो किसी एक के नाम लिखी जायेगी वही अपने ताली थाली बजवाने वाले मोदी जी। दुनिया की फटी पड़ी है और मोदी जी है की मजाक मे ले रहे है ऐसा मैं नही लगभग सब बोल रहे होगे लिखने की गुस्ताखी हम कर रहे है। दुनिया के कई देश मोदी के साथ इस बत्ती बुझाओ योजना मे साथ दिखे क्योकी पहली बार एक सौ तीस करोड़ लोगो के होने का एहसास दुनिया को दिखा ताली और थाली प्रतियोगीता के बाद। और अब सबकी निगाह भारत पर है की वो कोरोना की दुकान कैसे बन्द करवाता है । यह अच्छी बात है यही ताकत है हमारी और आज हमारे मुखिया ने लॉक डाउन के अन्दर आज़ादी

वैलेंटाईन पर भारी पुलवामा

वैलेंटाईन पर भारी पुलवामा आज सोशल मीडिया पर मानो वैलेंटाइन पर पुलवामा भारी पड़  गया है ऐसा वॉट्सएप्प और फेसबुक देखकर कहा जा सकता है पर क्या वास्तव मे देश इस शहादत की मार्केटिंग ने ऐसा फील कर रहा है या फिर वास्तविकता मे। पर अगर हम कारगिल देखे तो आज उसमे शहीद जवानो के घरवाले तरस रहे है कही पेंशन की टेंशन है तो कही जमीन ना मिलने की पर उनकी शाहदत शायद भुलाने के लिये होगी या हाल फिलहाल मे उनका बिकना तय नही हो पाया होगा। हमारे सैनिक हमारे लिये जान दे रहे है और आज उनको कही सुविधा की शिकायत है तो कही उनके भत्ते की। पर अगर सरहद पर कोई जवान शहीद हो तो उसकी शहादत पर हमे गर्व होता है और हम सब देश के साथ होते है। पर आज कल आतंकियो के हौसले इतने बुलंद कैसे हो गये जो हमारे घर मे घुसकर वो हत्याये कर रहे है। पूरा देश जब भी एक जवान अपनी जान देता है तो उसका दर्द मह्सूस करता है पर क्या हम सब आज एक प्रण ले सकते है कि अब तक जितने भी जवान शहीद हो चुके है सबकी शहादत के बाद की उनकी जिन्दगी मे जो दिक्कते है उसको दूर कर सके अगर हां तो यह वैलेंटाइन डे पर सच मे मेरा भारत शहादत को भारी बना देगा और हम सब अपने जवानो क

सियासत मे जंग

सियासत मे जंग   उत्तर प्रदेश बड़ा सूबा बड़ी जिम्मेदारिया और उतनी ही बड़ी समस्याये। समाजवादी पार्टी को हराकर योगी जी का रामराज आने तक आज के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य और उस समय के पार्टी अध्यक्ष का बड़ा रोल था क्योकी यह सरकार आई ही थी पिछड़ो के बल पर। योगी जी के गद्दी सम्हालने से पहले तक मुख्यमंत्री के रेस मे सबसे आगे अगर कोई नाम था तो वो दिनेश शर्मा का और सुर्खियो मे मनोज सिन्हा अपनी गणित भिड़ा रहे थे। पर उस समय भी केशव मौर्य को पार्टी तवज्जो देती रही और लोकसभा चुनाव तक सब कुछ ठीक ठाक ही चलता रहा हालांकी अन्दर खाने मे सब कुछ वैसा नही था जैसा दिख रहा था और अब जब इन दोनो की लडाई खुलकर सामने आ गयी है तो शायद यह भी तय है कि भाजपा का जाना भी यूपी से तय है क्योकी केशव मौर्य सुलझे हुए और जमीनी नेता है वो अलग बात है की उप चुनाव मे वो अपनी विरासत नही बचा पाये थे पर जनाधार पिछड़ो मे उनका तब भी था और अब भी है। आखिर कौन है जो योगी और केशव को लडाकर अपनी जमीन तैयार कर रहा है या फिर कही योगी जी नौकरशाही के गिरफ्त मे तो नही आ गये। हालांकी योगी आदित्यनाथ सबको साथ लेकर चलने मे सक्षम है और वो यह भी जानते है की प

पार्टी से बड़ा बनता कार्यकर्ता

पार्टी से बड़ा बनता कार्यकर्ता  बाप बाप होता है बेटा बेटा को आजकल गलत साबित करने मे कोई लगा है तो वो है कांग्रेस के नेता वो भी वो वाले जो चुनाव लड़ रहे है जिनका मानना है कि कांग्रेस पार्टी का नाम और उसका काम वो नही गिना सकते क्योकी उन्होने चुनाव अपने दम पर जीता है और लोग उनको वोट देते है ना की कांग्रेस को। अजीब सा लगता है ऐसी बातो को सोचकर और तब जायज लगता है कांग्रेस का मौजूदा हाल। प्रियंका और राहुल की सारी कोशिशे शायद तभी बेकार होती दिख रही है क्योकी उनके सामने ऐसे उम्मीदवार और कार्यकर्ता है जो अपने आप को पार्टी से बड़ा मानते है । पंजाब मे , छत्तीसगढ़ मे मध्य प्रदेश मे या राजस्थान मे जहा कही भी पार्टी जीती है वो सिर्फ एक कारण से और वो कि वहा का कार्यकर्ता अपने आप को पार्टी का सच्चा सिपाही मानकर लड़ रहा था। और उम्मीदवार भी कांग्रेस के पीछे खडा था ना कि आगे। बहरहाल मुद्दा दिल्ली का है और यहा कांग्रेस के उम्मीदवार अपने आपको बड़ा मान रहे है और बस चुनाव जीत चुके है अपने ऊचे कद के कारण जो आने वले रिजल्ट के दिन अपना मुंह छुपाते शर्तिया नज़र आएगे। क्योकी पैसे के दम पर कार्यकर्ता नही बनाये जा सकते बस

बुलेट से बैलेट का बाज़ी

बुलेट से बैलेट का बाज़ी    चुनावी जंग रोज नए नए पैतरे बदलती रहती है और सत्ता में बैठी सरकार इसका अपने अपने हिसाब से इस्तेमाल करने में कभी नहीं चूकती।  भाजपाई चाणक्य माने जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह का लगातार छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र और फिर झारखण्ड खोना मानो यह मान लिया गया कि  अगर सरकार को वापसी करनी है तो वैसे ही होगी जैसे पहले करती थी ना कोई विकास ना कोई और मुद्दा।  बस एक ही चाल जो कि  नायाब है वो है बुलेट के रास्ते।  सवाल दिल्ली पुलिस पर उठाने का कोई फायदा नहीं क्योकि अब उसका कोई भी जमीर काम नहीं करता दिखता यह लाइन हमारी दिल्ली के पुलिस के जवानो को लेकर नहीं है बल्कि उस पुलिसिया व्यवस्था को लेकर है जो अपनी कर्तव्य निष्ठा की शपथ भूल गयी है।  बहरहाल यह सब एक प्रायोजित ड्रामा है चुनावी रणनीति वो भी देश के सम्मान और दिल्ली की सुरक्षा को ताक  पर रखते हुए जब एक सिरफिरा जय श्री राम का नारा लगाते हुए आज गोडसे का रूप लेलेता है और गोलिया चलाता है और पुलिस तमाशबीन बन देखती रहती है जो उसका अक्सर का काम है पर यह सब एक प्लांनिंग के तहत है अनुराग ठाकुर का गोली मारो सालो को ग

कही आतंकवादी पर बेटा भारी ना पड़  जाय

कही आतंकवादी पर बेटा भारी ना पड़  जाय    वाह री दुनिया क्या क्या खेल दिखा रही है दिल्ली वालो को जिस दिल्ली में गांधी की ह्त्या हुई और जिस दिन हुई उसी दिन एक युवक जय श्री राम और दिल्ली पुलिस जिंदाबाद के नारे के साथ बन्दूक लहराता हुआ जामिया के छात्रों को धमकाता है और यह सब उस बयान के ठीक बाद का कार्यक्रम है जिसमे एक केंद्रीय मंत्री ने गोली मारो का फरमान जारी किया था जो आज फेसबुक पर एक बब्बर शेर की तरह दिखाया जा रहा है और दूसरे ने केजरीवाल को आतंकवादी कह डाला।  हालांकि आतंकवादी वाला मुद्दा तो भाजपा के गले की फांस बनता नजर आ रहा है ठीक वैसे ही जैसा पिछले चुनाव में गोत्र वाला बयान था।  पर कुल मिलाकर केजरीवाल की टीम जिस तरह से इमोशनल प्ले कार्ड खेल रही है और भाजपा पूरे उन्माद पर है हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा बनाने को लगता है दिल्ली की जनता बिलकुल बदलाव चाहती हो भाजपा के हिसाब से पर ऐसा है क्या ? यह सवाल भी बड़ा मजेदार है वोटर कह रहे है कि  कांग्रेस का खाता तो इस बार खोलना चाहिए भाजपा के सर्वे तो केजरीवाल को तीन और पांच सीटों पर निपटा रहे है पर लगता है सब कुछ उलटा पुल्टा बोले तो केजरीवाल ने बेटा