पश्चिम बंगाल कही फिर ना बदल जाय लाल गढ़ में विजय शुक्ल लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया कोलकाता। पश्चिम बंगाल आजकल भाजपा और तृणमूल के बीच राजनीतिक जमीन हथियाने और सत्ता पर काबिज होने को लेकर हाशिये पर हैं. बंगाली मानुष जहां एक और ममता पर अपना विश्वास जताता दिख रहा है और कभी कट्टर कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक आज ममता का वोट बैंक बनते नजर आ रहे है। तो वही भाजपा अपना नया गढ़ बनाने के फिराक में है। पर क्या इन सबसे माओवादियों को पश्चिम बंगाल में फिर लाल गढ़ बनाने की ताकत मिल रही है ? फिर सर उठाता माओवाद क्या पश्चिम बंगाल के जंगल महल के नाम से कुख्यात चार सीमावर्ती जिलो में लगभग एक दशक बाद एक बार फिर माओवाद अपना सिर उबार रहा है. इलाके में हाल में मिले माओवादी पोस्टरों से तो यही संकेत मिलता है कि अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले माओवादी संगठति होने का प्रयास कर रहे हैं. ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांगर्स सरकार के सत्ता में आने के छह महीने बाद ही इलाके के सबसे बड़े माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी की पुलिस मुठभेड़ में हत्या के बाद जंगल महल में माओवाद का सफाया हो गया था. लेकिन बीते म