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विजय पथ-सम्पादकीय-लेख-खास रपट लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मीडिया का ड्रग्स , मोदी के दीन  दयाल  और लुटा किसान  रोड पर

मीडिया का ड्रग्स , मोदी के दीन  दयाल  और लुटा किसान  रोड पर    विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  दिल्ली।   किसान तो हमेशा से ही हाशिये पर रहा हैं चाहे वो अंग्रेजो का काल हो या मुगलो का , नेहरू का हो या इंदिरा का  या फिर चौधरी चरण सिंह का ही क्यों न रहा हो।  या आज मनमोहन के मौन पर भारी मोदी की मन की बात का।  हर वक़्त किसान घुटता रहा टूटता रहा।  आकड़ो में अब वो आत्महत्या के लिए भी दर्ज नही है , मजदूर कोरोना में जो निपट गए उनसे सरकार ने पहले ही पल्ला झाड़ लिया।  बहरहाल यह ज्ञान देने का वक़्त नहीं बारीकी से यह समझने का वक़्त हैं की मीडिया कितनी सीधी सपाट तरीके से देश की बात देश को सूना रहा हैं।  देश सुशांत के बारे में सुनना चाहता था तो मीडिया ने कंगना की कलह सुनाना  शुरू कर दिया और अब जब मोदी जी ने किसानो को उबारने के लिए  आत्मनिर्भर किसान वाली दीन दयाल की शुरुवात बाकी की पूर्व में सभी योजनाबद्ध पीड़ा देने वाली योजनाओ की तरह उनके उन्मूलन के लिए, उनको जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए, किसान बिल में इतना बड़ा बदलाव किया हैं तो जाहिर सी बात हैं मीडिया अब ड्रग्स दिखायेगा क्योकि देश किसान को नहीं ड्र

राफेल पर सीएजी ने तो सवाल उठा ही दिया

पंकज चतुर्वेदी नई दिल्ली . राफेल विमान की खरीद पर उठ रहे विवादों को भले ही सुप्रीम कोर्ट, चुनावी परिणामों और अन्य कई गोपनीय कारकों ने टाला लगा दिया हो, लेकिन भारत के भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक(सीएजी ) द्वारा तैयार और  संसद के मानसून स्तर के अंतिम दिन  प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट में स सौदे में फ़्रांस की कम्पनी के प्रति पक्षपात के प्रमाण तो सामने आ ही गए हैं .  डिफेंस ऑफसेट पर जारी की गई सी ए जी  रिपोर्ट में कहा गया है कि 36 राफेल लड़ाकू विमान की डील के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत में (सितंबर 2015) यह प्रस्ताव था कि डीआरडीओ को हाई टेक्नॉलजी देकर वेंडर अपना 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करेगा. लेकिन अभी तक टेक्नॉलजी ट्रांसफर सुनिश्चित  नहीं हुआ है. डीआरडीओ को यह टेक्नॉलजी स्वदेशी तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए इंजन (कावेरी) विकसित करने के लिए चाहिए थी. अभी तक वेंडर ने ट्रांसफर ऑफ टेक्नॉलजी पर सहमती  नहीं दी है. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऑफसेट पॉलिसी से मनमाफिक नतीजे नहीं निकल रहे हैं इसलिए मंत्रालय को पॉलिसी और इसे लागू करने के तरीकों की समीक्षा करने की जरूरत है. जहां पर दिक

काशी मथुरा ,मंदिर की राजनीति की वापसी

काशी मथुरा ,मंदिर की राजनीति की वापसी राम पुनियानी लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया दिनदहाड़े बाबरी मस्जिद ध्वस्त किए जाते समय एक नारा बार-बार लगाया जा रहा था: “यह तो केवल झांकी है, काशी मथुरा बाकी है”. सर्वोच्च न्यायालय ने बाबरी मस्जिद की भूमि उन्हीं लोगों को सौंपते हुए, जिन्होंने उसे ध्वस्त किया था, यह कहा था कि वह एक गंभीर अपराध था. बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद राम मंदिर का उपयोग सत्ता पाने के लिए और समाज को धार्मिक आधार पर बांटने के लिए किया गया. बार-बार यह दावा किया गया कि भगवान राम ने ठीक उसी स्थान पर जन्म लिया था. यही आस्था राजनीति का आधार बन गई और अदालत के फैसले का भी. यह धार्मिक राष्ट्रवाद देश की राजनीति में मील का पत्थर बना. परंतु अब क्या? वैसे तो ऐसे मुद्दों की कोई कमी नहीं है जिनसे धार्मिक आधार पर समाज को बांटा जा सकता है और धार्मिक अल्पसंख्यकों को हाशिये पर लाने के लिए जिनका उपयोग होता है. इनमें से कुछ तो विघटनकारी राजनीति करने वालों के एजेंडे में स्थायी रूप से शामिल कर लिए गए हैं. जैसे, लव जिहाद (अब इसमें भूमि जिहाद, कोरोना जिहाद, सिविल सर्विसेस जिहाद आदि भी जुड़ गए हैं), पवित्र गाय,

सत्तर के हुए मोदी

शिशिर सोनी नई दिल्ली .ये उन दिनों की बात है. तब भाई नरेंद्र मोदी संगठन का कामकाज देखा करते थे. दिल्ली के अशोक रोड स्थित भाजपा मुख्यालय के बगल वाली कोठी में एक कमरा उनके पास था. तब अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी, गोविंदाचार्य, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, उमा भारती सहित दर्ज़न भर से ज्यादा बेहद सशक्त नेताओं की बेहद एक्टिव टीम-भाजपा थी, फिर भी नरेंद्र मोदी के पास खबरों की भरमार होती थी सो पत्रकारों का जमघट उनके पास सबसे ज्यादा होता था. उस समय मैं अकेला ऐसा पत्रकार था जो दिल्ली के पुराना किला रोड स्थित तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी के घर भी जाता था और मोदी जी से भी मिलता था. उम्र में सबसे छोटा था, मगर खबरों की खबर के लिए मोदी जी और केसरी जी मुझे पसंद करते थे. केसरी जी और मोदी जी में एक बड़ी समानता रही, न केसरी जी ने अपने परिजनों को राजनीति में आगे बढ़ाया, न मोदी जी ने. परिवारवाद के दोनों घोर विरोधी रहे. बाद में नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम और फिर देश की सियासत में बड़ा उलटफेर कर लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने. जिनके साथ आपने समय बिताया हो वो सीएम, पीएम बनें तो जाहि

आज फिर आया साल भर बाद हिंदी पखवाड़ा

विजय शुक्ल लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया करीब हर साल दुसरे तीज त्यौहारों की तरह हिन्दी पखवाड़ा फिर वापस आया जिसका इन्तजार सरकारी खजाने वाले बेसब्री से किया करते थे हर साल।  क्योकि यही उनकी दीवाली होती थी और यही उनकी ईदी . वो अलग बात है कि  हिंदी आज भी वही है जहां पहले थी सरकारी कामकाज से दूर बस रिसेप्शन बोले तो स्वागत कक्ष में।  जहां बैठी या बैठा हुआ एक व्यक्तित्व आपसे बोलेगा की कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ  या कर सकती हूँ। पर सवाल बड़ा है कि  क्या हम हर साल श्राद्ध जैसा हिंदी भाषा का तरपान करते नहीं नजर आ रहे।  जो भाषा हमारे रग रग में बसती हैं उसका एक दिन या एक पखवाड़ा अल्पसंखयको जैसा ट्रीटमेंट तो नहीं।  चलो मान लेते है कि  तमिल, तेलुगु , कन्नड़ , ओड़िया, असमिया, कोंकड़ी, मराठी, मलयालम जैसी भाषाई राज्यों में हिंदी दिवस का मनाया जाना सार्थक कदम हो सकता था पर हिंदी राज्यों में जहां बच्चा उठता बैठता ही हिंदी स्टाइल में है वहा इस पखवाड़े का इंतजाम कर ऐसा नहीं लगता की हिंदी के जीवित होने का सबूत पेश किया जा रहा हो  वो भी तब  जब हम हिंदी की समृद्ध गाथा की डींगे हांकते फिरते हैं।  हिंदी भाषा को किस

बर्तन और खाने का रिश्ता निराला 

देखिये जनादेश चर्चा  में -किन बर्तनों से बचना चाहिए फजल इमाम मल्लिक लोकल न्यूज ऑफ इंडिया नई दिल्ली . जायकेदार और पौष्टिक भोजन हर किसी की चाहत होती है लेकिन इनके बीच महत्त्वपूर्ण सवाल पर अधिकांश लोग ध्यान नहीं देते. खानपान पर बात तो होती है लेकिन किस तरह के बरतनों का इस्तेमाल खाना बनाने में हो इसकी कभी चर्चा शायद ही सुनी हो. कैसे हों हमारे बर्तन और हम किन बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं. क्या वह सुरक्षित हैं खाना बनाने के लिए या उससे कोई नुकसान हो सकता है. जनादेश ने अपने कार्यक्रम भोजन के बाद-भोजन की बात में रविवार को बरतनों पर चर्चा की. देखा जाए तो अपने आप में यह चर्चा अनूठी रही और कहा जा सकता है कि पहली बार इस तरह की चर्चा किसी सार्वजनिक मंच पर हुई है. प्रियंका संभव ने चर्चा की शुरुआत की और कहा कि हम किस तरह के बरतनों में खाना बनाएं और बरतनों का स्वास्थ्य से क्या रिश्ता होता है, यह जानना जरूरी है. चर्चा में शेफ अन्नया खरे, पूर्णिमा अरुण, पत्रकार आलोक जोशी और जनादेश के संपादक अम्बरीश कुमार ने हिस्सा लिया. अम्बरीश कुमार ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि बरतनों का अनुभव मेरा बचपन से ही रह

ग्यारह घंटे पैदल सफर कर हाल लेने पहुंचे एक मुख्यमंत्री

ग्यारह घंटे पैदल सफर कर हाल लेने पहुंचे एक मुख्यमंत्री   विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  तवांग .पूर्वोत्तर राज्यों का जिक्र अक्सर उग्रवाद के सिलसिले में किया जाता रहा है. लेकिन इलाके की सकारात्मक खबरें न तो मुख्यधारा की मीडिया तक पहुंचती हैं और न ही देश के दूसरे लोग इस बारे में भनक मिलती है. इलाके में तमाम राजनेता अक्सर अपने कामकाज से ऐसी मिसाल कायम करते रहे हैं जिनके बारे में देश के बाकी हिस्सों में रहने वाले लोग कल्पना भी नहीं कर सकते. तमाम राज्यों के मुख्यमंत्री जब सुरक्षाकर्मियों की भारी भरकम फौज, कारों के लंबे काफिले और हेलीकाप्टरों से दौरों पर निकलते हैं तो ऐसे में किसी को इस बात का भरोसा नहीं होगा कि कोई मुख्यमंत्री अपने चुनाव क्षेत्र में गांव वालो की समस्याएं जानने-समझने के लिए 11 घंटे पैदल सफर भी कर सकता है. सुनने में यह मामला भले अविश्वसनीय लगे, लेकिन है सोलहों आने सच. यह मिसाल कायम की है चीन की सीमा से लगे पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के मुयमंत्री पेमा खांडू ने. उन्होंने इसी सप्ताह तवांग जिले के दुर्गम गांव लुगुथांग पहुंचने के लिए महज एक सुरक्षाकर्मी के साथ 14 किमी पैद

कोरोना पर भारी  कंगना !

विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  माया नगरी मुंबई पटना और शिमला दोनों से लगभग बराबर ही दूरी पर है अंदाजन करीब सत्रह सौ किलोमीटर। दोनों ही राज्यों में यानी बिहार और हिमाचल में इस समय एक ही पार्टी के वर्चस्व वाली सरकार भी है। वैसे तो बिहार और हिमाचल की तासीर बिलकुल अलग अलग है पर आज राजनीतिक जमीन ने दोनों के दिलो को एक कर दिया है।  एक को राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए अपने सितारा लाल की मौत पर इन्साफ चाहिए तो दूसरे ने  अपनी सितारा बिटिया के लाज रखने की जिम्मेदारी उठा रखी है. उधर माया नगरी मुंबई की भी अपनी एक सितारा बिटिया की जिंदगी दांव पर लगी है और एक मराठा राजनेता  बेटे ने महाराष्ट्र के गौरव की रक्षा के लिए अपनी तलवार भी उठा ली है और दोनों ही सितारा बेटियां बॉलीवुड से जुडी हुई हैं , और फ़िल्मी हस्तियों की जिन्दगियो से  जुड़े तमाम अन्तःवस्त्रो को मायानगरी की सडको पर पताकाओं की तरह लहराया जा रहा हैं।    दूसरी ओर  सबसे आगे बढ़ने की होड़ में नशे की गोलियों का तड़का लगाकर मीडिया बिना किसी चार्ज के बेच रहा है।  जिसमे  में भी कुछ ख्याति प्राप्त ‘बेटियाँ’ भी सितारा वस्त्रों को मार्केट की ज़रूरत क

एक स्वामी का जाना

एक स्वामी का जाना अंबरीश कुमार लोकल न्यूज ऑफ इंडिया   स्वामी अग्निवेश नहीं रहे .वे सन्यासी थे .घर परिवार से कोई मतलब नहीं रहा .समाज के लिए जीते थे .समाज के लिए लड़ते भी थे .समाज भी उनसे कई बार लड़ भिड जाता था .पर वे कभी बुरा नहीं मानते थे .पिछली मुलाक़ात तो रामगढ़ में ही हुई जब वे घर आये थे .फिर आने को कह गए थे .पर कब कौन चला जाए क्या पता .कोरोना की वजह से उनकी जान चली गई .अपना संबंध अस्सी के दशक से था .इस दशक के मध्य से ही दिल्ली आना जाना शुरू हुआ और फिर जनसत्ता से जुड़ गया .वर्ष 1988 से जनसत्ता में अपना लिखना पढना आंदोलन से जुड़े लोगों से ज्यादा रहा .खासकर बिहार उड़ीसा उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में आंदोलन में जुटी जमात से .इनपर लिखा भी खूब .किसान आदिवासियों पर भी इसी दौर में स्वामी अग्निवेश से मुलाक़ात हुई .अस्सी के दशक के अंतिम दौर से .बंधुआ मुक्ति मोर्चा ने तब हरियाणा में बंधुआ बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान छेड़ रखा था . जनसत्ता की तरफ से इसकी कवरेज की जिम्मेदारी मुझे दी जाती थी .कैलाश सत्यार्थी को अग्निवेश सुबह सुबह घर भेजते थे .26 आशीर्वाद एपार्टमेंट पटपड़ गंज दिल्ली .यही अपना ठिकाना था .इसी ठ

तृणमूल और भाजपा की जंग में बढ़ता माओवाद

पश्चिम बंगाल कही फिर ना बदल जाय लाल गढ़ में विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  कोलकाता।  पश्चिम बंगाल आजकल भाजपा और तृणमूल के बीच राजनीतिक जमीन हथियाने और सत्ता पर काबिज होने को लेकर हाशिये पर हैं. बंगाली मानुष जहां एक और ममता पर अपना विश्वास जताता दिख रहा है और कभी कट्टर कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक आज ममता का वोट बैंक बनते नजर आ रहे है।  तो वही भाजपा अपना नया गढ़ बनाने के फिराक में है।  पर क्या इन सबसे माओवादियों को पश्चिम बंगाल में फिर लाल गढ़ बनाने की ताकत मिल रही है ? फिर सर उठाता माओवाद  क्या पश्चिम बंगाल के जंगल महल के नाम से कुख्यात चार सीमावर्ती जिलो में लगभग एक दशक बाद एक बार फिर माओवाद अपना सिर उबार रहा है. इलाके में हाल में मिले माओवादी पोस्टरों से तो यही संकेत मिलता है कि अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले माओवादी संगठति होने का प्रयास कर रहे हैं. ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांगर्स सरकार के सत्ता में आने के छह महीने बाद ही इलाके के सबसे बड़े माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी की पुलिस मुठभेड़ में हत्या के बाद जंगल महल में माओवाद का सफाया हो गया था. लेकिन बीते म

गांव का पैसा गांव में

गांव का पैसा गांव में चंचल साल भर पहले इसपर लिख चुका हूं . और यह कोई नई बात नही थी , 71/ 72 में  बिल्थरा  रोड बलिया  में समाजवादी युवजन सभा का एक सम्मेलन हुआ था .'  पूर्वांचल विद्रोह सम्मेलन .सम्मेलन में  'किसान:  दसा और दिशा ' पर लम्बी बहस चली थी ,  ' गांव क पैसा  गांव में ' उसी सम्मेलन का निचोड़ था . मांग जो निकली वह कोई नई बात नही कह रही थी . गांधी जी के नेतृत्व में चलरही कांग्रेस में इस विषय पर  '34 /' 35 से ही किसान और जमीन को लेकर कई विन्दुओं पर प्रस्ताव पास हुए हैं . विद्रोह सम्मेलन उन्ही प्रस्तावों के परिप्रेक्ष में,  वक्त के साथ आये बदलाव  को जोड़ कर आंदोलन की रूपरेखा  बनी .  किसान को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत मिले , इसके लिए सरकार ठोस कदम उठाए और आढ़तियों  की लूट से किसानों को बचाये .    खेत उत्पाद से जुड़े  उद्योगों को मनमानी मुनाफा कमाने पर प्रतिबंध लगे तथा खेत और कारखाने के बीच का रिश्ता एक और डेढ़ के अनुपात में  हो .  इन सब के विस्तार में न जाकर आइये इस '   आढ़तिया सरकार '  की नियति को जाने .     5 जून 2020  ( शायद यही तारीख है )  को केंद्र स

जन्मदिन आज एक दबंग बिहारी कट्टर हिंदूवादी केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का

आखिर कौन हैं यह गिरिराज सिंह  विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  दिल्ली।   किस्सा करीब पिछले साल अक्टूबर का हैं जब मैं पहली बार गिरिराज सिंह से विश्व एड्स दिवस के एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रण देने के लिए उनसे मिला।  सूना तो बहुत था इस दबंग मंत्री के बारे में और इनके हिंदुत्व और बार बार लोगो को पाकिस्तान भेजने को लेकर इनका चर्चा में बने रहना।  बड़ा अजीब सा लगा था उस वक़्त जब उन्होंने साथी साहिल जो कि खुद HIV  संक्रमण के साथ जीवन जीते हुए लोगो को एक अलग उदाहरण पेश कर रहे थे उनको एक अलग अंदाज में बिचककर हटाना।  खैर आज इनका जन्मदिन है और ऐसे मौके पर इस तरह के बातो का कोई मायने नहीं रखता।  जन्मदिन ख़ास इसलिए भी क्योकि बिहार में चुनाव है और आजकल नीतीश की वर्चुअल रैली भी लगभग ना के बराबर असरदार है और इस बाढ़ में चुनाव की बयार वो भी कोरोना के साथ शायद अब राम की मर्जी से ही आगे बढ़ पाए।    कट्टर हिंदूवादी चेहरा, विवादित बयान और विरोधियों को बात-बेबात कड़े बयानों के कारण गिरिराज सिंह की छवि भाजपा के फायरब्रांड नेता की बनी हुई है और आज वो केंद्र सरकार में मंत्री है  साल 2014 में नवादा से पहली बार सांसद

आंदोलन और नारायण सहनी

अनिल प्रकाश मुंगेर . गंगा किनारे मल्लाहों  की बहुलता वाला एक मुहल्ला है लल्लू पोखर.  बिहार के मुंगेर शहर का यह मुहल्ला मेरे लिए बहुत खास है. यह  गंगा मुक्ति आंदोलन का जिले का मजबूत केन्द्र रहा है. वहां कमली सहनी नामक बहुत जहीन इंसान थे.. अपनी जवानी के दिनों में वे समाजवादी आंदोलन में सक्रिय रहे थे. जब लोहिया  मुंगेर आते थे कमली सहनी की उनसे मुलाकात जरूर होती थी.   मैं जब भी मुंगेर जाता तो कमली सहनी के घर के झोपड़ीनुमा कमरे में रुकता था. एक खाट कमली जी की और एक खाट पर मैं. देर रात तक उनसे बातचीत होती रहती. कमली सहनी के बेटे नारायण सहनी लम्बे कद के गठे बदन वाले बहादुर इंसान हैं. उनकी मूंछें उनके व्यक्तित्व को और भी निखारती हैं. जन नेता है और गंगा में मछलियां पकड़कर अपनी जीविका चलाते हैं. जन समस्याओं को लेकर अक्सर बीडीओ, एसपी, डीएम के पास जाते रहते हैं. कभी जुलूस लेकर तो कभी कोई प्रतिनिधि मंडल के साथ. वैसे तो नारायण सहनी एक सीधे साधे इंसान हैं लेकिन अक्खड़ और स्वाभिमानी भी हैं. कोई सरकारी अधिकारी उनकी उपेक्षा नहीं कर पाता. एकबार एक बीडीओ से मिलने गए थे. अधिकारी नया था.उसने नारायण सहनी को

गाँव गरीब और किसान

गाँव गरीब और किसान विजय शुक्ल भारत का मतलब शायद यह तीन शब्द पूरा कर सकते है वो है गाँव गरीब और किसान। सरकार या प्रशासन ना तो कभी इनको लेकर चिंतित थे ना आज है। अगर आज इनकी चिंता भी है तो शायद इस समझ के साथ है कि इस लॉक डाउन मे फसले उगी भी और किसानो ने उसको काटा भी। आज उनको खाने के लाले तो नही है बल्कि दस बीस परिवारो को और खिला ही रहे है और साल भर खिला भी देगे। क्योकि खेतो मे काम करते वक़्त सोशल डिस्टेंस से लेकर नेचुरल गमछा सर और मुंह पर होना आम बात है। और यही किसान खेती और प्रकृति के साथ गाँव बनाते है। इन शहरी छुटभैये लालची व्यापारियो से कही बेहतर सबका साथ सबका विकास करने की सोच के साथ मुस्कराहट के साथ सबका शुक्रिया कहते हुए वो भी तब जब उनको पता है कि सामने वाला लाला उनको काट रहा है। यहा लाला का मतलब बनिया जाति से नही है यह साफ जान ले हम आप सब लाला है जो किसानो की जेब पर अपना हाथ साफ करते है और उनको भिखारी मानते है जिन्होने आज सबको अन्न्दाता होने का एहसास दिलाया है। बहरहाल दूसरा तबका आया गरीब का। किसान ना कभी गरीब था ना आज है हां वो खुद्दार था है और रहेगा भी। बस उसको थोड़ा सा कमजोर किया स

श्रीनगर से ऐसी दिखी पीर पंजाल रेंज

श्रीनगर से ऐसी दिखी पीर पंजाल रेंज गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो... लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  श्रीनगर . यह डल लेक है .सामने जो दृश्य दिख रहा है वह पीर पंजाल रेंज है .शायद ऐसा ही दृश्य देखकर जहांगीर ने फारसी में कहा था ,'गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त' अर्थात अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं पर है और सिर्फ यहीं पर है .लॉकडाउन के चलते श्रीनगर से यह नजारा दिख रहा है .जिसमें हजरतबल दरगाह, उसके पीछे हरि पर्वत किला और उसके पीछे पीर पंजाल की रेंज दिखाई दे रही है. पीर पंजाल रेंज हिमालय का भीतरी हिस्सा है. डल लेक अमूमन प्रदूषित हो चुकी थी .कई बार सफाई भी हुई .यही हाल वितस्ता यानी झेलम का भी था .हब्बा कदल की तरफ निकल जाइए तो झेलम का पानी काला नजर आता था .हवा भी कम प्रदूषित नहीं थी .शंकराचार्य मंदिर ने नीचे देखने पर धुंध ज्यादा दिखती .इसी तरह दूर हिमालय की चोटियां भी ऐसी तो कभी नहीं दिखी थी . डल के किनारे किनारे जाती सड़क जो हजरत बल दरगाह और कश्मीर विश्वविद्यालय के सामने से गुजरती उससे कभी ऐसा नजारा तो नहीं दिखा .हरि पर्वत किला के पीछे हिमा

गाँव ने दो गज़ की दूरी का मन्त्र दुनिया को दिया  : पंचों से बैठक में पंचायत राज दिवस पर PM ने क्या कहा...

गाँव ने दो गज़ की दूरी का मन्त्र दुनिया को दिया  : पंचों से बैठक में पंचायत राज दिवस पर PM ने क्या कहा...   एडिटोरियल अड्डा   लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया    दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए देश भर मे चुनी हुई पंचायतो के लोगों से बातचीत की। राष्ट्रीय पंचायतराज दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) पूरे देश की ग्राम पंचायतों के साथ वीडियो कांन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत की. केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम में ग्राम पंचायतों ने अहम भूमिका निभाई है जिसमें गरीबों और प्रवासी मजदूरों तक अनाज की आपूर्ति में अहम भूमिका रही है. इस मौके पर पीएम मोदी एकीकृत ई-ग्राम स्वराज पोर्टल भी लांच किया. इसके साथ ही पीएम मोदी ने स्वामित्व योजना की भी शुरुआत की. ग्राम पंचायतों से बातचीत की शुरुआत करते हुए पीएम मोदी ने सभी लोगों को पंचायतीराज दिवस पर शुभकामनाएं दीं.   पीएम मोदी ने इस दौरान पंच और सरपंचों से क्या कहा और क्या बातचीत की, आइए 10 प्वाइंट में जानते हैं. पंचों से बैठक में PM की 10 बड़ी बातें   कोरोना संकट ने अपना सबसे बड़ा सं

सात समुन्दर पार बेगार बैठे अपने

सात समुन्दर पार बेगार बैठे अपने   लोकल न्यूज  ऑफ़ इंडिया   कोरोना चाइना से निकलकर पूरी दुनिया को अपनी कैद मे ले चुका है और अगर बात आज हम बात जापान , कनाडा , इंग्लैंड और अमेरिका की करे तो यहां जैसे इस चाइनीज़ बायो वैपन ने तांडव मचा रखा है और सौ दिनो मे इसने सबकी नानी याद दिला दी है। आज सात समुंदर पार रोजी रोटी के लिये गये हमारे अपने बेसब्र होकर बिना किसी मदद की उम्मीद मे नाउम्मीद बैठे है। वहां उनकौ ना तो देश की माटी की महक मिल रही है नस अपनो का सहारा। मानो सब कुछ लॉक सा हो गया है वहां काम करने से लेकर अपने वतन लौटने की उम्मीदे भी। कुल मिलाकर इन सौ दिनो मे लोगो ने एक लाख अपनो को खोया  है तो करीब 65 लाख लोग कोरोना की गिरफ्त मे हैं। यह आकड़ा खत्म होते खाने पीने के सामान के साथ मानो उम्मीदो को भी खत्म कर रहा है। ना नौकरी बची है ना उम्मीद। अब देखना यह है की भारत सरकार क्या कर पाती है इं सबके लिये जो अब नौकरी के साथ साथ उम्मीद भी खो चुके है और जिन्दा रहने की जंग लड़ रहे हैं।

यह मोदी की दीपावली थी जिसे आश्रम दिल्ली के विजय सैनी ने मनाया तो मुम्बई की अभिनेत्री हर्षदा पाटिल ने भी

यह मोदी की दीपावली थी जिसे आश्रम दिल्ली के विजय सैनी ने मनाया तो मुम्बई की अभिनेत्री हर्षदा पाटिल ने भी लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया   दिल्ली। कमाल का मोदी मैजिक दिखा दिया तो जला ही जला लोगो ने दीवाली भी मना दी क्योकी अन्धेरे मे दिया जलाना मतलब पटाखा बजाना तो हम भारत वालो का तो परम कर्तव्य है इसमे चरम सुख जो मिलता है। पर आज जब टीवी देखा तो पता चला जैसे दिया सिर्फ सेलिब्रिटी ने ही जलाया हो पर यह तो सब बड़े चैनल थे इनको हमारे जैसे गाँव की गूँज से क्या वास्ता। पर एक बात साफ है की यह पहली दीपावली है जो किसी एक के नाम लिखी जायेगी वही अपने ताली थाली बजवाने वाले मोदी जी। दुनिया की फटी पड़ी है और मोदी जी है की मजाक मे ले रहे है ऐसा मैं नही लगभग सब बोल रहे होगे लिखने की गुस्ताखी हम कर रहे है। दुनिया के कई देश मोदी के साथ इस बत्ती बुझाओ योजना मे साथ दिखे क्योकी पहली बार एक सौ तीस करोड़ लोगो के होने का एहसास दुनिया को दिखा ताली और थाली प्रतियोगीता के बाद। और अब सबकी निगाह भारत पर है की वो कोरोना की दुकान कैसे बन्द करवाता है । यह अच्छी बात है यही ताकत है हमारी और आज हमारे मुखिया ने लॉक डाउन के अन्दर आज़ादी

वैलेंटाईन पर भारी पुलवामा

वैलेंटाईन पर भारी पुलवामा आज सोशल मीडिया पर मानो वैलेंटाइन पर पुलवामा भारी पड़  गया है ऐसा वॉट्सएप्प और फेसबुक देखकर कहा जा सकता है पर क्या वास्तव मे देश इस शहादत की मार्केटिंग ने ऐसा फील कर रहा है या फिर वास्तविकता मे। पर अगर हम कारगिल देखे तो आज उसमे शहीद जवानो के घरवाले तरस रहे है कही पेंशन की टेंशन है तो कही जमीन ना मिलने की पर उनकी शाहदत शायद भुलाने के लिये होगी या हाल फिलहाल मे उनका बिकना तय नही हो पाया होगा। हमारे सैनिक हमारे लिये जान दे रहे है और आज उनको कही सुविधा की शिकायत है तो कही उनके भत्ते की। पर अगर सरहद पर कोई जवान शहीद हो तो उसकी शहादत पर हमे गर्व होता है और हम सब देश के साथ होते है। पर आज कल आतंकियो के हौसले इतने बुलंद कैसे हो गये जो हमारे घर मे घुसकर वो हत्याये कर रहे है। पूरा देश जब भी एक जवान अपनी जान देता है तो उसका दर्द मह्सूस करता है पर क्या हम सब आज एक प्रण ले सकते है कि अब तक जितने भी जवान शहीद हो चुके है सबकी शहादत के बाद की उनकी जिन्दगी मे जो दिक्कते है उसको दूर कर सके अगर हां तो यह वैलेंटाइन डे पर सच मे मेरा भारत शहादत को भारी बना देगा और हम सब अपने जवानो क

सियासत मे जंग

सियासत मे जंग   उत्तर प्रदेश बड़ा सूबा बड़ी जिम्मेदारिया और उतनी ही बड़ी समस्याये। समाजवादी पार्टी को हराकर योगी जी का रामराज आने तक आज के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य और उस समय के पार्टी अध्यक्ष का बड़ा रोल था क्योकी यह सरकार आई ही थी पिछड़ो के बल पर। योगी जी के गद्दी सम्हालने से पहले तक मुख्यमंत्री के रेस मे सबसे आगे अगर कोई नाम था तो वो दिनेश शर्मा का और सुर्खियो मे मनोज सिन्हा अपनी गणित भिड़ा रहे थे। पर उस समय भी केशव मौर्य को पार्टी तवज्जो देती रही और लोकसभा चुनाव तक सब कुछ ठीक ठाक ही चलता रहा हालांकी अन्दर खाने मे सब कुछ वैसा नही था जैसा दिख रहा था और अब जब इन दोनो की लडाई खुलकर सामने आ गयी है तो शायद यह भी तय है कि भाजपा का जाना भी यूपी से तय है क्योकी केशव मौर्य सुलझे हुए और जमीनी नेता है वो अलग बात है की उप चुनाव मे वो अपनी विरासत नही बचा पाये थे पर जनाधार पिछड़ो मे उनका तब भी था और अब भी है। आखिर कौन है जो योगी और केशव को लडाकर अपनी जमीन तैयार कर रहा है या फिर कही योगी जी नौकरशाही के गिरफ्त मे तो नही आ गये। हालांकी योगी आदित्यनाथ सबको साथ लेकर चलने मे सक्षम है और वो यह भी जानते है की प