विजय शुक्ल लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया दिल्ली। महिला सशक्तिकरण का महीना अभी बीता भी नहीं हैं पर एक मामला नेहरू प्लेस की महिला का ऐसा आया हैं जिसको देखकर तो पहली नजर में हर कोई यही कहेगा कि यह सरासर नाइंसाफी हैं। बाजार के यूनियन या संगठन बनते हैं लोगो की देख रेख के लिए पर क्या कोई मार्केट एसोसिएशन का प्रतिनिधि इतना बड़ा हो सकता कि वो एक महिला के खिलाफ खड़ा हो जाय? और क्या आदेशों और प्रतियो की कॉपी लेकर घूमती इस महिला के लिए कोई महिला संगठन या कोई महिला आयोग या कोई किरण बेदी सरीखी महिला पुलिस अधिकारी नहीं खड़ी होगी ? यह सब सवाल शायद इस महिला के जेहन में रोजाना गूंजते होंगे और जबाब में उसके ठीहे पर बैठी पुलिस की टीम रोजाना होती हैं जिनका परम कर्तव्य उसके ठीहे पर रखे सामान को उठाकर फेकना और उसको दूकान ना लगाने देना होता हैं। पर ऐसा क्यों ? क्या यह महिला कोई संगीन अपराध कर रही हैं या सिस्टम से इसने बैर मोल ले लिया हैं ? जो भी हो इसका पूरा मामला समझने और समझाने की जरूरत बाजार एसोसिएशन को होनी चाहिए ना की अपने मन की बात के सहारे इसका उत्पीड़न हो। अब आगे आपको अखबार में आपको रोजाना इस महि