किसान के हित की लड़ाई या व्यापारिक स्वार्थ की राजनीति—पं0 शेखर दीक्षित
अंजलि यादव
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
दिल्ली। पं0 शेखर दीक्षित कहा कि किसानों के नाम पर भारत बंद की अपील करने वाने किसान संगठन और राजनैतिक दल असल में अरसे से बन्द पडी अपनी दुकानों को चमकाना चाहते हैं । उनका कहना है कि अगर वास्तव में यह सभी किसान हितैषी थे तो इतने दिनों तक जब केन्द्र राज्यों की सरकारें किसानों की उपेक्षा कर रही थीं तब वे कहा थे। उन्होंने कहा कि यह लडाई किसान को बचाने की नहीं बल्कि स्वार्थपूर्ति की लडाई है।
देश में कृषि संबंधी तीनों विधेयक संसद से पास हो चुके हैं देश के तथाकथित किसान नेता या फिर बिना मुद्दे का विपक्ष जैसे लगता है कि वह इस इंतजार में था कि किसानों की कोई बात केंद्र सरकार की ओर से आए और हम उस पर अपनी राजनीति करना शुरू करे इन्हें सिर्फ मौका चाहिए किसान लगातार समस्याओ से तृस्त है लेकिन विपक्ष चुप बैठा रहा जैसे ही केंद्र सरकार ने किसानों को लेकर तीन अध्यादेश पास किए कि कुछ राज्यों में इसको लेकर विवाद खड़ा हो गया यह चर्चा का विषय है कि किसानों के हित में है या किसानों के हित नही है यदि विल किसानो के हित में नही है तो पूर्ववर्ती सरकार ने इस बिल का मसौदा वर्ष 2013—14 में क्यों तैयार किया। उस समय वर्तमान भाजपा सरकार विपक्ष में थी और इस बिल के विरोध में समय समय पर वह इस पर अपना विरोध दर्ज कराते रहें लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने जिस कांग्रेस का विरोध करके सत्ता हासिल की उन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए लोकसभा से तीनों बिल पास किए और दलील यह रही कि किसानों का हित इन बिलों में छिपा है यह बात अलग है कि बिचौलिए समाप्त होंगे लेकिन क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि बड़े बिचौलिए किसानों के लिए तैयार नहीं बैठे हैं क्योंकि मामला किसानों से जुड़ा है तो विपक्ष चुप रहे ऐसा उचित भी नहीं लेकिन किसानो की हक की लड़ाई क्या विपक्ष किसानो लडाई लड़ने में सक्षम है यदि वास्तव में विपक्ष किसानों के हित की बात करने को तैयार था तो फिर राज्यसभा से यह तीनों बिल कैसे पास हो गए जबकि भाजपा के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है।
गौरतलब है कि जो अब तक सत्ता के साथ मलाई काट रहे थे क्या उस समय किसान खुशहाल था जो आज विल पास होने के बाद मुसीबत में आ गया है जो यह लोग किसानों के साथ सड़कों पर उतर आए क्या यह लड़ाई किसानों की है क्या किसानो के लिए बिल पेश होने के बाद ही समस्याएं पैदा हुई हैं उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न भागों में गन्ना किसानों का भुगतान समय से नहीं हो पा रहा है आज अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के गठन का ऐलान कर 250 संगठन उनके साथ मिलकर सरकार के खिलाफ 25 सितंबर को सड़कों पर उतरेंगे और भारत बंद किया जाएगा आप लोग किसानो के लिए संघर्ष करे यह अच्छी बात है लेकिन किसान के नाम पर अपनी राजनीति चमका कर निजी स्वार्थ के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना कहा की मानवता है लगातार किसान आत्महत्या कर रहा है किसानों का शोषण विभिन्न स्तरों पर बिचौलियों द्वारा किया जाता रहा है और आज भी किया जा रहा है क्या इन तथाकथित किसान नेताओं को कभी किसान के दर्द में अगुवाई करने की जिम्मेदारी नहीं थी क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि यह लड़ाई किसानों के लिए है या फिर बिचौलियों के लिए यह भी स्पष्ट होना चाहिए।
लॉकडाउन के दौरान प्रदेश के विभिन्न जनपदों में जो हालात सब्जी आपूर्ति करने वाले किसानों के साथ देखे गए वह काफी भयावह रहे बिचौलियों ने जो हालात किसानों के सामने पैदा किए किसी न किसी दशा में उससे तो निजात मिलना ही चाहिए उदाहरण के तौर पर किसान अपनी लौकी लेकर के थोक सब्जी मंडी पहुंचे वहां ₹200 कुंतल लौकी का भाव साथ में ही बिचौलियों ने ₹200 कुंतल की अपनी दलाली भी तय की क्या बिचौलियों द्वारा किसानों का यह बड़ा शोषण नहीं है। देश में कई प्रदेश में कुछ नामी-गिरामी नेताओ के बहुत सारे वेयरहाउस हैं जिन पर कई हजार करोड़ रुपए का खाद्यान्न खरीदने का कमीशन सरकार से मिलता है क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कहीं ऐसा तो नहीं कि उनको अपने निजी व्यापार का खतरा इस बिल से दिखाई दे रहा है और आज वह किसानों की हित की बात करके सड़कों पर उतरे यदि सरकार द्वारा बनाई गई कानून से किसानों को किसी प्रकार की हानि की आशंका है तो सरकार को उस आशंका को दूर करना चाहिए यदि इसके पश्चात भी किसानों के साथ सरकार कोई धोखाधड़ी होगी तो संगठन सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर कर आंदोलन करेगा ।जहां तक 25 सितंबर के भारत बंद का सवाल है किसानों के साथ हम लगातार उनके लिए संघर्ष की लड़ाई लड़ते रहेंगे लेकिन जिन संगठनों ने बंद का आवाहन किया है उन्होंने अन्य संगठनों के साथ क्या कोई बैठक की है क्या उनको उन्होंने अपने एजेंडे से अवगत कराया है क्या उन्होंने सारे संगठनों को अपना बंधुआ समझ लिया है या इस देश के किसानों के नाम पर राजनीति करने के ठेकेदार बन गए हैं ।यह अहम बिंदु हैं जिन पर आम किसान को भी विचार करना और उसके बाद ही हम संघर्ष के लिए सड़कों पर उतरे तो शायद किसानों की हित की लड़ाई होगी और सरकार हमारी बात मानने के लिए विवश होगी।
राष्ट्रीय किसान मंच की सरकार से मांग है किसानों के हित के लिए कोई योजना बनाने का काम करें तो कम से कम सरकार किसानो से एक बार परामर्श करे तो योजनाएं धरातल पर अधिक लाभ कारी सिद्ध हो सकती है।
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