स्वामी अग्निवेश: सर्वधर्म समभाव की परंपरा के जीते जागते प्रतीक
योगेन्द्र यादव
अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
गेरुआ वस्त्र, सौम्य मुस्कान, तनी हुई रीढ़ और ओजस्वी वाणी -- स्वामी अग्निवेश की उपस्थिति किसी भी समारोह या आंदोलन को प्रज्वलित कर देती थी। स्वामी जी को देखकर धर्म का मर्म समझ आता था -- ना कर्मकांड, ना अबूझ बातों का आडंबर, न हीं अपने मत के प्रति अहंकार। बिना कोई प्रवचन दिए स्वामी जी अपने जीवन से हमें सिखा गए कि एक सच्चे सन्यासी की कर्मभूमि मंदिर, मठ, आश्रम, जंगल या पहाड़ नहीं बल्कि समाज के भीतर है। हर सामाजिक कुरीति से लड़ना और हर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना ही सच का मार्ग है।
आज के समय स्वामी जी की सबसे बड़ी सीख है हिंदू धर्म की उदात्त परंपरा को जीवित रखने का उनका जीवट। धर्म के नाम पर असहिष्णुता और दबंगई के इस माहौल में स्वामी जी सर्वधर्म समभाव की परंपरा के जीते जागते प्रतीक थे। चाहे सांप्रदायिक दंगा हो या किसी मानवाधिकार के हनन का मामला, कठिन से कठिन स्थिति में भी स्वामी जी हिम्मत के साथ खड़े रहते थे। अंततः इसी हिम्मत की कीमत उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर अदा की।
नमन!
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