पंद्रह बरस बीत गए पर इस पानी की टंकी से ना टपकी एक बूँद , बिना पानी ही डकार गए निर्माण लागत वाला पैसा
कौन ग्राम प्रधान जी ना ना ना....... उन्होंने तो कागज पर खड़ी कर दी टंकी , विधायक जी वाली सरकार के पास पैसा है कहा? ऐसा हम नहीं ग्राम प्रधान जी का कहना हैं। ताज्जुब हैं इस टंकी की आस में गाँव वाले उनको बनाते रहे हैं अब तक प्रधान और खुद पीकर जी रहे हैं गंदा दूषित पानी।
विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
जरहां,बीजपुर सोनभद्र। लगभग हजार किलोमीटर दूर बैठा एक खबरिया तंत्र जिसने मुझको आज सैटेलाइट सम्पादन की सुविधा दे दी हैं आज जरहां के ग्राम सभा सेंदुर के धरतीडांड (वही महमड़ वाले गुरूजी श्रुतिदेव तिवारी जो आठ महीने बाद दीदार दे पाए थे सहाय जी के राज में ) के लोकल लोगों ने गांव की समस्या को एक गूँज के रूप में मुझ तक पहुँचाया। अब इसको एक हजार किलोमीटर दूर लोगों का भरोसा लोकल न्यूज आफ इण्डिया पर कहकर अपने आप को खुश होने का मौका दे या पत्रकार बिरादरी की तरफ से माफ़ी मांगे की इतनी सुन्दर सुग्घड़ दिखने वाली टंकी जो की सीता मैया के मृग मारीच जैसी दिखती हैं उनको नजर ना आ पायी।
खैर आइये 15 साल पुरानी बानी इस सरकारी ग्रामीण विकास वाली जागीर यानी पानी की टंकी से आपका परिचय करवाते हैं। मुझ तक पहुंचे आधे अधूरे ज्ञान के हिसाब से यह पूरा मामला म्योरपुर ब्लाक के ग्राम सभा सेंदुर के धरतीडाँड़ का है। जहाँ जल निधि की ओर से ग्राम प्रधान को लाखों का बजट देकर एक पानी की टंकी तैयार कर मुहल्ले के घर घर में पानी देने की योजना सरकार के जेहन में आई होगी उस समय वाली सरकार के। आज वाली सरकार इसी योजना को हर घर नल के नाम से ऐसे ही बहाने की दुबारा प्रैक्टिस करे शायद हालांकि राम राज हैं दो चार बूँद आएगा जरूर पानी का पीने का होगा या नहीं यह तो रामलला जाने। पर यह सपना भी बेकार ही हुआ।
शोले वाली मौसी ने जय भैया को बताया की वीरू वाली यह पानी की टंकी को गाँव के ही कुछ गब्बर के लोगों ने हेरा फेरी कर इसके पैसे को डकार लिया होगा । बस आप यह मानो कि यह कहने आज से पंद्रह बरस पहले दिल्ली से लगभग हजार किलोमीटर दूर बसे इस गाँव में 2005 में शुरू हुई थी और इस कहानी के घटिया गब्बर , कालिया और साम्भा टाइप के किरदारों के कारण अब 2021 तक चलती आ रही हैं जिन्होंने ठाकुर के बजाय इस टंकी के ही हाथ पेअर काट रखे हैं। पर कागज़ पर बिलकुल बुलंद हैं गुरूजी लोगो की गोरखनाथ जी वाले सहाय साहब वाली हाजिरी की तरह। हाँ बस पानी की टंकी आज भी मुहल्ले वालों के लिए नसीब नहीं हुई जैसे स्कूलों में तालाबंदी या गुरूजी लोगो के ना होने के कारण कायाकल्प नहीं हो पाया।
आखिर क्या वजह हैं कि पंद्रह बरस में इसके कल पुर्जे और औजार जिससे पानी की बूँद अमृत धारा बन इन प्यासे गाँव वालो तक पहुँच जाए। इसके रहस्य को सुलझाने के लिए इसके बारे में जब ग्राम प्रधान से पूछा जाता है, तो प्रधान द्वारा बजट खत्म होने की बात बोल कर पूरा मामला रफा दफा कर दिया जाता है। जबकि देखा जाय तो वर्तमान प्रधान ही 2005 के कार्यकाल में थे। गांव के लोगों की उम्मीद और भरोसा अब खत्म होता नजर आ रहा है। मुहल्ले वाले दूषित पानी पीने को मजबूर है। लाखों की बजट का वारा न्यारा हो चुका हैं और आज तक मजाल हैं कोई जांच हुई हो वैसे माफ़ करना इस जिले में जांच वाली खिचड़ी पकती भी नहीं हैं क्योकि जांच करने वाला भी
ग्रामीणों का माने तो कुछ सामान भी खरीदा गया था लेकिन प्रधान व सदस्यों की मिली भगत से अब तक तो समान भी शायद निजी कार्य में लगा लिए गए। ग्रामीणों ने विभाग के उच्चाधिकारियों से इस मामले की पूरी जांच की मांग कर इसको पूरा करवाने की आस में लगे हैं जिससे मुहल्ले वालों को शुद्ध पीने योग्य पानी मिल सके। अब तक हार कर डीएम साहब की चौखट पर इस दर्द की दस्तक गाँव वालो ने दी है बस इस उम्मीद के साथ कि उनके बच्चो को पानी मिल सकेगा।
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