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साप्ताहिक समाचार पत्र के मालिक व संपादक से सीखना चाहिए निस्वार्थ मदद करना



लोकल न्यूज ऑफ इंडिया 

अलीगढ़। जबसे कोरोनाकाल प्रारंभ हुआ है तबसे मुकेश कुमार सिंह समाज में अजनबियों को भी सहायता करते देखे गए जैसे कभी अस्पताल में समाचार संकलन के वास्ते हॉस्पिटल गए और वहाँ कोई भी अंजान परेशानी की अवस्था में दिख गया तो खुद उसके पास जाकर एक सच्चे हितैसी बनकर उसकी समस्या को सुनते अगर समस्या निपटने लायक होती तो उसके लिए भरकस प्रयास करते हैं जैसे हॉस्पिटल में भर्ती कराना या खून की व्यवस्था कराना कभी - कभी तो अपना ही खून दान कर बीमार लोगों की मदद की उनकी इस आदत के वारे में जिला अस्पताल के ब्लड बैंक कर्मचारी भली- भाँति जानते हैं जब इस तरीके से युवा संपादक जी को कार्य करते देखते हैं तो एक सकारात्मक सोच आती है कि आज के समय में अखबार को अखबार की तरह चलाना और अपनी छवि को साफ सुधरी छवि को बनाये रखना बहुत ही बड़ी बात है , जब हमने संपादक जी के बारे में जानने की कोशिश की तो मालुम हुआ कि वह एक मध्यम से आते हैं परिवार में माता-पिता व एक छोटे भाई के साथ अपनी पत्नी और बेटा बेटी के साथ खुशहाल जिंदगी बिता रहे हैं , माता और पत्नी भी आगरा रोड स्थित परिवार नियोजन सरकारी योजना के माध्यम से दिन रात गाँव के बीमार महिलाओं की मदद करने के लिए तत्पर रहती हैं। जबसे कोरोना काल  आया है तब से एक दिन भी संपादक मुकेश सिंह अपने घर में नहीं रहे । 



जब उनसे पूछते है आपकी गाड़ी का और घर का खर्चा कैसे चलता है उन्होंने बड़ी शालीनता से जबाब दिया कि हमनें अपनी 35 वर्ष की उम्र में एक बात बहुत अच्छे तरीके सीखी है कि जैसे कमाओगे वैसे ही गवाओगे तो क्यों न कमाने के अच्छे तरीके अपनाओ जिसजे तुम्हें उसके परिणाम भी अच्छे ही मिलेंगे और हमेशा जायज कार्य करिए परेशान की मदद करिए, अगर आपके सामने जो भी परेशानी आएंगी जैसे रास्ते पर ब्रेकर आते हैं तो गाड़ी धीमी हो जाती या जोर का झटका लगता है ,लेकिन चंद सेकेंड में आप और हम स्थिर हो जाते है ,  और अगर हम गलत तरीके से धन अर्जित करेंगे तो रास्ते में ब्रेकर नहीं गड्ढे आएंगे जिनको पार करना आसान नहीं होता जिसके कारण एक बड़ी घटना का सामना करना पड़ता है अब रही हमारे परिवार के खर्चे की बात तो गाँव में थोड़ा सा खेत है , खाने की व्यवस्ता तो वहां से हो जाती है और माँ और पत्नी का भी सहयोग रहता है, वर्ष में एक या दो प्लाट या मकान की खरीद परोख्त कराकर बेहतर खर्चा निकल जाता है ,रही बात अखबार की तो अखबार अपनी टीम के सहयोग से अपना खर्चा विज्ञापन माध्यम से खुद निकाल लेता है , ये सारी बात जब संपादक जी ने बताई तो मुझे ऐसा लगा कि इंसान को अपनी अपेक्षा और नियत साफ रखनी चाहिए जिंदगी बेहतर और शान से ही बीतेगी। 


सबसे अहम बात है कि संपादक जी मदद करने के लिए ये नहीं देखते की परिचित है या अपरचित  कोई भी व्यक्ति दिन हो या रात किसी भी समय कॉल करता है तो संपादक स्वयम ही फोन उठाते हैं ,बहुत से मामले तो फोन पर सलाह देकर निपटा देते हैं ।मदद करते समय जात - पात धर्म- जाति  के बारे में नहीं सोचते ।मदद करनी है तो करनी है , मेरा मानना है कि एक साप्ताहिक अलीगढ़ सम्राट समाचार पत्र के संपादक  अकेले इतनी मदद कर सकते हैं अगर जनता का सहयोग और प्रोत्साहन मिला तो वो समाज के लिए क्या क्या कर सकते हैं , मैने जितना संपादक के बारे में जाना वो आपको बता दिया ,अब आप सभी की जिम्मेदारी है कि ऐसे लोगों का समाज सम्मान करे और ह्रदय से समर्थन करने लगे तो द्वेष भावना ,परेशानी ,जाति धर्म की दरार कभी  नहीं बढ़ेगी और हर समस्या को मिल झुल कर निपटा सकते हैं ।

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