विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
गुरुग्राम. हरियाणा की राजनीति में गुरुग्राम की सियासी मायने हमेशा से अलग रहे हैं क्योंकि माना यही जाता हैं कि हरियाणा की आर्थिक सत्ता गुरुग्राम के हाथों में हैं और अगर इस शहर मे राजनीतिक रसूख और सब के बीच एक सम्मान और बेदाग छवि की बात की जाय तो वो मदनलाल ग्रोवर जी के बिना कभी पूरी नहीं होगी. मेरी उनसे करीब आठ दस मुलाकातें हुई होगी उनसे पर उन मुलाक़ातों ने उनकी राजनीतिक सोच से परे सामाजिक परिसमापक वाली उनकी भूमिका से मुझे रूबरू करा दिया था. साफ़ स्पष्ट नीतियों और अपने बेटे मोहित ग्रोवर के अंदर सेवा नीति का जो समागम वो देखना चाहते थे वो साफ़ झलकता था. उनकी बातों से उनके राजनीतिक उड़ान भरने की अपनी अलग कशिश दिखती थी जो वो मोहित ग्रोवर के जरिए समाज़ को देना चाह्ते थे वो भी बिना किसी को हराये और बिना किसी को हटाए. वो तो जीत चाहते थे और वो जीत अपने बेटे के जरिए लोगों मे अपने मौजूद व्यक्तित्व वाली पैठ के जरिए.
विधानसभा चुनावों में मोहित ग्रोवर ने एक अच्छी लड़ाई लड़ी और जीत भले ही ना मिली हो पर राजनीतिक अखाड़े में अपनी मौजूदगी का एक जबरदस्त एहसास दिलाया और अगर अब मोहित ग्रोवर राजनीतिक जीत के रूप मे आगामी चुनावो में अपनी मौजूदगी बनाते हैं तो शायद यह सच्ची श्रद्धांजलि मदनलाल ग्रोवर को होगी और उनकी सोच को समाज के आखिरी पायदान तक बिना किसी लाग लपेट के पहुचाने के उनके लक्ष्य प्राप्ति की एक कामयाब कोशिश.
विनम्र श्रद्धांजलि बुजुर्ग और शुचिता की राजनीति के परिचायक मदनलाल ग्रोवर जी को.
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