प्रिया पटवाल
लोकल न्यूज़ आफ इण्डिया
म्योरपुर सोनभद्र: दक्षिणांचल में कोयले की खपत कम होने से मिल सकती है प्रदूषण में थोड़ी राहत-
देश का तीसरा सर्वाधिक प्रदुषित क्षेत्र में एक उर्जान्चल मे कोयले की खपत कम होगी तो लोगो पर उसका क्या असर होगा विश्व के विकसित और विकासशील देश इस बात को लेकर सहमत है कि कोयला आधारित विजली घरों को कम किये बिना मौसम परिवर्तन और प्रदूषण को कम करना कठिन है।लेकिन इसका असर क्षेत्र के विस्थापितों और कर्मचारियों अधिकारियों पर क्या होगा।कानपुर आई आई टी का जेटीआरसी विभाग इस मसले पर शोध कर रहा है।पिछले दिनों एक टीम भी यहां की जमीनी हकीकत से रुबरु होकर लौटी है। साथ ही चार दिन पूर्व संस्थान ने देश के पत्रकारों, संपादकों, असर, और शोध छात्रो के साथ प्रोफेसरों के बीच दो दिन का परिचर्चा आयोजित किया।पत्रकार और पर्यावरण कार्यकर्ता जगतनारायण विश्वकर्मा ,आनन्द गुप्ता ,युवा पत्रकार बाबू लाल शर्मा, प्रवीण पटेल ने परिचर्चा में उर्जान्चल की स्थिति पर बोलते हुए बताया कि सिंघरौली परिक्षेत्र में 1954 से लेकर अब तक लोग चार बार विस्थापन झेल चुके है।।विस्थापितों के जीवन मे सुधार नही आया है।और शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार के अभाव में लोग भटक रहे है। क्षेत्र में 11 से ज्यादा कोयला खदानें है और उतने ही बिजली घर और सैकड़ो क्रेसर प्लांट है। 1954 में 119 गांव के सवा लाख लोग विस्थापित हुए उसमे लोग विभिन्न गाँवो में बसे आज परिवार बढ़ गया है,।सिंगरौली परिक्षेत्र में प्रतिदिन 326980 टन कोयला रोज जलता है जिससे 2000 किलो फ्लोराईड,100 किलो मर्करी सहित सीसा, नाइट्रेड, आदि भारी तत्व 40 किमी परिक्षेत्र में दस लाख आबादी को प्रभावित कर रहा है।दस हज़ार से ज्यादा लोग फ्लोरोसिस से पीड़ित है इससे ज्यादा लोग पागल पन,शारीरिक विकास में कमी, बांझपन ,हाथों में कम्पन, चर्मरोग,कार्य करने में कमी जैसी समस्या से जूझ रहे है।लाख,आँवला, विलुप्त हो गए आम पपीता तेंदूपत्ता ,महुआ डोरी उत्पादन घट रहा है।ऐसे में कोयला उत्पादन घटता है तो प्रदूषण में कमी आ सकती है।दूसरी तरफ दो कोयला आधारित जीवन जीने वाले सवा लाख लोग न केवल बेघर हो जाएंगे रोजी और रोटी के लाले पड़ जाएंगे। जेटीआरसी विभाग के प्रो० प्रदीप स्वर्णकार, शोध छात्र सात्विक ,मनीषा सहित देश के विभिन्न राज्यो के पत्रकारों ने भी जस्ट ट्रांजीशन परिचर्चा में अपने विचार रखे /
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