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चिकित्सको की नहीं कमी फिर भी स्वास्थ्य विभाग नहीं के रहा सेवाएं

 


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लोकल न्यूज ऑफ इंडिया 

हरिद्वार। कोरोना महामारी से लोगों को बचाने के लिए हरिद्वार जिला प्रशासन को चिकित्सा संसाधनों व जरूरी सुविधाओं के अलावा चिकित्सकों की कमी से भी जूझना पड़ रहा है।

जहां एक ओर कोरोना के मरीजों के लिए लगातार कोविड सेंटर बनाए जा रहे है वहीं बड़ा सवाल ये की क्या वहा चिकित्सा स्टाफ भी पर्याप्त है। यदि नहीं तो चिकित्सा जगत के पेशेवरों की सेवाएं क्यों नहीं ली जा रही हैं। जबकि अकेले हरिद्वार में ही दो बड़े मेडिकल कालेजों (ऋषिकुल एवं गुरुकुल आयुर्वेदिक कालेज) के सैकड़ों विशेषज्ञ शिक्षक, चिकित्सक मौजूद हैं।

कोरोना संक्रमण की दूसरी खतरनाक लहर से निपटने मंें सरकार व जिला प्रशासन की कार्यशैली ही कारगर साबित होती है। यदि इच्छा शक्ति हो तो संसाधनविहीन भी सभी समस्याओं से निपटने में सक्षम हो जाता है। फिर ऐसे मंें संसाधन होने के बावजूद यदि उसका इस्तेमाल ना किया जाए तो ये अनुभवहीनता व इच्छाशक्ति की कमी को ही दर्शाता है। ऐसा ही कमोवेश हरिद्वार में इन दिनों देखा जा सकता है। जहां दो बड़े मेडिकल कालेज होने के बावजूद उनमें कार्यरत सैकड़ों चिकित्सक शिक्षकों, ट्रेनी चिकित्सक व स्टाफ का उपयोग नहीं किया जाना हैरत वाली बात है। सिर्फ कोविड सेंटर बना देने व आक्सीजन सिलेंडर व अन्य उपकरण रख देने से काम नहीं चलता, जब तक की वहां पर्याप्त संख्या में मेडिकल स्टाफ नहीं होगा।

जिन दो बड़े मेडिकल कालेज होने के बावजूद उनमें कार्यरत सैकड़ों चिकित्सक शिक्षकों, ट्रेनी चिकित्सक व स्टाफ की बात की जा रही है वह सब वर्तमान में कोरोना संक्रमण के चलते छुट्टी पर है जबकि वेतन पूरा मिलेगा। सवाल ये भी है कि जब ऐसी आपदा में प्राइमरी के शिक्षकांें की सेवाएं ली जा सकती हैं तो चिकित्सकों की क्यों नहीं। जबकि वह महामारी में अपनी पूरी योग्यता व अनुभव के साथ सेवाएं देने में ज्यादा सक्षम हैं।

यह बात विचारणीय है कि हरिद्वार शहर के प्रतिष्ठित ऋषिकुल एवं गुरुकुल आयुर्वेदिक कालेज परिसरों एवं संबद्ध चिकित्सालयों में दर्जनों युवा विशेषज्ञ चिकित्सक, शिक्षक मौजूद हैं, जिन्हें राजकोष से ही वेतन मिलता है। संक्रमण से बचाव के उद्देश्य से दोनों कालेजों में वर्तमान में शैक्षिक गतिविधियां भी स्थगित हैं, ऐसे में विशेषज्ञ शिक्षकों ध्चिकित्सकों की सेवाएं लेकर महामारी पीड़ित मानवता को राहत दी जा सकती है। शायद प्रशासन इतने बड़े चिकित्सा संसाधनों को उपचार ड्यूटी से बचाना चाहता है। सवाल यह भी है कि जब गैर चिकित्सा पेशेवर शिक्षक, कर्मचारी एवं अधिकारी कोरोना महामारी के दौरान विभिन्न व्यवस्थाओ के अन्तर्गत ड्यूटी में लगाए जा सकते हैं तो फिर बड़ी संख्या में उपलब्ध चिकित्सा जगत के पेशेवरों की सेवाएं क्यों नहीं ली जा रही हैं?

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