- 70 फुट लंबी जलती मशाल को कंधे पर उठा कर की गांव की परिक्रमा
- प्राकृतिक आपदा को टालने के लिए देवी महामाई ने लिया ज्वाला का रूप
निखिल कौशल
कुल्लू।हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में हर एक मेला देव परंपरा के साथ जुड़ा है और मेलों का इतिहास किसी न किसी देवता के साथ जुड़ा है। लेकिन सैंज घाटी की उप तहसील सैंज की ग्राम पंचायत कनौन में हूंम मेले में देव परंपरा की अनूठी मिसाल देखने को मिली। देवता ब्रह्मा व देवी भगवती के होम मेले में देव हारियानों द्वारा लगभग 70 फुट लंबी लकड़ी की जलती मशाल को कंधे पर उठाकर देव कार्य विधि अनुसार गांव की परिक्रमा कर देब कार्य को निभाया। इस परम्परा को देखने के लिए कनौन में देवी भगवती व ब्रह्मा के मंदिर में सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने हाजिरी भरी। मान्यता है कि इस दिन देवी भगवती ज्वाला रूप धारण कर सभी की मनोकामना पूरी करती है ।काबिले गौर है कि हर वर्ष आषाढ़ महीने में देवी भगवती लक्ष्मी अपने क्षेत्र की रक्षा के लिए हूम जगराते पर्व का आयोजन करती है। देवी के गुर रोशन लाल ,झावे राम ने बताया कि क्षेत्र में घटने वाली प्राकृतिक आपदा या बुरी आत्मा तथा भूत पिशाच की नजरों से बचने के लिए इस हूम पर्व का आयोजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस पर्व में मशाल जलाने का कारण है कि देवी भगवती मशाल में ज्वाला रूप धारण कर उक्त परिस्थितियों से निजात दिलाती है ।सोमवार को देवी भगवती और पराशर ऋषि तथा ब्रह्मा ऋषि के रथ को पूरे लाव लश्कर के साथ माता के मंदिर देहुरी में पहुंचाया । वहां देव पूजा अर्चना कर रात्रि 12:00 बजे के करीब यह देव कार्य शुरू हुआ। मंदिर के पास लगभग 70 फुट लंबी मशाल को देव आज्ञा अनुसार मंदिर में जलते दिए के साथ जलाया और देवता के करिंदों ने इस मशाल को कंधे पर उठाकर मंदिर के चारों ओर परिक्रमा कर लगभग 1 किलोमीटर दूर कन्नौन गांव पहुंचाया। गांव के बीच मिसाल को खड़ा कर देब खेल का निर्वाह हुआ और जलती मशाल के साथ देवी भगवती के गुर व उनके अंग संग चलने वाले शूरवीर देवता तूदला, बनशीरा खोडू, पंचवीर व देवता जहल के गुर ने जलती मशाल के आगे देवखेल कर देव परंपरा का निर्वाह किया। इसके पश्चात देव कार्य संपन्न होने के पश्चात इस जलती मशाल को गांव के बीच खड़ा किया और इसके चारों ओर नाटी डाली।
कनौन हूम में पधारे कोटला (लौल) के पराशर ऋषि
देवी भगवती ब्रह्मा के हूम मेले में इस बार देवी लक्ष्मी के भाई पराशर ऋषि ने भी अपने हारीयानों के साथ शिरकत की और इस पर्व की शोभा भी बड़ाई।
गौर है कि भले ही यह पर्व देवी भगवती व ब्रह्मा ऋषि का है लेकिन वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार कोटला के लौल गांव के पराशर ऋषि इस मेले में परंपरा का निर्वाह करने के लिए पहले भी आते थे और इस बार भी देवी महामाई के बुलावे पर पराशर ऋषि हूम मेले में पधारे।
अश्लील गालियों से भगाई प्रेत आत्माएं
हालांकि अश्लील गालियों पर सरकार द्वारा रोक लगाई है लेकिन यहां पर परम्परा का निर्वाह करने के लिए अश्लील गालियों का आन-प्रदान होता है। जैसे ही मशाल को कन्नौन गांव की ओर लाया जाता है तो नाले में पहुंचकर अश्लील गालियां का आन प्रदान होता है। देव हारियानों के अनुसार या गालियां भूत प्रेत वह बुरी आत्मा को भगाने के लिए दी जाती है। नाले में इसलिए दी जाती है ताकि आम जनमानस को यह गालियां ना सुनाई दे।
बढ़ई समुदाय के लोग बनाते हैं लकड़ी की मशाल
गौर है कि देवी महामाई के इस हूम में जलाए जाने वाली लकड़ी की मशाल को देहुरी गांव के बढ़ई समुदाय के लोग इस मशाल को भूखे पेट से तैयार करते हैं। कारीगर तुले राम ने बताया कि बुजुर्गों से चली आ रही इस परंपरा को आज हम भलीभांति से निभा रहे हैं क्योंकि महामाई के इस कार्य को हम दिल लगाकर करते हैं और भगवती का हमारे ऊपर आशीर्वाद रहता है ।
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