- भारतीय संस्कृति चिर पुरातन नित्य नूतन है
अरुण कुमार
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
गुरुग्राम: भारतीय नववर्ष का प्रारंभ आज 02 अप्रैल दिन शनिवार को चैत्र नवरात्रि से हुआ है. हिंदू नववर्ष को विक्रम संवत या नव संवत्सर कहते हैं. इसका प्रारंभ सम्राट विक्रमादित्य ने किया था, जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होता है. आज भारतीय नववर्ष 2079 या विक्रम संवत 2079 का प्रारंभ हुआ है,
भारतवर्ष ने विश्व को काल गणना का अद्वितीय सिद्धांत प्रदान किया है । सृष्टि की संरचना के साथ ही ब्रह्माजी ने काल चक्र का भी निर्धारण कर दिया । ग्रहों और उपग्रहों की गति का निर्धारण कर दिया ।
भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है, ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भारत वर्ष में काल गणना प्रारंभ हुई थी। शास्त्र कहते है:-
चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि
शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति। - ब्रह्म पुराण
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। वसंत ऋतु में वृक्ष, लता फूलों से लदकर आह्लादित होते हैं जिसे मधुमास भी कहते हैं। इतना ही यह वसंत ऋतु समस्त चराचर को प्रेमाविष्ट करके समूची धरती को विभिन्न प्रकार के फूलों से अलंकृत कर जन मानस में नववर्ष की उल्लास, उमंग तथा मादकाता का संचार करती है, प्रकति भी पूर्ण रूप से इसका स्वागत करने हेतु तैयार रहती है ।
हिंदू संस्कृति के अनुसार नव संवत्सर पर कलश स्थापना कर नौ दिन का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ कर नवमीं के दिन हवन कर मां भगवती से सुख-शांति तथा कल्याण की प्रार्थना की जाती है। जिसमें सभी लोग सात्विक भोजन व्रत उपवास, फलाहार कर नए भगवा झंडे तोरण द्वार पर बांधकर हर्षोल्लास से मनाते हैं।
इस तरह भारतीय संस्कृति और जीवन का विक्रमी संवत्सर से गहरा संबंध है
नवरात्रि का तत्व बताते हुए आगे आचार्य जी ने कहा नवरात्रि अर्थात जागना, जो सोए हुए है उन्हे हम जगा दे, जो जाग रहे है उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचा दे , यहीं सही साधना हो सकती है
नवरात्रि अर्थात शक्ति उपासना का पर्व, गौ शक्ति है, गौ प्रकति है हम गौ का संरक्षण कर , गौसेवा कर भी शक्ति उपासना का ये पर्व मना सकते है
इच्छाशक्ति-आत्म बल।
क्रिया शक्ति - सही कर्म करने की शक्ति।
ज्ञान शक्ति - सही कर्म का ज्ञान।
ये तीनो शक्ति हमे नवरात्रि साधना से सहज मिल जाती है
नवरात्रि का त्योहार चैत्र (वसंत) की शुरुआत में प्रार्थना और उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। यह काल आत्मनिरीक्षण और अपने स्रोत की ओर वापस जाने का भी है। वैदिक विज्ञान के अनुसार, पदार्थ अपने मूल रूप में वापस आकर फिर से बार-बार अपनी रचना करता है। यह सृष्टि सीधी रेखा में नहीं चल रही है बल्कि वह चक्रीय है। प्रकृति के द्वारा सभी कुछ का पुनर्नवीनीकरण हो रहा है- कायाकल्प की यह एक सतत प्रक्रिया है। तथापि सृष्टि के इस नियमित चक्र से मनुष्य का मन पीछे छूटा हुआ है।
नवरात्रि
का त्योहार अपने मन को वापस अपने स्रोत की ओर ले जाने के लिए है। उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से जिज्ञासु अपने सच्चे स्रोत की ओर यात्रा करता है।
जब भी जीवन में सत्व बढ़ता है, तब हमें विजय मिलती है। तो आये हम सब सद्बुद्धि की देवी गाय , गायत्री की प्रार्थना करते हुए आगे बढ़े, एवम नववर्ष में नए शुभ संकल्प ले , अपने अपने स्तर पर गौसेवा, नर सेवा करते रहे ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः
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