राष्ट्रीय एवं सामाजिक उत्थान के सजग प्रहरी का पर्याय- "वर्तिका महिला मंडल"
अनिल कुमार द्विवेदी
लोकल न्यूज़ ऑफ इंडिया
परिमार्जित समाज परिस्थितियों व स्वविवेक पूर्ण कार्य करते हुए अपना गौरव गाथा लिखवाता है और युगो- युगो तक उनका गौरव गीत गाया जाता है, जिसकी प्रतिध्वनि समाज में समय-समय पर प्रतिबंधित होती है कि-
यदि अंधकार से लड़ने का, संकल्प कोई कर लेता है।
तो एक अकेला जुगनू भी सब अंधकार हर लेता है ।
बीजपुर, सोनभद्र।आज कोरोना संकट के समय लाकडाउन के कारण घरों में बंद बच्चों की सिर्फ धमाचौकड़ी ही खोने का डर नहीं है अपितु यह उनके बाल स्वभाव,मनः मस्तिष्क, चंचलता और सबसे बढ़कर उनके बचपना पर भी अपना प्रभाव डाल सकता है इस मुसीबत की घड़ी में इन्हीं बाल अधिकारों के संरक्षण की बीड़ा उठाती 'महिला वर्तिका मंडल, (स्थापना वर्ष 1985) की अध्यक्षा पदमा आयंगर एवं उनकी टीम सिर्फ एनटीपीसी परिसर ही नहीं वरन आसपास के संपूर्ण क्षेत्र के हर उम्र के बच्चों को उनके योग्यता अनुसार सिर्फ आर्ट, पेंटिंग,सिंगिंग,डांसिंग क्राफ्ट, मेकिंग, योगा मार्शल आर्ट एवं खेलकूद तथा कताई, बुनाई, सिलाई एवं गरीब बच्चों हेतु नि:शुल्क शिक्षण के अतिरिक्त प्रौढ़ शिक्षा केंद्र से ही
व्यक्तित्व विकास में ही नहीं लगी हुई है अपितु सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए तथा कोरोना संक्रमण से बचाव हेतु जागरूकता फैलाते हुए अब तक स्वनिर्मित लगभग 1200 मास्क वितरित करते हुए सामाजिक संस्थाओं में अपना अलग मुकाम ही नहीं बना चुकी है अपितु धीरे-धीरे इनकी ख्याति जिला एवं प्रदेश तक भी महसूस की जाने लगी है।
लाकडाउन के इस कठिन समय में भी यह टीम बच्चों को उनके घरों में ही आनलाइन ज्ञानात्मक एवं भावनात्मक विकास में लगी हुई है।
"एलआईएन रिपोर्टर" से हुई वार्ता के क्रम में वर्तिका महिला मंडल की उपाध्यक्षा रश्मि चौकसे ने समाज से उसके राष्ट्रीय कर्तव्यों का निर्धारण करते हुए अपने अभीष्ट सामाजिक दायित्व को पहचानने और उसके सृजनात्मक उपयोग का आह्वान करती है।
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