यमन युवा युसूफ का इलाज और घर वालो से मिलाकर गुरुग्राम सिविल अस्पताल ने किया अतिथि देवो भवः का मूलभाव स्थापित, कादरपुर में मिला था युसूफ , हाल में हुई थी न्यूरो सर्जरी
यमन युवा युसूफ का इलाज और घर वालो से मिलाकर गुरुग्राम सिविल अस्पताल ने किया अतिथि देवो भवः का मूलभाव स्थापित, कादरपुर में मिला था युसूफ , हाल में हुई थी न्यूरो सर्जरी
विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
दिल्ली। लॉक डाउन में जहां आज देश भर में सब कोरोना काल की कैद वाले जीवन को जी रहे है वही कई बेघर , दिहाड़ी मजदूर और दूर दराज से आये हुए नौकरी पेशा लोग इधर उधर भटक भी रहे है कही राशन नहीं है तो कही आशियाना। सरकार और समाज की कोशिश जारी है कि कोई भूखा ना सोये। वही दूसरी ओर देश में मोदी जी की अगुवाई में ताली थाली से लेकर दिया जलाने वाला भारत आज पूरी दुनिया के लिया एक मिसाल बन चुका है और छोटे बड़े सभी देशो को जरूरी दवा और सामान मुहैया करवाकर वसुधैव कुटुम्बकम की परिभाषा को चरितार्थ भी कर रहा है। अमेरिका से लेकर दुनियाभर में और भारत में कोरोना से युद्ध लड़ रहे और इलाज कर रहे डॉक्टर्स को लोग फूल वर्षा करके और हॉर्न बजाकर स्वागत और उनका आभार जता रहे है। क्योकि आज जब मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारा सब बंद है तो इस धरती के भगवान यह डॉक्टर्स आगे बढ़कर बिना लाग लपेट , जात पात के भेद भाव के सबका इलाज कर रहे है।
गुरुग्राम में एक ऐसी घटना हुई जो वास्तव में भारत सरकार का गौरव बढ़ाने वाली रही वैसे तो गुरुग्राम में समाजसेवी , व्यापारी और राजनेता भरे पड़े है पर जैसे ही बात सरकारी अस्पताल की होती है वैसे सबके मन में बस खानापूर्ति की बात समझ में आती है जिसको पूरी तरह से गलत साबित किया है डॉक्टर योगेंद्र सिंह ने।
अपनी पत्नी की मदद से यमन के युवा युसूफ न्यूरो मरीज जिसकी हाल में सर्जरी हुई थी और गुरुग्राम में 18 अप्रैल को कादर पुर में उसको अज्ञात के नाम से नामजद कर एम्बुलेंस की मदद से सिविल अस्पताल , सेक्टर १० , गुरुग्राम लाया गया था , का इलाज और उसको एम्बेसी की मदद से उसके परिवार से मिलाकर। अब आप सोच रहे होंगे कि यह तो डॉक्टर का धर्म था पर अगर परदे के पीछे की कहानी सुनेगे तो आपको लगेगा की धर्म से हटकर इस लॉक डाउन में इस डॉक्टर दंपत्ति ने कैसे किसी के घर के चिराग को बचाया। युसूफ जो हिंदी और इंग्लिश भाषा बोल नहीं पा रहा था और न्यूरोसर्जिकल मरीज होने के नाते सर्जरी के कारण अस्पताल में इधर उधर भागते हुए सबके लिए सरदर्द बना था और देखने में मनोरोगी जैसा बर्ताव कर रहा था की बात समझने में डॉक्टर की टीम को बहुत मेहनत करनी पडी . और जब कागज़ और पेन मिलने पर युसूफ ने कुछ लिखा जिसको जानकारो ने अरबी भाषा बतायी तो गूगल ट्रांस्लेशन की मदद से डॉ योगेंद्र ने जाना कि यह अरबी भाषा में लिखा हैं युसूफ यमन। और जिसका पासपोर्ट भी खो गया था तो डॉक्टर ने यमन दूतावास से संपर्क साधने की कोशिश की पर इंटरनेट पर गलत जानकारी होने के कारण दूतावास का पता बदल जाने के कारण उससे संपर्क नहीं हो पाया जिसमे आगे बढ़कर उनकी पत्नी डॉ सरोज यादव ने दिल्ली पुलिस में ग्रेटर कैलाश के थानाध्याक्ष सोमनाथ पूर्थी से मदद मांगी जिन्होंने यमन दूतावास का पता कांस्टेबल हवा सिंह को भेजकर लगाया और एम्बेसी की मदद से युसूफ की पहचान यमन नागरिक के रूप में सत्यापित करवाने के बाद कल रात मेदांता अस्पताल के सामने एम्बेसी के अधिकारियों और युसूफ के परिवार को सौपा . ज़रा सोचिये जब आज लॉक डाउन में लोग अपने घरो से निकलने की नहीं सोच रहे तो एक डॉक्टर दंपत्ति का यह अतिथि देवो भवः को हकीकत में दिखाने का प्रयास भारत के संसकारो और संस्कृति को यमन जैसे देश के लिए जैसा क्यों नहीं लगेगा।
डॉक्टर योगेंद्र सिंह ने दिल्ली पुलिस , एम्बेसी और साथियो और अपनी पत्नी व पेशे से डॉक्टर सरोज यादव का शुक्रिया अदा किया कि आज शायद इन सबकी वजह से अतिथि देवो भवः का यह मंत्र सच कर पाए और उनको इस बात की ख़ुशी है कि वो भारत निर्माण में इस गौरव रुपी क्षण का योगदान कर पाए।
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