"जमीर से झलकता दम"
'पत्रकारिता का नया तेवर... नया अवतार..."लोकल न्यूज़ ऑफ़ इंडिया"
- 'लोकल न्यूज़ ऑफ़ इंडिया' का इंकलाब हुआ बुलंद
- संकटकाल में 'एलएनआई' ने लिखी 'नई इबादत' पत्रकारिता की जमाई धाक
- देश की जनता के मन में "मीडिया के प्रति बढा विश्वास"
- " लोकल से ग्लोबल तक" का हुआ शंखनाद
- आखिर "संकल्प को परखने की जबरदस्त प्रक्रिया के बीच" कठिन लक्ष्य और बदतरीन परिदृश्य से परिपूर्ण" हकीकत के नजरों के बीच फिर कुंदन बनकर निकली-
- " लोकल न्यूज़ ऑफ़ इंडिया"
- लाक डाउन में "लोकल न्यूज आफ इंडिया"के व्यापक मुद्दे को रेखांकित करती "अनिल कुमार द्विवेदी"की विशेष रिपोर्ट-
अनिल द्विवेदी
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
सोनभद्र।आज जब पूरे विश्व समुदाय में लगातार मायूसी भरे आंकड़ों की बारिश के बीच लाखों जिंदगियां काल के गाल में समा चुकी थी, तब 'उम्मीदों भरी पत्रकारिता का प्रतीक' एवं हकीकत का नजराना पेश करने वाला एलएनआई सिर्फ समाचार पत्र का प्रकाशन एवं आंकड़ों का विश्लेषण करने वाला पत्रकारिता का संकुचित रूप ही नहीं था,वरन मजबूत हैसियत और सवाल के हर जवाब के बीच 'आशा की किरण' की इस मुहिम का परिचायक था कि-
रुकी कहीं यदि कलम,
धरा की चाल बदल जाएगी । कलम रुकी तो विश्व शांति की, गाथा जल जाएगी ।
'मानवीय रहस्य की अबूझ पहेली' बनी अप्रत्याशित कोरोना संकट के समय जब पूरा विश्व समुदाय सकते में था और शायद भारत भी इसके लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था तो 'संकल्प की परख'के बीच "एलएनआई" का प्रशासन की पहल का इंतजार किए बगैर जनसेवा में समर्पित होते हुए भारत के विभिन्न भागों सिलीगुड़ी, दिल्ली,मुंबई,लखनऊ और भोपाल जैसे जगहों पर मानकों की अनदेखी किए बगैर सुबह-शाम दो पारियों में लगभग 2 लाख 80हजार लोगों में पका हुआ भोजन वितरित किया जिसमें एलएनआई परिवार द्वारा देश के छोटे-छोटे शहरों में वितरित की गई खाद्य सामग्रियां सम्मिलित नहीं है।
जब कोरोना के डर से पूरा देश सहमा था उस समय एलएनआई टीम बिना किसी हीला-हवाली के आगे बढ़ी और लॉक डाउन के शुरुआती दिन 25 मार्च से ही अपने लगभग 4000 वालेंटियर्स के सहयोग से देश के 2 लाख 10 हजार से भी अधिक जरूरतमंद परिवारों के घरों तक आटा,दाल, चावल, चीनी और चायपत्ती जैसे मूलभूत आवश्यक वस्तुओं से परिपूर्ण खाद्य पैकेट वितरित की जिनकी लागत परिवार के सदस्यों की संख्या तथा जरूरत के आधार पर क्रमशः रु 978, रु 1285, रु1685 एवं रु 2150 निर्धारित करते हुए पहुंचाया, इसने भूखे प्यासे राहगीरों को भी खाद्य सहायता उपलब्ध कराई ।
दिलचस्प बात यह है कि, एलएनआई ने अपने लॉकडाउन के शुरुआती दिनों 25 मार्च से समस्या के समाधान तक चलने वाले 'ताबड़तोड़ गुडवर्क' की इस लंबी फेहरिस्त में बिना किसी सरकारी या गैर सरकारी संगठन का साथ लिए संपूर्ण कार्य प्रणाली का सफल क्रियान्वयन अपने स्तर से ही किया जहां "कहीं धूप कहीं छाया" जैसी क्षणिक प्रशासनिक अड़चनें तो कहीं गाजियाबाद की मजदूर बच्ची "नगमा" जैसी "नई मसीहा"मिली जिसकी अथक मेहनत ने पूरे समाज को किंकर्तव्यविमूढ़ एवं अवाक कर दिया।इसने एलएनआई से प्राप्त सहायता से प्रभावित होकर स्वयं को एक वॉलिंटियर के रूप में समाहित कर दी तथा खाद्य सामग्री वितरित करते हुए "गांव के गूंज की प्रत्यक्ष नायिका"बनी जिसके लिए पूर्व भाजपा राज्यसभा सांसद 'प्रदीप गांधी' ने कहा कि- एलएनआई ने गांव को यह बता दिया कि शहरों में भी उनको चाहने वाला कोई है।
फरिश्तों की लंबी फेहरिस्त में भोपाल के एलएनआई लोकल एडिटर 'आमिर अल्वी' तथा मुंबई अंधेरी से संदीप प्रजापति तथा सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री हर्षदा पाटिल का नाम जोड़ा जा सकता है जिन्होंने अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन के पश्चात अतिरिक्त समय देकर रात के 3:00 बजे तक आम जनता तक राहत सामग्री बटवाई। हर्षदा पाटिल का लगभग हजार लोगो को राशन वितरण कराना काबिले-तारीफ रहा।
आईआईएम रुद्रपुर के प्रोफेसर डॉ. आर के अग्रवाल ने 'संकट के जंग के इस रंग पर' सार्थक टिप्पणी करते हुए कहा कि- "विजय की सोच एवं एलएनआई की कल्पना खुद को जीने की बजाय लोगों को जिंदा रखने की है, वह भी मुस्कुराहट के साथ"!
देशबंधु अखबार के उपाध्यक्ष एवं प्रबंध संपादक "राजीव रंजन श्रीवास्तव" कहते हैं कि- "काश एलएनआई जैसी सोच हर जगह हो जाती तो शायद भारत विश्व पटल पर बिना कुछ बोले विश्व गुरु बन जाता।यह मुहिम चंद घंटों में फोटो खिंचवाने वाले नेताओं एवं समाज सेवकों पर सीधा तमाचा है"।
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