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बाबूजी यानी राजस्थान के महामहिम राज्यपाल कलराज मिश्र के जन्मदिवस पर विशेष 

बाबूजी यानी राजस्थान के महामहिम राज्यपाल कलराज मिश्र के जन्मदिवस पर विशेष 



सौरभ त्रिपाठी


(सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र के दक्ष लेखक कलराज मिश्र के साथ जुडे रहे है)


आज जन्म ऐसे महापुरुष का जो राष्ट्रवाद और धर्म की पराकाष्ठा हो या संगठन की निष्ठा, नयी ऊर्जा नयी उम्मीद का संचार गंगाजल जैसा निर्मल व अविरल प्रवाहित है उनमे


 


मार्च 2018 को भारतीय राजनीति के पुरोधा अटल बिहारी बाजपेयी का कुशलक्षेम लेने के लिए बाबू जी मुझे अपने साथ ले गए, मेरे लिए प्रथम अवसर था जब मुझे अटल जी को पहली और आखिरी बार साक्षात देखने का अवसर मिला, मुझे तो शायद अटल जी के कमरे के बाहर रोक लेते पर बाबू जी ने मुड़कर मुझे देखा और कहा "आओ सौरभ"। 


जैसे ही हम कमरे में पहुँचे बाबू जी को देखकर अटल जी बोलने का प्रयास करने लगे पर अस्वस्थता के कारण वे कुछ बोल न सके। बाबू जी उनके बिस्तर के पास खड़े होकर उनसे बात करते रहे। वहां से लौटते हुए बाबू जी का मन खिन्न हो गया था और गाड़ी में बैठते ही बोले, "अटल जी को ऐसे देखता हूँ तो बहुत पीड़ा होती है"।


बाबू जी का पूरा जीवन मर्यादित राजनीति का उदाहरण है और संगठन के सभी आदेशों का उन्होंने निष्ठापूर्वक पालन किया है।


बहुत कष्ट हो रहा है, मेरे लोग अब मुझसे इस तरह नही मिल पाएंगे, यह माननीय कलराज जी के शब्द हैं जो उन्होंने राज्यपाल की शपथ लेने के लिए शिमला जाने से पूर्व कहा था।


कलराज जी कार्यकर्ताओं में सदैव से ही अपने सरल स्वभाव और व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक कार्यकर्ता की चिंता करने के कारण लोकप्रिय रहे हैं।


कलराज जी के विषय मे लिखना मेरे सामर्थ्य में नही है पर आज उनके जन्मदिन के अवसर पर आप लोगो के साथ अपने कुछ संस्मरण साझा करने का प्रयास कर रहा हूँ।


 


राष्ट्र प्रेम की भट्टी में, हमने खुद को ढाला है।  


मातृ भूमि पर प्राण न्योछावर करने का व्रत पाला है। 


सिंहासन पर पाँव रखा तो, सबकी आंखें धधक उठीं। 


नजर झुकाकर कोई न देखा, पाँव में कितना छाला है।।


 


यह चार पंक्तियां कलराज जी पर चरितार्थ होती हैं, मुझे याद है 2017 के चुनाव में गोरखपुर के पास खजरहट रेलवे स्टेशन पर बाबू जी का भाषण चल रहा था, उनके भाषण को सुनकर मैं मोबाइल में साथ के साथ टाइप करके ट्वीट कर रहा था। बाबू जी ने अपने संबोधन में कहा, इस खजरहट रेलवे स्टेशन की कोई भी चाय की दुकान ऐसी नही होगी जिसकी बेंच पर, इतना सुनकर मैने स्वतः आगे जोड़ दिया कि कलराज मिश्र ने चाय न पी हो परन्तु जब उन्होंने अपनी बात पूरी की तब मैं कुछ देर तक कल्पना करता रह गया उनके संघर्ष की, उन्होंने वाक्य पूरा करते हुए कहा कि "इस खजरहट रेलवे स्टेशन की कोई भी चाय की दुकान ऐसी नही होगी जिसकी बेंच पर कलराज मिश्र ने रात न बिताई हो।


आज भाजपा भले ही विश्व का सबसे बड़ा संगठन बन गया हो पर इसे कलराज जी जैसे समर्पित कार्यकर्ताओं ने पूरे समर्पण के साथ खून-पसीने से सींचा है। बाबू जी सदैव ही भाजपा के अनुशासित सिपाही की तरह रहे, जब जैसा आदेश मिला उसका उन्होंने निर्वहन किया। जीवन मे कई बार ऐसे भी निर्देशों का आपको पालन करना पड़ता है जो आपके हित में नही होते बाबू जी ने ऐसे भी आदेशों को संगठन के हित में मानकर पूरा किया है।


नई तकनीकी के प्रति उनकी जिज्ञासा और उसे सीखने का उत्साह प्रेरक है।


ट्विटर फेसबुक हो या अपनी ईमेल चेक करना यह सारे काम वे स्वयं करते हैं। हो सकता है लोग इसपर विश्वास न करें। पर जब भी वह मेल चेक करते थे मैं समझ जाता था कि आज डांट पड़ने वाली है। बहुत बार ऐसा होता कि मैं कुछ मेल को व्यर्थ मानकर उनके जवाब न देता, बाबू जी का मत था कि जो भी व्यक्ति मुझे सन्देश भेजे चाहे हो मेल के माध्यम से हो या फेसबुक या ट्विटर पर कमेंट के माध्यम से हो उनका उत्तर जाना चाहिए।


आदमी की सोच उसके व्यक्तित्व को बनाती या बिगाड़ती है, उसके विचार आईना हैं उसके चरित्र के आकलन का और उसके व्यक्तित्व का भी। क्योंकि उसके विचार उसके कार्य करने की क्षमता और दिशा को प्रभावित करते हैं।


सकारात्मक सोच एक विशिष्ट ऊर्जा प्रदान करती है, हौंसला देती है सफल होने का और उत्साहित करती है। नए लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए। आशावादी नजरिया हो सकता है आपको सफलता न दिला पाए पर लड़ने की हिम्मत देता है।


जब कभी मन बहुत विचलित होता तो मैं जा कर उनके पास बैठ जाता और कुछ देर में मन अपने आप शांत हो जाता। यह उनकी जीवन और कर्मों के प्रति सकारात्मक नजरिए से उतपन्न होने वाली ऊर्जा थी जो अपने साथ साथ आस पास के लोगों में भी ऊर्जा का संचार करती है। बड़े आदमी का सबसे बड़ा गुण यह होता है उससे मिलने वाले को छोटेपन का एहसास नहीं होता, अच्छी बुरी सभी स्थितियों में उसका आचार व्यवहार एक सामान रहता है। जैसे हिमालय अपने शिखर से अपनी ऊंचाई का परिचय देता है परंतु उसी समय वह जमीन से भी जुड़ा रहता है निसंदेह माननीय कलराज जी का आचरण राजनीति में मर्यादित रहा है और अगर उन्हें राजनीति का मर्यादा पुरुषोत्तम कहूं तो गलत नहीं होगा।


माननीय से महामहिम हो जाने के बावजूद लोगों से उसी अपने पन से मिलने जुलने का उनका तरीका पुराना है, आज भी उतने से स्नेह से लोगो से मिलते हैं। जैसे सार्वजनिक जीवन मे उनका व्यवहार रहा । यद्यपि राज्यपाल बनने के बाद उन्हें राज्यपाल पद की गरिमा के अनुरूप ही लोगों से मिलना पड़ता है पर आज भी अपना नम्बर ज्यादातर समय वही उठाते हैं, यही उनकी महानता है।


इतना लिखने पर भी बहुत सी घटनाएं ऐसी हैं जिनका उल्लेख करने की इच्छा है पर सब एक बार मे नहीं हो सकता उनके बारे में लिखता रहा तो कभी खत्म ही नही होगा।


आज उनके जन्मदिन पर प्रभु से उनके लम्बे जीवन की प्रार्थना करता हूँ, उनका स्नेह, आशीर्वाद और कृपा मुझ पर सदैव बनी रहे।


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