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आज फिर आया साल भर बाद हिंदी पखवाड़ा


विजय शुक्ल


लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया करीब हर साल दुसरे तीज त्यौहारों की तरह हिन्दी पखवाड़ा फिर वापस आया जिसका इन्तजार सरकारी खजाने वाले बेसब्री से किया करते थे हर साल।  क्योकि यही उनकी दीवाली होती थी और यही उनकी ईदी . वो अलग बात है कि  हिंदी आज भी वही है जहां पहले थी सरकारी कामकाज से दूर बस रिसेप्शन बोले तो स्वागत कक्ष में।  जहां बैठी या बैठा हुआ एक व्यक्तित्व आपसे बोलेगा की कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ  या कर सकती हूँ। पर सवाल बड़ा है कि  क्या हम हर साल श्राद्ध जैसा हिंदी भाषा का तरपान करते नहीं नजर आ रहे।  जो भाषा हमारे रग रग में बसती हैं उसका एक दिन या एक पखवाड़ा अल्पसंखयको जैसा ट्रीटमेंट तो नहीं।  चलो मान लेते है कि  तमिल, तेलुगु , कन्नड़ , ओड़िया, असमिया, कोंकड़ी, मराठी, मलयालम जैसी भाषाई राज्यों में हिंदी दिवस का मनाया जाना सार्थक कदम हो सकता था पर हिंदी राज्यों में जहां बच्चा उठता बैठता ही हिंदी स्टाइल में है वहा इस पखवाड़े का इंतजाम कर ऐसा नहीं लगता की हिंदी के जीवित होने का सबूत पेश किया जा रहा हो  वो भी तब  जब हम हिंदी की समृद्ध गाथा की डींगे हांकते फिरते हैं। 



हिंदी भाषा को किसी के पखवाड़ा दिवस मनाकर उसका मान बढ़ाने की जरूरत मेरी समझ में तो नहीं है क्योकि वो अपने आप में अथाह हैं उसकी पहुँच और उसके होने का एहसास वैसे ही है जैसे हिन्दुस्तान के वजूद होने का।  हिंदी है हम वतन हैं तो गाना आपने सुना ही  होगा और जिस समय सरकारों ने हिंदी के उत्थान के रूप में अपनी राजनीतिक चाल चली होगी उस समय उसकी मंशा भी हिंदी को अपमानित करने वाली ही रही होगी ना कि  उसको बढ़ाने की।  यह मानो ऐसा लग रहा हैं जैसे हम वैलेंटाइन डे मना रहे हो पर यह भारत हैं यहाँ तो प्रेम भाव जन्म से हर प्राणी में निहित है , हम प्राकृत प्रेम करते हैं तीज छठ जितिया जैसे तीज त्यौहारों में नदी पोखरों सूरज  चन्दा पशु पक्षी का सम्मान करते है वो अलग बात है कि  हिंदी की अस्मिता से खेलती कुछ आत्माये खनन जैसा दोहन कर आज भी अपने आपको सिंचित कर रही है और शायद वही इस पूरे प्रकरण के रचयिता भी है।  आज जहां हम अपने अदालतो में सिर्फ इंग्लिश में ही सब कुछ लिखते पढ़ते हो।  पत्राचार से लेकर बोलचाल में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग जब हमारा स्टेटस सिम्बल बन गया है वैसे में यह हिंदी पखवाड़ा हिंदी का मजाक उड़ाता ही नजर आ रहा है।


हिंदी को मजबूत बनाना है तो रोजाना हिंदी खाना पीना और जीना सीखना होगा वरना यह ईदी  दीवाली के नाम पर पखवाड़े में पैसे की बन्दर बाँट का खेल ठीक वैसे ही फैले फूलेगा जैसे आजकल सरकारी दफ्तरों में मोदी जी की स्वच्छता  अभियान वाली लीला खेली जा रही है। 


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