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हस्तकला प्रशिक्षण से  आत्मनिर्भर बनेगी तीर्थन घाटी की महिलाएं

हस्तकला प्रशिक्षण से  आत्मनिर्भर बनेगी तीर्थन घाटी की महिलाएं


 



  • तीर्थन घाटी के शाईरोपा में दस दिवसीय बुनाई प्रशिक्षण शिविर का समापन।

  • 20 ग्रामीण महिलाओं ने लिया हस्तकला बुनाई का प्रशिक्षण।

  • घाटी में तैयार हस्तनिर्मित उत्पाद करेंगे पर्यटकों को आकर्षित।



परसराम भारती 
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया 


तीर्थन घाटी गुशैनी,बंजार।आत्मनिर्भरता के विना महिला सशक्तिकरण की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। तीर्थन घाटी की ग्राम पंचायत कण्डीधार और नोहण्डा में एशियन विकास बैंक की सहायता से चलाई जा रही समुदाय आधारित पर्यटन परियोजना के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ग्राम पंचायत कण्डीधार के शाईरोपा में 6 सितम्बर से 15 सितम्बर तक दस दिवसीय हस्तकला बुनाई का प्रशिक्षण दिया गया।



इस प्रशिक्षण शिविर में ग्राम पंचायत कण्डीधार की 20 महिलाओं ने भाग लेकर हस्तकला बुनाई का हुनर सीखा है। कुल्लू शहर से आई विशेषज्ञ प्रशिक्षक मणि देवी और फालमा देवी ने इन महिलाओं को इस पारम्परिक हस्तकला बुनाई तकनीक की बारीकियों के इलावा उत्पाद की गुणवत्ता और इसके विपणन के बारे में भी विस्तृत से जानकारी दी है। आज विधिपूर्वक इस प्रशिक्षण शिविर का समापन किया गया। इसके समापन अवसर पर ग्राम पंचायत कण्डीधार की युवा प्रधान चमना देवी विशेष रूप से उपस्थित रही।



ग्राम पंचायत कण्डीधार की युवा प्रधान चमना देवी का कहना है कि इस प्रशिक्षण से यहां की महिलाएं हस्तकला के क्षेत्र में न केवल निपुण हुई है बल्कि अब आत्मनिर्भर बनकर आर्थिक रूप से भी सशक्त बनेगी। इन्होंने कहा कि आज के बदलते परिदृश्य में यहाँ के लोगों विशेषकर महिलाओं के लिए हस्तकला पर्यटन के साथ आय का महत्वपूर्ण साधन बन सकता है। इससे तीर्थन घाटी के लोगों को आर्थिक मजबूती के साथ पर्यटन में एक नई पहचान मिलेगी। इनका कहना है कि यह प्रशिक्षण यहां की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में उपयोगी साबित होगा।



दस दिवसीय बुनाई हस्तकला प्रशिक्षण शिविर के दौरान महिलाओं ने सूत धागे से बुनाई कौशल की पारम्परिक नीडल वर्क विधि से विभिन्न उत्पाद बनाने की आधुनिकतम तकनीक भी सीखी है। अपने घरेलू कामकाज के साथ साथ महिलाएं घर बैठे हुए, सफर में या टेलीविजन देखते हुए भी इस बुनाई के कार्य को आसानी से कर सकती है। इसमें सुत या धागे को सीधे ही सुइयों और उँगली के साथ मनचाहा डिजाइन देकर बुनाई की जाती है। इस कार्य को युवतियां, गृहणी और कोई भी वुजुर्ग महिला विना किसी मशीन के कहीं भी आसानी से कर सकती है।  हालांकि हस्तशिल्प उत्पाद को मेहनत के अनुरूप इसकी कीमत नहीं मिल पाती है जिसका कारण उचित बाजार का ना मिलना भी है। तीर्थन घाटी अब पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन चुका है। यहाँ के हस्तनिर्मित उत्पाद आवश्यक ही पर्यटकों को आकर्षित करेंगे। यहां पर आने वाले कई पर्यटक स्थानीय पारम्परिक हस्तशिल्प उत्पाद खरीदने के इच्छुक होते हैं।



परियोजना की समुदाय समन्वयक बंदना शर्मा का कहना है कि इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य पारम्परिक हस्त कला को पुनर्जीवित कर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है ताकि वे घर बैठे ही रोजगार के साधन पैदा कर सके। इन्होंने बतलाया कि आइन्दा कल 16 सितम्बर से ग्राम पंचायत नोहण्डा की महिलाओं के लिए भी इसी तरह के प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है।  ग्राम पंचायत नोहण्डा की महिलाओं से आग्रह किया है कि इस प्रशिक्षण शिविर में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेकर इसका लाभ उठाएं।


इस प्रशिक्षण को प्राप्त करने वाली जावल गांव की चंद्रा देवी का कहना है कि बुनाई का कार्य यह पहले से ही करती थी लेकिन इस दस दिवसीय हस्तशिल्प बुनाई प्रशिक्षण शिविर में इसने कई डिजाइन में हस्तनिर्मित उत्पाद बनाने की कला सीखी हैं। अब यह नाना प्रकार के डिज़ाइनों में हस्तनिर्मित उत्पाद घर बैठे तैयार करके रोजगार कमा सकती है।


माँ शक्ति स्वयंसेवी संगठन कुल्लू की प्रधान और मुख्य प्रशिक्षक मणि देवी का कहना है कि इस प्रशिक्षण में इन्होंने महिलाओं को पांच दिन हस्तशिल्प बुनाई का आधारभुत प्रशिक्षण तथा पांच दिन का अग्रणी स्तरीय क्रोशिया बुनाई का कौशल प्रशिक्षण दिया है। जिसमें महिलाओं को स्वैटर, कोटियां, फ्रॉक, पुरुष व महिला जुराबें, पंजाबी जूतियाँ, मफलर, पोंचू, हैंड बैग, कुशन कबर, डोर मैट और टोपियाँ आदि हस्तनिर्मित उत्पाद बनाने के लिए निपुण किया गया है।



इस दस दिवसीय हस्तशिल्प बुनाई प्रशिक्षण शिविर में ग्राम पंचायत कण्डीधार के लोमश ऋषि स्वयं सहायता समुह गहिधार, आदर्श ग्रुप दाड़ी, गायत्री ग्रुप बाड़ीरोपा और स्वयं सहायता समूह रौनाल की एना देवी, गंगा देवी, डोलमा देवी, विद्या देवी, पुजा देवी, भीमा देवी, देवकला, गोदावरी, कृष्णा देवी, बोहरी देवी, किरण भारती, सीमा देवी, कविता, चंद्रा देवी, कमला देवी, दीपा देवी, चुड़ामणि, वीना देवी, ध्यानदासी और शारदा देवी आदि ने मुख्य रूप से भाग लिया है।


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