बिहार ने तो नया स्लोगन दे ही दिया भाजपा है तो भरोसा है
विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
दिल्ली। राजनीतिक गुरु , धर्म गुरु और मीडिया यहां तक की खुद भाजपाई खेमे के कुछ गुजराती गुट के विरोधी धड़े सबके अपने अपने आकड़े धरे के धरे रह गए। हालांकि जैसा इलेक्ट लाइन ने कहा था हुआ वैसा ही बावजूद सभी सवालों के कि रामबिलास पासवान की धरोहर एक सीट पर सिमटेगी जरूर पर नीतीश के गिरते ग्राफ में अगर किसी का हाथ होगा तो वो होगा लोजपा का ही और हुआ वही। आज भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ गयी देश का भरोसा एक बार फिर भाजपा पर दिखा। तमाम कोशिशों के बावजूद भी बाजी एनडीए ने मार ही ली। लोगो के गीत वो भी मजदूरों वाली की हम याद रखेंगे भी लोग भूल गए। बिहार में का बा का भी मामला अब सबको समझ में आ गया कि बिहार में भाजपा बा ..... क्योकि नितीश कुमार पर तो अभी दिग्विजय सिंह डोरे डालने पर लगे हैं वो भी बेवजह।
बिहार की यह जीत मोदी अमित शाह और जेपी नड्डा की बड़ी जीत के रूप में देखि जा रही हैं क्योकि इसका सीधा असर बंगाल के साथ साथ पंजाब में भी दिखेगा। पंजाब बड़े ही बेसब्री से इन्तजार कर रहा था कि बिहार की जनता का भरोसा क्या भाजपा जीत पाएगी और आज शायद सुखबीर बादल को बिहार ने भाजपा का एक सीधा सन्देश भी दे दिया और यकीन मानिये इस जीत से भाजपा पंजाबा में मजबूत होगी और अकेले चुनाव लड़कर बड़ी जीत का सपना भी सजो सकती हैं। दुसरी तरफ अब ईवीएम पर सवाल उठाने वाली बिहार की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी चुनाव आयोग को लोकल प्रशासन का तंज कसकर अपनी हार का ठीकरा कही और फोड़ना चाह रही हैं।
कुल मिलाकर अब भाजपा ने बाजी मार ली हैं और लोगो का बिहार श्रमिकों , कोरोना की मार और नीतीश का कुशासन सब कुछ याद नहीं हैं अब बस याद हैं कि भाजपा में एनडीए की सरकार आने वाली हैं। इस चुनाव का यूपी खेमा भी फायदा उठाने की फिराक में हैं कि १५ में से १३ सीट योगी आदित्यनाथ ने भाजपा की झोली में सीधे ला दी औ भी अपने दम पर।
कुल मिलाकर बहुमत का जादुइ आकड़ा एनडीए के पास आ गया हैं और बिहार ने ओवैसी को भी खुश कर ही दिया हैं जो आने वाले यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए भी एक ख़तरा बन सकती हैं।
नोटा ने भी बदल दी तस्वीर
बीते चुनावों में लोगों ने जमकर नोटा का बटन दबाया था। बीते चुनावों के मुकाबले इस बार नोटा को कम मत मिला। इस बार नोटा को करीब सात लाख मत मिले, जबकि पिछली बार करीब साढ़े नौ लाख मत मिले थे। 2015 में जहां कुल वोट शेयर का 2.5 प्रतिशत ने नोटा का इस्तेमाल किया था, वहीं 2020 के चुनावों में 1.7 फीसद लोगों ने नोटा का प्रयोग किया। वहीं, इस बार 30 सीटें ऐसी थीं, जहां हार-जीत का अंतर नोटा को मिले मतों से कम था। 2015 के चुनावों में ये सीटें 21 थीं।
जदयू की 13 सीटों पर जीत के अंतर से अधिक नोटा
बिहार विधानसभा के इस बार के चुनावों में नोटा ने कई सीटों पर काम बिगाड़ा है। जनता दल यूनाइटेड की 13 सीटें ऐसी थीं, जहां पर नोटा को जीत के अंतर से अधिक मत मिले। राष्ट्रीय जनता दल की भी जीती हुई 7 सीटों पर हार-जीत के अंतर से नोटा ने अधिक वोट हासिल किए। वहीं बीजेपी और कांग्रेस की क्रमश: 4 और 3 सीटें ऐसी थीं, जहां नोटा ने हार-जीत के अंतर से अधिक मत पाए। 2020 के चुनावों में भाजपा को 19.46 प्रतिशत, जेडीयू को 15.39 फीसद, राजद को वोट शेयर 23.11 फीसद वोट मिले हैं।
वीआईपी, बीएसपी और ओवेसी की पार्टी को नोटा से कम वोट मिले
चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने वाले ओवेसी की पार्टी एआईएमआईएम और वीआईपी का वोट शेयर नोटा से कम रहा। इन दोनों पार्टियों को क्रमश: पांच और चार सीटें मिलीं। एआईएमआईएम का वोट शेयर 1.24 फीसद, हिन्दुस्तानी आवामी मोर्चा का 0.89 फीसद, बहुजन समाज पार्टी का 1.49 और वीआईपी पार्टी का वोट शेयर 1.52 फीसद था। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) को क्रमश: 0.83 फीसद और 0.65 फीसद मत मिले।
कांटे का रहा मुकाबला
2020 के चुनावों में महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे का मुकाबला रहा। चुनावों में राजद सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई। उसने 75 सीटें हासिल कीं और दूसरे नंबर पर रही भारतीय जनता पार्टी ने 74 सीटों पर जीत दर्ज की। जदयू ने 43, कांग्रेस ने 19 और अन्य दलों और निर्दलीय के खाते में 31 सीटें गईं। बहुजन समाज पार्टी को 1, एआईएमआईएम को 5, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 2, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम) को 2, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(मार्क्सवादी-लेनिनवादी)(एल) को 12, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा को, लोकजनशक्ति पार्टी को 1, विकासशील इंसान पार्टी को 4 सीटें और निर्दलीय को एक सीट मिली।
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