मधुमक्खी पालन व्यवसाय से बढ़ेगी तीर्थन घाटी के पर्यटन में मिठास
शाईरोपा सभागार में सर्वत्रा फाउंडेशन के सौंजय से दो दिवसीय मौन पालन प्रशिक्षण शिविर का आयोजन।
वाईएस परमार विश्वविद्यालय अनुसंधान केंद्र सेउबाग कुल्लू से आए विशेषज्ञों ने दिए मौन पालन के टिप्स।
तीर्थन घाटी के 30 मौन पालकों ने इस प्रशिक्षण शिविर में लिया हिस्सा।
पारस राम भारती
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
तीर्थन घाटी ,गुशैनी बंजार। जिला कुल्लू उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी के शाईरोपा सभागार में स्थानीय मौन पालकों के लिए सर्वत्रा फाउंडेशन चंडीगढ़ और हिमालयन इको टूरिस्म कोऑपरेटिव सोसाइटी गुशैनी के सौंजय 6 और 7 नवम्बर को दो दिवसीय मधु पालन प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया इस प्रशिक्षण में घाटी के करीब 30 मौन पालकों ने हिस्सा लिया है।
वाईएस परमार विश्वविद्यालय अनुसंधान स्टेशन सेउबाग कुल्लू से आए वैज्ञानिकों डॉक्टर जोगिंदर सिंह वर्मा तथा डॉ सिद्धार्थ मोदगिल और टेक्निकल सहायक नागेन्द्र सिंह परमार ने उपस्थित प्रशिक्षणार्थियों को आधुनिक मौन पालन के बारे में विस्तृत से जानकारी दी है। डॉक्टर जोगिंदर सिंह वर्मा ने बताया कि शहद की उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पारंपरिक मौन पालन के बजाए आधुनिक मौन पालन तकनीक को अपनाया जाना जरूरी है, उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में बैसे तो पुरातन काल से ही जंगलों और घरों में देसी मधुमक्खियों के साथ मौन पालन होता आ रहा है लेकिन अब इसे बैज्ञानिक तरीके से किए जाने की जरूरत है। इन्होंने बतलाया कि मधुमखिया अक्सर समुह बना कर रहती है जिसे इनका वंश या परिवार कहते हैं। एक परिवार में प्रायः तीन किस्म की मखियाँ पाई जाती है जिनमें रानी मक्खी, कमेरी मक्खी और नर मक्खियां रहती है। इन सबका अपना अलग-अलग कार्य होता है। इन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से चार प्रजातियों की मधुमक्खियां पाई जाती है, जिसमें देसी/पहाड़ी मक्खी, भन्दौर, छोटी मक्खी और विदेशी मक्खी मेलिफेरा मुख्य रूप से पाई जाती है। इसके अलावा प्रशिक्षणार्थियों को मौन पालन प्रबंधन, मधुमक्खियों के गृह निर्माण, जीवन चक्र , मौन पालन के लिए जरूरी साजो समान तथा इसके लाभ और उपयोगिता के बारे में मौन पालकों का विस्तारपूर्वक ज्ञानवर्धन किया है।
प्राचीन काल से ही शहद और मधुमक्खी मनुष्य की जीवनचर्या से संबंधित रही है। मधुमक्खियों द्वारा तरह तरह के फूलों के मधुरस से तैयार शहद तीखी मिठास वाला गाढ़ा तरल पदार्थ होता है। धार्मिक रीतियों में भी शहद का बहुत ही महत्व होता है जिसे बहुत ही पवित्र माना गया है। शहद कई प्रकार के पौष्टिक तत्वों से भरपूर होता है जिसका प्रयोग अनेकों प्रकार की औषधियों को तैयार करने के लिए भी किया जाता है। शहद और इसके मोम से अनेक उपयोगी पदार्थ बनाए जाते हैं, पुरातन काल से ही मनुष्य शहद का सेवन करता आ रहा है। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले कई रोगों के इलाज के लिए जड़ी बूटियों से बनी कड़वी दवाई को खाने के लिए शहद का सेवन किया जाता था। लेकिन आज के समय चिकित्सीय विश्लेषणों के आधार पर यह बात सिद्ध हो चुकी है कि शहद का नियमित सेवन शरीर को शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करता है। एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाले भारतीय तेनसिंग और न्यूजीलैंडर हिलेरी ने अपनी शक्ति का राज शहद का सेवन ही बताया है।
वर्तमान में कोरोना काल के दौरान शहद की मांग में भारी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। इस समय मौन पालन व्यवसाय आजीविका के रूप में उभर कर सामने आया है। तीर्थन घाटी में मधुमक्खी पालन की अपार सम्भावनाएं है, यहां की जलवायु मधुमक्खियों के लिए बहुत ही उपयुक्त है। हालांकि घाटी में सदियों पुराने परम्परागत तरीकों से मौन पालन किया जाता आ रहा है जिसमें वैज्ञानिक और आधुनिक तकनीक द्वारा सुधार किया जाना आवश्यक है। तीर्थन घाटी में मौन पालन को यहां के घरेलु उद्योग का दर्जा दिया जा सकता है।
डॉक्टर जोगिंदर वर्मा ने जानकारी देते हुए बतलाया कि हिमाचल प्रदेश में मधुमक्खी पालन और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री मधु विकास योजना भी चलाई जा रही है ताकि बेरोजगार युवा मधु पालन व्यवसाय से जुड़कर अपना स्वरोजगार कमा सके। इस योजना के तहत मौन पालकों को मधुमक्खी पालन केंद्र, संग्रहण, भंडारण और विपणन की सुविधाओं से संबंधित बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए कुल लागत पर 50% से 80% तक अनुदान के तौर पर आर्थिक सहायता राशि प्रदान की जाती है। उन्होंने यहाँ के वेरोजगार युवाओं से आग्रह किया है कि उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए ताकि वे मौन पालन के व्यवसाय से जुड़कर घर द्वार पर रोजगार कमा सके।
बंजार घाटी से तरगाली गांव के युवा मौन पालक हेम राज ने बतलाया कि यह करीब 15 वर्षों से इस व्यवसाय से जुड़ा हुआ है। इन्होंने देसी मधुमखी पालन से लेकर आधुनिक मौन पालन तक के अपने अनुभव साझा किए। खेम राज ने बताया कि शुरू में इसने देसी तरीके से मधुमखिया का पालन किया जिसमें बहुत कम शहद का उत्पादन होता था लेकिन जब से इसने मौन पालन का प्रशिक्षण लिया उसके बाद इसे एक व्यवसाय के रूप में ही करता आ रहा है। अब यह हर वर्ष करीब 6 से 7 लाख रुपए तक की कमाई मौन पालन व्यवसाय से कर के आत्मनिर्भर बना है। इन्होंने बतलाया कि मधुमखियाँ केवल शहद और मोम ही पैदा नहीं करती बल्कि इनके और कई फायदे हैं।
डॉक्टर सिद्धार्थ मोदगिल ने बतलाया कि आज के आधुनिक बैज्ञानिक युग ने यह सिद्ध कर दिया है कि मधुमखी पोलिनेटर का काम भी करती है। मधुमखियों से जहां हमे शुद्ध मीठा शहद मिलेगा वहीं पोलीनेशन से फलों, फूलों, तिलहन और दलहन की उत्पादकता और गुणवत्त्ता भी बढ़ेगी। इन्होंने बतलाया कि फलों की सफल खेती और बगीचों से अधिक आय लेने के लिए मधुमखी पालन अन्य कार्यों की तरह आवश्यक है।
सर्वत्रा फाउंडेशन चंडीगढ़ के फाउंडर दिनेश सेठ का कहना है कि इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों को मौन पालन का व्यवसाय अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। इन्होंने बतलाया कि यहां के लोगों के लिए मौन पालन व्यवसाय बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। अगर यहाँ के मौन पालक संगठित होकर व्यवसाय करना चाहते हो तो इनकी संस्था उत्पादन और विपणन में हर सम्भव सहायता करने को तैयार है।
इस मौके पर हिमालयन इको टूरिज़म सोसाइटी के फाउंडर स्टीफन मार्शल, सदस्य हेमा मार्शल और प्रधान केशव ठाकुर विशेष रूप से उपस्थित रहे। दो दिवसीय इस मौन पालन प्रशिक्षण में तीर्थन घाटी के रामलाल, केहर सिंह, कांशी राम, चतर सिंह, प्रीतम शर्मा, विजय राम केवल राम, धनेश्वर सिंह, प्रताप चन्द, रामलाल, युवराज, घनश्याम लाल, धनेश्वर डोड, अमर सिंह, रमेश, मीना, कृष्ण ठाकुर, राजेंद्र ठाकुर, प्रेम सिंह, बूटा सिंह, मिलाप सिंह, नील चंद, चन्देराम, रविंद्र सिंह पन्नालाल, खेम भारती, दौलत सिंह, डोला गुलेरिया, नीरज ठाकुर, और धर्मेंद्र दास आदि ने भाग मुख्य रूप से हिस्सा लिया है।
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