विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
दिल्ली। मोतीलाल वोरा नहीं रहे। चुनावी कैंपेन के सिलिसले में उनसे कई बार मिलना रहा। अच्छे सुलझे हुए खजांची होने के साथ साथ सबकी सुनने की उनकी कला अपनापन तो देती ही थी। उनका जीवन भी फ़िल्मी दुनिया सरीखा सा रहा मानो कोई रील चल रही हो। राजस्थान में जन्म लेने वाले अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर से पढ़ाई करने वाले वोरा का राजनीतिक सफरनामा बड़ा ही अलग और रोमांचित करने वाला रहा है। चाहे वो दुर्ग से पत्रकारिता करते हुए पार्षद निर्वाचित होना और फिर विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बन जाना रहा हो या फिर राज्यसभा सदस्य बनते ही वे केंद्रीय मंत्री पद से नवाजा जाना सब दिलचस्प था। कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार माने जाने वाले वोरा राजनीतिक शुचिता के लिए भी पहचाने जाते हैं।कांग्रेस वरिष्ठ नेता पूर्व कोषाध्यक्ष व मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने 92 वर्ष की उम्र में अस्वस्थता के चलते आज दिल्ली के निजी चिकित्सालय में अंतिम सांस ली।
गांधी परिवार के खासमखास थे वोरा और राहुल गांधी को आगे बढ़ाने में हमेशा अग्रसर भी
मोतीलाल वोरा राजनीति में आने से पहले पत्रकार थे। राजस्थान के जोधपुर में ब्रिटिश इंडिया के जमाने में जन्मे वोरा ने छत्तीसगढ़ के रायपुर और कलकत्ता से उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद कई अखबारों के साथ काम किया था। इसके अलावा, वोरा सामाजिक कामों में भी हमेशा आगे रहे थे। इसके बाद वह सक्रिय राजनीति में आए और अर्जुन सिंह सरकार में मंत्री रहने के अलावा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी रहे। उनकी राजनीतिक विरासत को सम्हालते हुए उनके बेटे अरुण वोरा छत्तीसगढ़ के दुर्ग से तीन बार विधायक का चुनाव जीत चुके हैं।
आपको बता दे कि 1970 में वोरा कांग्रेस में प्रभात तिवारी और पंडित किशोरीलाल शुक्ला की मदद से शामिल होने के एक दशक के भीतर ही वो गांधी परिवार के खासमखास बन बैठे थे । उनकी कुशलता और एक दशक में मध्यप्रदेश में तीन बार चुनाव जीतना इसकी ख़ास वजह रही । इंदिरा गांधी सरकार में वोरा को १९८३ में कैबिनेट मंत्री बनाया गया और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1985 में वोरा ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का पद की कमान संभाली। इसके बाद राजीव गांधी सरकार में भी बतौर राज्यसभा सदस्य बनकर वोरा कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुए।
राजीव गांधी की ह्त्या के बाद वोरा ने राहुल गांधी को राजनीतिक विरासत दिलाने के लिए हमेशा आगे बढ़कर उनका समर्थन किया। दो चुनाव पहले जब कांग्रेस प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरे की तलाश में थी, तब वोरा ने खुलकर पार्टी के भीतर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने की वकालत की थी। वोरा उन गिने चुने नेताओं में से थे, जिन्होंने राहुल को पार्टी की कमान पूरी तरह सौंपे जाने का समर्थन किया था। गांधी परिवार के साथ उनके समीकरण हमेशा सधे रहे और इसी का मुजाहिरा था कि वोरा हर बार राहुल के समर्थन में थे, हालांकि पार्टी ने मनमोहन सिंह को ही दो बार प्रधानमंत्री बनाया।
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