- तीन दिनों तक समुची घाटी में रही फागली उत्सव की धूम, अश्लील गालियाँ देकर भगाई बुरी शक्तियाँ
- तीर्थन घाटी में सांस्कृतिक पर्यटन की अपार संभावनाएं,
- सैलानियों को आकर्षित कर रहे है यहाँ के मेले और त्यौहार
- प्राचीनतम सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण एवं संवर्धन की जरूरत- सन्दीप मिन्हास.
परस राम भारती
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
तीर्थन घाटी, गुशैनी बंजार।हिमाचल प्रदेश जिला कुल्लु में उपमंडल बंजार के विभिन्न क्षेत्रों समेत समूची तीर्थन घाटी में प्रति वर्ष की भान्ति इस बार भी तीन दिवसीय प्राचीनतम मुखौटा नृत्य फागली उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। तीर्थन घाटी के गांव तिंदर, पेखड़ी, नाहीं, डिंगचा, सरची-जमाला फरयाडी, शिल्ली और कलवारी आदि गांव के अलावा बंजार क्षेत्र के थनी-चैड़ा, देउठा, कोठी चेहनी, बाहु और बेहलो आदि गांवों में फागुन सक्रान्ति के दिन 12 फरवरी से ही फागली उत्सव का आगाज हो गया था जिसका पिछले कल रविवार को समापन हो गया है।
विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और ट्राउट मछली के लिए विख्यात तीर्थन घाटी अब सांस्कृतिक पर्यटन के क्षेत्र में भी अपना नाम दर्ज कर रही है। यहाँ की प्राचीनतम परम्पराएं एवं संस्कृति यहां की पहचान है। यहां के लोग इन सांस्कृतिक परम्पराओं और मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रशंसा के पात्र है। तीर्थन घाटी में हर साल अनेकों मेलों और धार्मिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है जो यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को बखूबी दर्शाता है। ये मेले और त्यौहार यहां के लोगों के हर्ष उल्लास और खुशी का प्रतीक है। मेलों और त्यौहारों के माध्यम से ही लोगों के आपसी सम्वन्ध मजबूत होते है।
तीर्थन घाटी के कुछ गावों में यह फागली उत्सव एक दिन तथा कई गांव में दो से चार दिनों तक यह त्यौहार धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यहां के लोग अपने ग्राम देवता पर अटूट आस्था रखते है। साल भर तक समय समय पर बर्षा, अच्छी फसल, सुख समृद्धि या बुरी आत्माओं को भगाने के लिए लोग अपने ग्राम देवता की पूजा अर्चना करते है। इसके पश्चात मेलों और त्योहारों का आयोजन करके भिन्न भिन्न लोकनृत्य पेश करके नाच गाना करते है।
इस बार भी समुची तीर्थन घाटी में मनाए जाने वाले तीन दिवसीय मुखौटा उत्सव में गांव के स्थानीय बच्चों, युवक, युवतियोंं, स्त्री पुरुषों के अलावा अन्य गांवों की रिश्तेदारियों से आए हुए अतिथियों और बाहरी राज्यों से आए पर्यटको ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया है। कुछ पर्यटक इस पूरे मुखोटा नृत्य को अपने कैमरों में कैद करते रहे और कुछ ने स्थानीय लोगों के साथ नाटी में शामिल होकर नाचने के कई फेरे भी लगाए।
तीर्थन घाटी के मुखौटा उत्सव फागली में स्थानीय गांव से अलग अलग परिवार के पुरुष सदस्य अपने अपने मुँह में विशेष किस्म के प्राचीनतम लकड़ी के मुखौटे लगाते है और एक विशेष किस्म का ही पहनावा पहनते हैं। हर गांव में पहने जाने वाले मुखोटों तथा पहनावे में कई किस्म की विभिन्नता पाई जाती है इसके अलावा हर गांव में आयोजित किए जाने वाले मेलों की परम्पराएं, मान्यताए और तौर तरीके भी अलग अलग होते है। फागली उत्सव के दौरान दो दिन तक मुखोटा धारण किए हुए मडयाले हर घर व गांव की परिक्रमा गाजे बाजे के साथ करते हैं। इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है क्योंकि इस में अश्लील गीतों के साथ गालियाँ देकर अश्लील हरकतें भी की जाती है। पहले दिन छोटी फागली मनाई जाती है जिसमें एक सीमित क्षेत्र तक ही नृत्य एवं परिक्रमा की जाती है और दूसरे दिन बड़ी फागली का आयोजन होता है जिसमे मुखौटे पहने हुए मंदयाले गांव के हर घर में प्रवेश करके सुख समृद्धि का आशिर्वाद देते है। इस दौरान पूरे गांव में कई प्रकार के पारम्परिक व्यंजन भी बनाए जाते है जिसमें चिलड्डू विशेष तौर पर बनाया व खिलाया जाता है। शाम के समय देवता के मैदान में भव्य नाटी का आयोजन होता है जिसमें स्त्री व पुरुष सामूहिक नृत्य करते है। बाजे गाजे की धुन के बीच इस नृत्य को देखने में शामिल हर बच्चे, बूढ़े, युवक व युवतियों के शरीर में भी अपने आप नृत्य की थिरकन सी पैदा होने लगती है। इस त्यौहार के अंतिम दिन देव पूजा अर्चना के पश्चात स्थानीय देवता का तौर उत्सव मनाया जाता है जिसमे देवता के गुर के माध्यम से राक्षसी प्रवृति प्रेत आत्माओं को गांव से बाहर दूर भगाने की परंपरा निभाई जाती है।
हिमालयन इको टूरिज्म सोसाइटी तीर्थन घाटी के प्रधान केशव ठाकुर का कहना है पर्यटन विभाग को यहां की प्राचीनतम संस्कृति का प्रचार प्रसार डिजीटल प्लेटफार्म के माध्यम से किया जाना जरूरी है ताकि यहां आने वाले अधिकतर पर्यटक भी सभ्यता और संस्कृति से रूबरू हो सके। इनका कहना है कि तीर्थन घाटी में साहसिक पर्यटन के साथ साथ सांस्कृतिक और कृषि पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं। तीर्थन घाटी में पर्यटन कारोबार बढ़ने से यहां के स्थानीय युवाओं को अपने घर द्वार में ही रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और बेरोजगारों का शहरों की ओर पलायन भी रुक जाएगा।
हिमालयन नीति अभियान संस्था के निदेशक सन्दीप मिन्हास का कहना है कि विश्व धरोहर तीर्थन घाटी में प्राकृतिक सुन्दरता और संसाधनों के अलावा यहां की प्राचीनतम संस्कृति का भी खजाना भरा पड़ा है। इनका कहना है कि तीर्थन घाटी के प्राचीनतम मेले और त्यौहार भी यहाँ पर पर्यटकों के लिए आकर्षण का कारण बन सकते है जिसके लिए यहां की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता है। इन्होंने कहा कि आने वाले समय में सांस्कृतिक पर्यटन के क्षेत्र में भी तीर्थन घाटी के पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा
पेखड़ी गांव से देवता लोमश ऋषि के कारदार लाल सिंह का कहना है कि इस फागली उत्सव का आयोजन प्रतिबर्ष फाल्गुन सक्रांति के दौरान देव नारायण की पूजा अर्चना के पश्चात किया जाता है। मुखौटा नृत्य करके गांव से आसुरी शक्तियों को भगाया जाता है जिससे पूरे साल भर गांव में सुख समृद्धि बनी रहती है। प्रतिवर्ष समय समय पर गांव में इस प्रकार के अन्य मेलों का भी आयोजन होता रहता है।
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