विजय शुक्ल
आज हर शख्श सवालिया निशान के घेरे में हैं। सत्ता सियासत से इतर पत्रकार हो या किसान या फिर आम आदमी सबके लिए कुछ ख़ास अलग अलग पैमाने वाली देशभक्ति की पैमाइश हैं जिसको तय करने वाले लोग शायद यह भी नहीं जानते की देशभक्ति हैं क्या बला।
क्या सिर्फ सोशल मीडिया पर या व्हाट्सप्प पर बड़ी बड़ी बाते लिखने वाले लोग चिलम चढ़ाकर यह तय करेंगे कि देश किसका हैं ? अगर हमारे प्रधानमंत्री मन की बात करते हैं तो अच्छी बात हैं। हमारे मुखिया को हम सबको सम्हालने सवारने का पूरा हक़ हैं। पर अगर किसान भले ही किसी एक राज्य के जागरूक बन सड़क पर अपने मन की बात करने आये हैं तो उनके लिए कील ठुकवाना भी जायज तो नहीं कहा जा सकता।
संसद में अगर सांसद आये हैं तो उनको चुनने के पीछे लोकतंत्र ही रहा होगा उनके इलाके वाला भले वो पक्ष का हो या विपक्ष का। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल विहारी बाजपेयी जी का कथन की जिस देश में विरोध के स्वर को ना सूना जाए वह लोकतंत्र का कोई मायने नहीं शायद आज उन्ही की भाजपा वाली सत्ताधारी सरकार के लिए एक कहावत हैं।
मेरे लिखने का कही से भी मतलब कांग्रेस , समाजवादी या आम आदमी पार्टी को सही ठहराने का हैं क्योकि सबने अपने अपने हिसाब का ही लोकतन्त्र बनाने का मिशन चलाया हैं बस किसी ने लोक का तंत्र बनाने की सोची ही नहीं। वरना ना जाने कब कागजो से उतारकर योजनाए लोगो के घर में पहुंच जाती और शायद तब कोई मुफ्त के राशन पर मौज मारने की सोचता। आज टैक्स देने वाला आदमी सोचता हैं कि यह किसान उसके टैक्स के पैसे पर आंदोलन कर रहे हैं तो किसान सोचता हैं कि व्यापारी बीच की मलाई खा रहे हैं और व्यापारी सोचता हैं कि सरकार धंधा करने का और मुनाफा कमाने का कोई मौक़ा नहीं दे रही।
अब सवाल वही का वही हैं कि यह कौन तय करेगा की सुशांत सिंह राजपूत देश का बेटा बिहार चुनाव के बाद नहीं रहा। या यह कौन तय करेगा की किसान जो अन्नदाता था आज देशद्रोही हो गया वो अलग बात हैं कि पंजाब और हरियाणा वाला ज्यादा , पश्चिमी उत्तर प्रदेश वाला भी ज्यादा बाकी सब काम।
आज सरकार इतनी मजबूर क्यों हैं कि अपने हर मिशन को लेकर जिद पर अड़ी रहे वो भी तब जब इन्ही किसानो और आम आदमी ने अपने मुखिया के कहने पर एक साथ अपने आपको घरो में नजरबन्द कर लिया हो। यह समझ से परे हैं कि जिस देश के लोगो ने लोकतंत्र का इतना गहरा परिचय दिया हो आज उसी पर देशी विदेशी उंगलिया उठ रही हो।
अब उठी उंगलियों को तोड़कर तो बड़ा नहीं बना जा सकता क्योकि यह एक दो नहीं लाखो हैं। और सड़क पर कीलों और कंकरीट की तारो से बने जाल के किनारे बैठा पंजाब हरियाणा , एमपी , यूपी का वो हर आदमी डीप सिंह जैसा दलाल तो नहीं जिसने पूरे देश की गरिमा को ठेंस पहुंचाया। और आज गायब हैं। गलत हैं तभी तो लाखो का इनाम सरकार ने रखा हैं। रही बात किसानो की तो जिद तो इनके लहूं में हैं और वो जिद हैं अपनी माटी से सोना उपजाने की जिद , अपने देश की सीमा पर अपने बेटे को शहीद होने के लिए भेजने की जिद , अपनी औलादो को पढ़ा लिखा कर देश विदेश में कमाकर गाँव कुनबे में अपना नाम ऊंचा करने की जिद। इसके सामने तो साहब सबकी जिद फीकी।
बस अब देशभक्ति किसकी कितनी सही इसकी भी कोई संस्था बना दी जाय तो शायद बात बन जाय। कम से कम हर बात में लोगो की नसीहत का कोई मोहताज तो नहीं रहेगा।
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