पंडित विनय शर्मा
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
उत्तराखंड। हाल ही में घंटाकर्ण कैलाश देवता की जाती मेले की यात्रा सम्पन्न हुई है। ये यात्रा हर 12 साल बाद महाकुंभ की तर्ज पर आयोजित होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह पैदल यात्रा पॉडुकेश्वर से वसुधारा तक पहुंचती है साथ ही पांडुकेश्वर के घटाकर्ण भगवान माणा अपने भाई धन्याल से मिलने पहुंचते है 12 वर्ष बाद प्रथम दिवस पांडुकेश्वर से यात्रा शुरू करने के बाद हनुमान चट्टी में ओथ गांव में मां भगवती से भेंट कर आशीर्वाद एवं बदरीनाथ यात्रा की अनुमति लेने पहुंचते हैं द्वितीय दिवस यात्रा माणा गांव पहुंचती है माणा गांव में विश्राम के बाद तृतीय दिवस यात्रा वसुधारा पहुंचती है वसुधारा से लौटने के बाद माणा के घनयाल व पांडुकेश्वर के घंटाकर्ण कैलाश वह कुबेर जी के अवतरित पास्वा द्वारा माना गांव में गाडू लेकर सभी क्षेत्रीय भक्तों को खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं चतुर्थ दिवसबामणी गांव में लौटने के बाद यहां भी पशुओं द्वारा गाडू लिया जाता है। बामणी गांव में गाडू के अवसर पर बद्रीश पंचायत में विराजमान कुबेर जी को चतुर्थ दिन बामणी गांव लाया जाता है वह पांचवें व अंतिम दिन यात्रा पुन अपने स्थान पांडुकेश्वर पहुंचने के साथ ही यात्रा का समापन किया जाता है।
इस वीडियो में देखें किस तरह पाण्डुकेश्वर - बामनी बद्रीनाथ गांव के देवता के पशवा ग्रामीण भारी बर्फ में भगवान घण्टाकर्ण की देवरा यात्रा में वसुधारा के नीचे भरी ग्लेशियर में जा रहे है
साथ ही भगवान कुबेर जी कैलाश जी नंदा माता और माना घनियाल जी के देवता भी इस यात्रा में शामिल थे।
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