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जज साहब ........ एसोसिएशन वाले बाबूजी को बोलिये जरा वो डीडीए वाले साहब अंसार अली जी से कहकर यह खिड़कियाँ खुलवा दें, शायद यह वेंटिलेशन या आग से नेहरू प्लेस को बचाने के लिए बनी हो !



(इस निर्माण की अनुमति या इसका नक्शा या उसकी जानकारी रखने और देने का हक़ डीडीए वाले बाबूजी या एमसीडी महकमे के पास हैं )



विजय शुक्ल 
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया 
दिल्ली।  सबसे पहले अपने माननीय अदालत से माफ़ी कि  मैंने जज साहब के नजर में लाने के लिए उनसे अपील की।  अपील जरूरी थी क्योंकि अभी हाल फिलहाल में माननीय अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एक पीआईएल के आधार पर आग लगने की घटना पर एमसीडी और डीडीए के साथ साथ फायर ब्रिगेड को कोर्ट में  बुलावा भेजा था।  और यह एक नेक पहल थी क्योकि अदालत ने एक दिन पहले लगी एक कपड़े के शोरूम में आग को एक सही नजरिये से देखा।  और एसोसिएशन के इशारे पर काम  कर रहे डीडीए, एमसीडी और ना जाने क्यों किसी एक ही जगह पर पुलिसिया चौकसी को उर्मिला देवी नामक महिला के अलावा कुछ दिखता क्यों नहीं ?

माना पुलिस मजबूर हैं इधर एसोसिएशन उधर अदालत, आखिर सुने तो सुने किसकी ? अब मजबूरी में उर्मिला देवी की मजदूरी खत्म करके ही उनको काम चलाना पड़ता हैं आज से नहीं कई सालो से।  क्योकि कई सालो से इस उर्मिला देवी ने मानो नेहरू प्लेस को खतरे में डाल  रखा हो। तभी तो वो हिमांशु चौकीदार रोजाना पुलिस मुखबरी का अपना रोल बखूबी अदा कर  रहा हैं।  

पर सवाल एक हैं कि  क्या पुलिस ने कभी नेहरू प्लेस में बन रहे इन चबूतरे या डीडीए के बनाये गए ढाँचे में तोड़  मरोड़ कर उसको नया रूप देते यह बड़े लोग और उनकी करतूत को आला अधिकारियों के पास दिखाने का काम किया हैं क्या ? नक्शा हैं क्या जैसा आसान सवाल पूछा हैं क्या ? बन रहा हैं तो कागज़ तो मजबूत होंगे ही और अजा छुट्टी के दिन भला कागज़ कैसे मिले पर ठेकेदार तो आज काम  कर सकते हैं क्योकि आज फायर ब्रिगेड की गाड़िया यहाँ से गुजरेगी नहीं छुट्टी का दिन जो हैं। 

 क्या अखबार की या मेरे इस लेख को कोई एसोसिएशन वाला या डीडीए एमसीडी का आला अधिकारी महोदय माननीय अदालत के संज्ञान में लाने का कष्ट करेंगे। शायद ना ...... 


(यह आग से बचाव और इन इमारतों के वेंटिलेशन का आसान तरीका हैं पर यह एसोसिएशन बोले तो फोना वाले सिंह साहब को  कौन समझाए कि  उन्होंने यह खिड़किया बंद करके बढ़िया शीशे का दरवाजा जो खोल लिया हैं।  (एसोसिएशन के नाम पर रुतबे का खेल समझने के लिए ज़रा जोर डालकर यह लाल घेरे वाले ढांचे को और फिर सफ़ेद घेरे वाले ढाँचे को देखे )अब जब सिंह साहब का मामला हैं  तो डीडीए भला  इस अतिक्रमण मामले में  दखलंदाजी क्यो करे )



आखिर यह आग से बचाव के लिए बनाये गए खिड़कियों को किसने बंद करवाया ? क्या यह निर्माणाधीन चबूतरा अपनी मर्जी की दुकान या ठीहा जमाने का कोई नया अड्डा हैं या डीडीए और एमसीडी का कोई नया डेवलपमेंट प्लान जो एसोसिएशन के मुखिया के लिए  चबूतरे के रूप में दिख रहा हैं ? क्या यह आग बुझाने की बाल्टी का चबूतरा हैं नेहरू प्लेस की आग से रक्षा करने के लिए यह भी शायद डीडीए के अंसार अली जी एसोसिएशन के मुखिया से पूछकर बता पाए क्योकि वो लिखते पढ़ते और कागज़ बनाते बिगाड़ते ही देर रात तक उनके इशारे पर हैं। ऐसा कुछ तस्वीरें बताती हैं। 
(पार्किंग के ऊपर यह ढांचा सीढ़ियों के बीच जुगाड़ करके फोना वाले सिंह साहब के लिए स्पेशल डीडीए के अंसार अली साहब ने मंजूर किया होगा ऐसा संदेह हैं।  हो सकता हैं यह डीडीए का कोई स्पेशल आग से बचाव के लिए बनाया गया निर्माण हो जानकारी के लिए संपर्क करे डीडीए वाले बाबूजी यानी अंसार अली साहब से )

आप एक नजर जरूर डाले इन तस्वीरो पर क्यों कि आपकी निगाहो से यह आग के पीछे का पूरा खेल इस चबूतरे पर चढ़कर उस नए बन रही नयी कमाई की दास्तान सुनने के लिए आपको थोड़ा रास्ता सुझाएगा।  पर ना आप नक्शा मांग सकते हैं और ना मैं।  और वो बंद खिड़किया और यह नयी शीशे वाली खुली जगह सब डीडीए के अंसार अली जी की कृपा से तो शायद ही बन रही होगी क्योकि उनको एसोसिएशन ने बोला क्या ?

आज की खबर में हमने ९५ , ११४ , ११६ या फिर १८५ वाले अनुमति प्राप्त हॉकर का जिक्र नहीं किया हैं वो अगली खबर में आएगा कि  कैसे अंसार अली साहब कागज़ पर आठ दिन में गुलाटी मारकर एसोसिएशन बोले तो फोना वाले सिंह साहब के आदेश पर अपना ही आदेश बदलते हैं।  आखिर क्यों  सवाल उर्मिला देवी के लिए  होते हैं और  तलाश निर्मला देवी की होती हैं।  लिपकीय त्रुटि या खेल ?

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