गज़ब की बिधूना पुलिस हैं योगी जी आपकी , दोनों पक्षों ने आपस में समझौता कर भी लिया , लिख भी दिया पर आपके दरोगा साहेब करेंगे 151 में चालान और रात भर थाने में कैद
विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
बिधूना , दिल्ली। उत्तर प्रदेश पुलिस गोरखपुर होटल में घुसकर कानपुर के एक व्यापारी की ह्त्या करती हैं और बाद में क्या हुआ दुनिया ने देखा। ऐसा नहीं हैं कि योगी जी की पुलिस सिर्फ हत्याए करती हैं वो और भी कई खेल खेलती हैं जैसे की दो पक्ष में लड़ाई मार पिटाई हो या ना हो अगर गलती से कहा सुनी में किसी भी पक्ष ने पुलिस को बुला लिया तो मानो उसने गुनाह कर दिया हो। अब अगर दोनों पक्षों ने आपसी समझ और दरोगा साहब की शक्ति का अंदाजा करते हुए समाज के बीच में चार लोगो की मौजूदगी वाले हस्ताक्षर के साथ लिखत पढ़त में दरोगा साहब को लिख कर दे दिया कि अब हम आपस में ना लड़ेंगे , ना बहस करेंगे और ना ही बिना नाप करवाए अपने प्लाट में कोई काम करेंगे तो यह भला क़ानून का अपमान नहीं हुआ। दरोगा साहब हैं जुर्म के रोकने के पैरोकार। तो उनकी अपनी विवेक बुद्धि और विवेचना का सवाल हैं जाहिर सी बात हैं शान्ति बनाये रखने के लिए पुलिसिया रसूख का इस्तेमाल पूरा करेंगे जैसे आखिरी दम तक गोरखपुर में किया और दोनों पक्षों को पहले तो रात भर कोठरी में रखेंगे थाने वाली फिर सुबह जज साहब के सामने पेश करके १५१ के तहत कार्रवाई के बदले जमानत लेने वाली प्रक्रिया पूरी करेंगे। नौकरी का सवाल हैं ऊपर से यह ठहरे पंडित जी और अफवाह हैं योगी जी के राज में पंडितो पर अत्याचार हो रहा हैं आज ही एक सांसद पकौड़ीलाल कॉल जी ने ब्राह्मण ठाकुरो को जी भर के गरियाने के बाद मिमिया कर माफ़ी मांग ने की नौटंकी पूरी की हैं तो भला दरोगा जी गलत कहा हैं ?
दरोगा जी के खिलाफ ना तो हम लिखना चाहते हैं ना हमारी औकात हैं कुछ लिखने की बस एक गुजारिश हैं कि योगी जी के राम राज में इस तरह के केस बढ़ाने की क्या जरूरत जब चुनाव सर पर हैं और शिकायतकर्ता स्वयं अपनी शिकायत पर समझौता कर रहा हैं। बलात्कार के केस में युवती को या महिला को जबरिया यही पुलिस राजीनामा करवाती फिरती हैं और यहां आपसी चिकचिक पर यह कुर्सी बचाओ आंदोलन पुलिस के रसूख और दरोगा साहब के अधिकारों का अपमान सरीखा दिखता हैं। खबर लिखने तक दरोगा साहब की कार्रवाई नहीं हुई थी और दोनों पक्ष थाने के बाहर बैठने के आदेश को मान रहे थे। आपकी नजरे इनायत के लिए खत जो दोनों पक्षों में मय मोबाइल और गवाह के साथ हैं पेश हैं उम्मीद हैं दरोगा साहेब न्याय करेंगे।
मैंने साहब से खुद ही बात की माननीय शशिभूषण मिश्रा जी से , उनका अपना तर्क भी अपनी जगह सटीक था कि कानपुर में हाल में ही प्लाट की लड़ाई में ऐसे ही एक मामले में एक पक्ष ने आत्महत्या कर ली और अब कटघरे में पुलिस और चौकी इंचार्ज खड़े हैं इसलिए इनको 151 के तहत कल अदालत से जमानत के लिए पेश किया जायेगा और हवालात नहीं भेजा जाएगा इनको थाने में बाहर रखा गया हैं और सुबह कार्रवाई की जायेगी। भले ही दोनों पक्षों ने समझौता किया हो पर यह पुलिसिया तर्क भी अपनी जगह जायज ही माना जाएगा क्योकि यह पुलिस कह रही हैं और यही हमारे माई बाप हैं खासकर योगीराज में जहां पुलिस ह्त्या करे और सरकार मुवाअजा और नौकरी बांटे। काश इसके लिए सरकार पुलिस महकमे के वेतन से काटकर इसकी भरपाइ करती और ऐसी रातो में बिठाने के बदले भी कुछ हमारी अदालते सजा देती। मानवाधिकार का हनन तो खुद माननीय अदालत ही मानती हैं कि सबसे ज्यादा पुलिस ही करती हैं।
टिप्पणियाँ
हत्या जैसे संगीन मामले छुपाने के लिए जबरन डेडबॉडी जलाना हो या पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पहले खुद डॉक्टर समझ एक तरफा बयान देकर आरोपो को झुठलाना हो या यू कहे उच्चाधिकारियों को समय से खुश करने के एवज में जनता ही मारी जाती है ये जगज़ाहिर है
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