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बीएसएफ के सहारे पंजाब की बागडोर हथियाने की फिराक में भाजपा



विजय शुक्ल 
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया 
चुनावी रणनीतिकार और धुरंधर खिलाड़ियों का ध्याना जब तक किसान आंदोलन के खामियाजे को समझने में और कैप्टेन के जाने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू का आकलन करने में जाता तब तक भाजपा के चाणक्य ने अपना काम कर लिया। बीएसएफ की सीमा में बढ़ोत्तरी जाहिर सी बात हैं अफगानिस्तान में बढ़ रहे तालिबानियो और कश्मीर में चल रहे आतंकी मौत के तांडव को रोकने के लिए जरूरी था ही पर इसके अलावा यह जरूरी था पंजाब में भाजपा का सत्ता में स्थापित होने का सपना पूरा करने के लिए। कैप्टन अमरिंदर और भाजपा का गठजोड़ नयी सत्ता का पंजाबा में जनक होगा यह लगभग तय होता दिख रहा हैं। ऐसा नहीं हैं कि  यह महज एक कयास हैं।  क्योकि जिस तरह से अकाली अकेला हुआ हैं और बसपा के साथ आगे आकर चुनावी बिसात बना रहा हैं और ऐन मौके पर बसपा के नाता तोड़ने के बाद वो पूरा का पूरा चौसर ही चौपट होना भी तय हैं।  ऐसी स्तिथि में आगामी चुनाव में संभावित इकाई के अंक से महज दो चार अंक ऊपर जीत दर्ज कराने वाली आम आदमी पार्टी , कैप्टन के जुदा  होने के बाद राष्ट्र के लिए खतरा बताये गए सिद्धू कांग्रेस के लिए खतरा कितना बनेगे इसके आकलन की खाली जमीन पर भाजपा और कैप्टन समर्थित निर्दलीय या नयी पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार जिसमे जजपा भी हो सकती हैं पूरा खेल बिगाड़ सकते हैं। 

अब यह तो एक पक्ष था असमझने समझाने के लिए।  पर दूसरा सबसे जरूरी पक्ष हैं माझा से मालवा तक के शहरो में बीएसएफ की पहुँच बना पंजाब के राजनेताओ का कमाई का रास्ता रोक कर उनको एक नयी आर्थिक कैद में जकड़ने वाली बीएसएफ के जरिये सत्ता हथियाने का केंद्र  का खेल।  अब यह कोई राज्य पुलिस तो हैं नहीं जो सरकार के इशारे पर काम करे और अपने विधायकों और मंत्रियो के इशारे पर पर्चा फाड़े।  यह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अंदर आने वाले बीएसएफ का  सवाल हैं जिनकी नजर ना सिर्फ राष्ट्र की सुरक्षा पर हैं बल्कि पार्टी के लिए नए राज्यों को सत्ता में लाने की सुनिश्चितता का भी हैं और ऐसे में पंजाब में यह बीएसएफ की मौजूदगी का काम बिलकुल अलग प्रयोग में हैं जिसकी जद में सिर्फ वही इलाके छूटे हैं जहां भाजपा थोड़ी मजबूत हैं और बीएसएफ की जद में आये सभी इलाके अब भाजपा की अपनी जद  में आसानी से आ जायेगे क्योकि सीमा पार से चल रहे खेल में ऐसा हो नहीं सकता कि  सत्ता और सियासत के लोग शामिल ना हो और अगर ऐसा हुआ तो अब ईडी , इनकम टैक्स और सीबीआई के बाद बीएसएफ का डंडा एक शानदार हथियार होगा मोल भाव का। 

कैप्टन अमरिंदर एक खानदानी महाराजा हैं उनकी सियासत के पैमानो में राजघराने की अपनी हनक हैं और सोच में भी शायद राजशाही रसूख और अपनी सीमाओं की सुरक्षा का जज्बा अब भी ज़िंदा होगा क्योकि आपको बता दे कि  कैप्टन साहब उसी घराने से ताल्लुकात रखते हैं जिसने दुनिया की सबसे महँगी गाड़ियों रॉयल्स को कूडागाड़ी के रूप में इस्तमाल कर उसको अपने घुटनो पर ला दिया था तो कैप्टन का अंदाज ही अलग हैं। और शायद कांग्रेस ने अपने बदलते स्वरुप से ऐसे लोगो को अलविदा करने का या उनके खुद जुदा होने का रास्ता अपनाने पर मजबूर होने का फार्मूला बनाया हो चाहे वो सिंधिया रहे हो या जितिन प्रसाद या अब कैप्टन। 




पर यकीनन पंजाब में नए राजनीतिक माहौळ में सत्ता की चाभी ज्यादा सुरक्षित भाजपा समर्थित कैप्टन के उम्मीदवारों से तय होगी या यूं कहे कि कैप्टन समर्थित और निर्देशित उम्मीदवारों से तय होगी क्योकि भाजपा में जिताऊ चेहरों के कमी कुछ सीटों पर दिखती जरूर हैं जिसको शायद कैप्टन की पारखी नजर पूरी कर दे।  और यकीन मानिये जजपा का अन्य राज्यों में चुनाव चिन्ह आवंटन करने का जो प्रार्थना पत्र हैं यह जजपा के लिए सुरक्षित अन्य राज्यों में अपनी जमीन बनाने और हरियाणा में अपनी जमीन बचाने के साथ साथ बीएसएफ के सहारे बनते बिगड़ते भाजपाई समीकरण का सहारा लेकर कैप्टन के लिए नया अखाड़ा देने की तरफ का एक खेल भी हो सकता हैं और आने वाले समय में बिना किसी राजनीतिक गुना गणित और खिचखिच के कैप्टन जजपा या अपने निर्दलीय उम्मीदवारों की फ़ौज से बीएसएफ के बैनर तले भाजपा को सत्ता में लाने का खेल पूरा करे। 

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