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डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय वैश्विक फलक पर पहुँचाना लक्ष्य : प्रो. आशा शुक्ला, कुलपति

समावेशी व समरस व्यक्तित्व के धनी बाबू जगजीवन राम


आजादी के अमृत महोत्सव के कार्यक्रम-19 के अंतर्गत ‘बाबू जगजीवन राम के चिंतन में गाँव, गरीब और किसान’  विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन



लोकल न्यूज ऑफ इंडिया 

महू (इंदौर). डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय डॉ. अम्बेडकर की जन्म स्थली से उनके कार्यों, विचारों और लोक परंपराओं को समृद्ध करते हुए निरंतर गतिशील है.।विश्वविद्यालय वैश्विक फलक पर स्थापित हो। इस प्रयास के साथ विश्वविद्यालय दृढ़ संकल्पित है। बाबू जगजीवन राम ने स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान समाज को जोड़ने का प्रतिम योगदान दिया है। बाबू जगजीवनराम  के कृति-व्यक्तित्व को समाज में संवर्धित व संप्रेषित करने के लिए योजनाबद्ध ढंग से कार्य किया जा रहा है। उक्त बातें ब्राउस कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने बाबू  जगजीवन राम पीठ, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू तथा हेरीटेज सोसाईटी, पटना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अमृत महोत्सव कार्यक्रम श्रंखला-19 में आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार विषय ‘बाबू जगजीवन राम के चिंतन में गाँव, गरीब और किसान’ में बतौर अध्यक्ष कही। 

 कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में बताया कि बाबू जगजीवन राम का किसानों मज़दूरों से संबंध में अटूट रिश्ता रहा है। विभिन्न पदों पर रहते हुए उनके चिंतन के केंद्र में सदैव गाँव, गरीब और किसान ही रहे हैं। विश्वविद्यालय में स्थापित बाबू जगजीवन राम पीठ के माध्यम से उनके कार्यों को और अधिक प्रसार देने के लिए संकल्पित हैं जिससे राष्ट्र कल्याण का समरस भाव लोगों में उद्धृत हो सके। बाबू  जगजीवन राम ने अपने समय में यथा स्थितिवाद से संघर्ष करते हुए जो मुकाम हासिल करते हैं, उनसे बड़ा समावेशी व समरस व्यक्तित्व उस दौरान नहीं दिखता है।विश्वविद्यालय उनके समावेशी और सनातन परंपरा के योगदान को जनमानस में व्याप्त करने के लिए संकल्पित है।



मुख्य वक्ता के रूप में सहारा न्यूज नेटवर्क के वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद डॉ. ओमशंकर गुप्ता ने कहा कि स्वाधीनता आन्दोलन में बाबू जगजीवन राम एक सनातनी नायक के रूप में रहे। वह जितने शांत थे, उतना ही मजबूत भी थे। कुछ विषम परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने कभी किसी के खिलाफ नफरत नहीं फैलाई। देश और लोक को प्रथम माना और सौहार्द का रास्ता चुना। बाबू जगजीवन राम ने राष्ट्रीय सांस्कृतिक अस्मिता के साथ देशज अस्मिता को जोड़ने का अथक प्रयास किया। उनका किसी जाति, धर्म, वर्ग, संप्रदाय से कोई दुराग्रह नहीं था। वे एक समरसता एवं समता मूलक समाज चाह रहे थे।




बाबू जगजीवन राम पीठ के आचार्य डॉ. शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने कहा कि बाबू जगजीवन राम ने राष्ट्रीय सांस्कृतिक अस्मिता के साथ देश की अस्मिता को जोड़ने का कार्य किया। गाँव के चिंतन से ही सर्वांगीण विकास किया जा सकता है। विश्वविद्यालय सामाजिक समरसता एवं समता में विश्वास करता है इसलिए निरंतर विश्वविद्यालय ऐसे कार्यक्रम आयोजित करता है जिससे हमें आजादी के प्रति निष्ठा का भाव का बल मिलता है।विश्वविद्यालय राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय व्याख्यानों में आजादी के उन पुरोधाओं को स्मरण करता है जिनका योगदान देशज और लोक सनातन परम्परा और संस्कृति के लिये आवश्यक है। कार्यक्रम का संचालन 

बाबू जगजीवन राम पीठ के शोध अधिकारी डॉ. रामशंकर ने तथा धन्यवाद ज्ञापन हेरीटेज सोसाईटी, पटना के महानिदेशक डॉ. अनंत आशुतोष ने किया। इस अवसर पर देश-विदेश के वरिष्ठ स्वतंत्रता चिन्तक, शिक्षक एवं शोधार्थी आभासी मंच से जुड़े रहे।

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