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60 की उम्र में हांफने लगा गोवा ..इकानामी संकट में



गोवा मुक्ति दिवस पर विशेष ..

विजय शुक्ल 

गोवा। पर्यटक राज्य के तौर पर देश भर में खुशियां फैलाने वाला गोवा 19 दिसंबर को 60 साल का हो जायेगा. गोवा मुक्ति दिवस के साठ साल के मौके पर समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शिरकत करेंगें लेकिन इस छोटे से राज्य के आर्थिक हालात इतने खराब हो चले है कि हर गोवा वासी पर पांच लाख रुपये का कर्ज है और सरकार के ऊपर बीस हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है .

अब सबको उम्मीद है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विशेष पैकेज की और गोवा की रीढ माने जाने वाली माइनिंग की फिर से शुरुआत करने के ऐलान की क्योंकि इसके बिना गोवा के हालात जल्दी ठीक नहीं होने वाले . इसके साथ ही ओमाइक्रोन की दहशत के कारण गोवा में इस बार 40 फीसदी टूरिस्ट भी नहीं पहुंचे है . किनारों पर रंगीन होने वाले शेक और कसीनों से लेकर क्लब तक सब सूने पड़े हैं. इस बार गोवा का मशहूर सनबर्न भी नहीं होगा और न ही गोवा कार्निवाल की रौनक होगी. 

आइये एक नजर डालते है इन साठ सालों में गोवा ने क्या हासिल किया. गोवा देश का वो राज्य है आजादी के 14 साल बाद भारत गणराज्य का हिस्सा बना .  सन 1962 में गोवा मुक्ति आंदोलन के साथ ही यहां पुर्तगाल का शासन समाप्त हो गया . पोर्तगीज यहां पर मार्च 1510 में अलफांसो द अल्बुकर्क के आक्रमण के बाद राज करने लगे थे . मराठा शासकों ने कई बार हमले किये लेकिन जीत नहीं पाये और ब्रिटिश सरकार से समझौते के कारण पोर्तगीज शासन बना रहा आखिर 19 दिसंबर 1962 को भारत सरकार की मदद से आपरेशन विजय के साथ ही गोवा को मुक्ति मिल सकी और वो भारत का हिस्सा बना .. 

छोटा सा राज्य और 40 सदस्यीय विधानसभा वाला ये राज्य शुरुआती वर्षों को छोडकर लगातार राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा . यहां हर दल में टूटफूट और 11 से ज्यादा मुख्यमंत्री बने .अब फिर से फऱवरी में चुनाव होने वाले हैं और इस बार दो बड़े दलों आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के जमकर मैदान में उतरने के चलते लड़ाई दिलचस्प हो गयी है. पिछले चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला और कांग्रेस बहुमत के करीब थी 17 विधायकों के साथ लेकिन सरकार बीजेपी के मनोहर पर्रीकर ने बना ली . बाद में कांग्रेस के 11 और विधायक भी टूटकर बीजेपी चले गये .अब फिर चुनाव के समीकरण बनाये जा रहे हैं. 

इन सबके बीच गोवा और यहां के लोग कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. तीन साल से कोविड के कारण पर्यटन उघोग ठप हो गया है तो दूसरी तरफ तीन साल से ही सबसे बड़ी आर्थिक गतिविधि माइनिंग बंद होने के कारण सरकार की तिजोरी खाली और विकास कार्य बंद पड़े हैं. ऐसे में रोजगार और माइनिंग फिर से शुरु करने का मुददा बना हुआ है .असल में गोवा में माइनिंग एक उलझा हुआ मुददा है . सन 2012 में चुनाव के लिए बीजेपी के मनोहर पर्रीकर ने इसे मुददा बनाया था और फिर माइनिंग बैन कर दी थी . बाद में कुछ समय के लिए माइनिंग चालू हुयी लेकिन फिर 2018 में बैन हो गयी . तब से इन खदानों को फिर से शुरु करने का मुददा बना हुआ है. गोवा में खनन का काम आजादी से पहले 40 के दशक में तब की पुर्तगाल सरकार के दिये गये पटटों से शुरु हुआ था . बाद में आजादी के बाद इनको रेगुलराइज कर दिया गया . गोवा के खान मालिकों का कहना है कि उनको पूरे देश की तरह ही कानून के तहत दूसरा लीज एक्सटेंशन दिया जाये . ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. गोवा के लोग चाहते है कि इन खदानों के लीज एक्सटेंशन का मुददा संसद में बिल लाकर सुलझाया जाये ताकि लोगों को तुरंत रोजगार मिल सके . 

इस बीच खेती बिल पर सरकार के साथ लगातार टकराने वाली कांग्रेस ने गोवा में माइनिंग फिर शुरु करने पर मोदी सरकार का समर्थन करने का ऐलान किया है . लंबे समय बाद सरकार को ये मौका है कि वो किसी मुददे पर कांग्रेस को साथ में ले सकती है.

 पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत ने कहा कि गोवा में  आयरन ओर माइनिंग शुरु करने का मुददा लंबे समय से बना हुआ है और मौजूदा बीजेपी सरकार इस मुददे पर नााकाम रही है उन्होने कहा कि राहुल गांधी ने भी अपने दौरे में माइनिंग फिर से शुरु करने का समर्थन किया था और अगर केन्द्र सरकार इसके लिए संसद में कोई बिल लाती है तो कांग्रेस उसका समर्थन करेगी . 

गौरतलब है कि गोवा के 21 सरपंचों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिठठी लिखकर अपनी आजीविका बचाने की बात की थी और अब कांग्रेस ने खुलकर माइनिग शुरु करने का समर्थन कर दिया है . इस बीच आज केबिनेट की बैठक के बाद गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि सरकार जल्दी ही 8 खदानों को नीलाम करेगी लेकिन कांग्रेस चाहती है कि पहले से चल रही खदानों की तुरंत चालू किया जाये ताकि लोगों को रोजगार मिल सके .गोवा में तीन लाख से ज्यादा लोगों की आजिविका माइनिंग से चलती थी लेकिन अब ये बेरोजगार है . ऊपर से कोरोना के कहर के कारण पर्यटन पर भी असर हुआ है . 

गोवा की जीडीपी का करीब बीस फीसदी हिस्सा माइनिंग रेवेन्यू से आता था और इसके साथ ही आयरन ओर की प्रति टन बिक्री का करीब 35 फीसदी रेवेन्यू के तौर पर मिलता था , इसके साथ ही सभी कंपनियों को गोवा मिनरल फंड में पैसा देना जरुरी है ताकि गांवों में सुविधाओं का विकास हो सके लेकिन माइनिंग बंद होने के साथ गोवा की इकानामी के बुरे दिन आना शुरु हो गये . अब सब चाहते है कि फिर से माइनिंग शुरु हो और गोवा को आर्थिक संकट से उबारा जा सके।

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