विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
द्रास लद्दाख. सियाचिन की गोद में बसे वीरभूमि द्रास में आज का सूरज कुछ अलग उगा। यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं थी, बल्कि एक जीवंत स्मृति थी — उन शहीदों की, जिनकी बहादुरी और बलिदान ने 25 साल पहले कारगिल युद्ध में भारत की अस्मिता की रक्षा की थी। इस ऐतिहासिक अवसर पर, भारत सरकार के युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय की पहल माइ भारत द्वारा एक विशेष श्रद्धांजलि पदयात्रा का आयोजन किया गया, जिसने द्रास की बर्फीली घाटियों में देशभक्ति की नई लहर दौड़ा दी।
पदयात्रा की शुरुआत हिमाबस पब्लिक हाई स्कूल, द्रास से प्रातः 6 बजकर 30 मिनट पर हुई, जिसे केंद्रीय मंत्री डॉ मनसुख मांडविया ने झंडी दिखाकर रवाना किया। उनके साथ रक्षा राज्य मंत्री श्री संजय सेठ भी मौजूद रहे। दोनों नेताओं ने शहीदों को नमन करते हुए युवाओं के साथ कुछ दूर तक पैदल चलकर देशप्रेम का संदेश दिया।
डॉ मांडविया ने अपने संक्षिप्त लेकिन भावुक संबोधन में कहा कि द्रास वो धरती है जहाँ पत्थरों में भी शौर्य की गूंज है। यहां तिरंगे के नीचे हर सांस एक सैनिक के बलिदान को महसूस करती है। इस पदयात्रा के माध्यम से हम युवा पीढ़ी को राष्ट्रसेवा की उस विरासत से जोड़ने आए हैं, जो कारगिल ने हमें सौंपी है।
राज्य मंत्री श्री संजय सेठ ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा कि देशभक्ति सिर्फ जंग का मोर्चा नहीं है, यह जीवन की हर दिशा में जिम्मेदारी निभाने का संकल्प है। द्रास की यह पदयात्रा एक जीवंत प्रेरणा है, जो देश के कोने-कोने तक पहुंचेगी।
इस पदयात्रा में स्थानीय युवाओं, छात्रों, सेना के जवानों, एनसीसी कैडेट्स और स्वयंसेवकों ने भारी संख्या में भाग लिया। जैसे-जैसे पदयात्री आगे बढ़ते गए, स्थानीय नागरिकों ने फूल बरसाकर स्वागत किया, बच्चों ने देशभक्ति के गीत गाए, और पूरा इलाका भारत माता की जय और विजयी विश्व तिरंगा प्यारा के नारों से गूंज उठा।
कार्यक्रम के दौरान शहीद सैनिकों के परिजनों को भी सम्मानित किया गया। विद्यालय परिसर में आयोजित विशेष श्रद्धांजलि समारोह में कारगिल युद्ध की वीरगाथा पर आधारित लघु नाटकों और कविताओं ने सभी की आंखें नम कर दीं।
इस आयोजन में लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद और स्थानीय प्रशासन की भूमिका भी सराहनीय रही। आयोजन की समस्त व्यवस्थाएं पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार भली-भांति सम्पन्न हुईं।
यह पदयात्रा केवल एक रस्म नहीं थी — यह द्रास की उस वीरता को जीवंत करने का प्रयास था, जिसने 1999 में पाकिस्तान के घुसपैठियों को खदेड़कर भारत को जीत दिलाई थी। आज उसी धरती पर कदमों की यह श्रृंखला यह बता रही थी कि युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं, विचारों और संकल्प से भी लड़े जाते हैं।
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