लक्ष्मी शर्मा
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
भुवनेश्वर । पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष एवं पुरी के राजा गजपति महाराज दिव्यसिंह देव ने मंगलवार को इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) की गवर्निंग बॉडी को सख्त निर्देश देते हुए कहा है कि रथ यात्रा केवल उन्हीं नौ पवित्र दिनों में आयोजित की जाए जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि से प्रारंभ होते हैं। गजपति महाराज का यह निर्देश उस वक्त आया जब ISKCON ने ‘ज्येष्ठ पूर्णिमा’ को स्नान यात्रा मनाने पर सहमति तो जताई, लेकिन ‘आषाढ़ शुक्ल द्वितीया’ तिथि पर रथ यात्रा मनाने से इंकार कर दिया ।
गजपति महाराज ने ISKCON के चेयरमैन गोवर्धन दास को लिखे अपने विस्तृत पत्र में संगठन के उस चलन पर गहरी चिंता व्यक्त की जिसमें दुनिया के अलग-अलग देशों में रथ यात्राएं मनमाने दिनों पर आयोजित की जा रही हैंं । उन्होंने इसे पवित्र शास्त्रों और प्राचीन परंपराओं का उल्लंघन बताया ।
परंपराओं से समझौता नहीं
गजपति महाराज ने अपने पत्र में कहा कि “ रथ यात्रा और स्नान यात्रा " दोनों ही शास्त्रसम्मत तिथियों पर ही आयोजित की जानी चाहिए। उन्होंने दोहराया कि श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा केवल उसी नौदिवसीय अवधि में संपन्न होनी चाहिए जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि से प्रारंभ होती है।
उन्होंने लिखा कि यदि ISKCON को विदेशों में सप्ताहांत पर ही आयोजन करना आवश्यक लगता है , तो वे ऐसा कर सकते हैं — परंतु वह सप्ताहांत भी उन्हीं नौ पवित्र दिनों के भीतर होना चाहिए, बाहर नहीं ।
अपने पत्र में गजपति महाराज ने स्पष्ट कहा, “ 6 सितंबर 2025 को भेजे गए मेरे ईमेल में इस विषय पर जो अंतिम निर्णय दिया गया था, वही मान्य है और उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं।” उन्होंने याद दिलाया कि यह निर्णय विद्वानों की अंतिम राय पर आधारित है ।
गजपति महाराज ने लिखा कि ISKCON यदि वर्ष के अन्य अवसरों पर शोभा यात्राएं निकालना चाहे तो वह ‘उत्सव विग्रहों’ के साथ ऐसा कर सकता है, लेकिन उन यात्राओं को “श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा” के नाम से प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए और न ही वही रथ स्वरूप उपयोग किए जाएं जो वास्तविक रथ यात्रा में प्रयुक्त होते हैं।
गजपति महाराज ने यह भी स्पष्ट किया कि श्री चतुर्धा दारु विग्रह “मूल विग्रह” हैं, “उत्सव विग्रह” नहीं। परंपरा के अनुसार, इन्हें केवल दो अवसरों — स्नान यात्रा और रथ यात्रा — पर ही गर्भगृह से बाहर लाया जाता है। यह अनुमति स्वयं भगवान जगन्नाथ के दिव्य आदेशों पर आधारित है, जिनका उल्लेख वेदव्यास रचित महापुराणों में मिलता है। उन्होंने कहा कि इन पवित्र आदेशों के बिना किसी अन्य दिन मूल विग्रहों को गर्भगृह से बाहर लाना “पूर्णतः अनुचित और अशास्त्रीय” है।
गजपति महाराज ने अपने पत्र में लिखा कि वे ISKCON के इस निर्णय से गंभीर रूप से चिंतित और निराश हैं कि संगठन अब भी रथ यात्राएं वर्षभर में अलग-अलग तिथियों पर आयोजित कर रहा है । उन्होंने इसे परंपरा और श्रद्धा दोनों का अपमान बताते हुए कहा कि श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन केवल और केवल उन दिनों में होना चाहिए जो भगवान जगन्नाथ द्वारा शास्त्रों में निर्धारित किए गए हैं ।
उन्होंने कहा कि हरिनाम संकीर्तन, प्रवचन, ग्रंथ वितरण और अन्य धार्मिक आयोजन ISKCON वर्षभर करता ही है, इसलिए केवल प्रचार के उद्देश्य से परंपराओं से छेड़छाड़ करना अनुचित है।
गजपति महाराज दिव्यसिंह देव का यह पत्र न केवल एक प्रशासनिक टिप्पणी है, बल्कि जगन्नाथ संस्कृति की पवित्रता और शास्त्रीय अनुशासन की रक्षा का सशक्त संदेश भी है। उनका यह रुख इस बात को पुष्ट करता है कि श्री जगन्नाथ महाप्रभु की परंपरा किसी संस्थागत सुविधा या विदेशी परिस्थिति के अनुसार नहीं, बल्कि केवल और केवल शास्त्र और संकल्प के अनुसार चलेगी ।


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