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राजनीतिः अति महत्वाकांक्षाएँ लोकतंत्र के लिए घातक

 


राजेन्द्र सिंह

राजनीति में अतिमहत्वाकांक्षा लोकतंत्र के लिए सबसे खतरनाक है। उच्च पदों पर आसीन होने के लिये सतही तिकड़बाजी हमेशा जनहित को प्रभावित करती है। महत्वाकांक्षा का यह नजारा तब देखने को मिल रहा है, जब आम जनता कोरोना काल से बुरी तरह त्रस्त है। बेमौत मर रहे लोगों की अंतिम विदाई के लिए सामग्री तक न पा रही हो, ऐसी स्थिति में सत्तापक्ष एवं विपक्ष जब अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिये मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार कर स्वहित की बयार की हवा दे रहा हो तो निश्चित रूप से आमजन के लिये यह कठिन समय है, और इस दौर में चल रही इन बेमौसमी बयारों से सबका आहत होना स्वाभाविक है।


समूचा देश कोविड-19 के प्रकोप के गंभीर रूप से पीड़ित है, लाखों लोग संक्रमित होने के साथ ही अपनी जाने भी गंवा चुके हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उ0प्र0 सहित लगभग सभी राज्य इस महामारी की चपेट में हैं। इस भीषण महामारी को रोकने में सरकारी संसाधन नाकाफी है। इस काल में सरकारी एवं निजी अस्पताल छोटे पड़ गये हैं, कोविड जांच, बेड की कमी और ऑक्सीजन की मारामारी से समूचा देश गंभीर दौर से गुजर रहा है। लॉकडाउन के बाद हालात पर थोड़ा काबू जरूर पाया गया है, लेकिन स्थिति सावधानी हटी और दुर्घटना घटी वाली आज भी है, और भविष्य में भी बनी रहेगी। कोरोना की पहली लहर में लगे लॉकडाउन के बाद दूसरी लहर पर काबू पाये जाने के लिये लॉकडाउन का सिलसिला जारी है, तीसरी लहर को और खतरनाक बताया जा रहा है। उपाय सिर्फ वैक्सीनेशन, सोशल डिस्टेन्सिंग और मास्क ही है। जो हम सबको में संकट में पड़ने से रोक सकता है, लेकिन हमारी सजगता और जागरुकता की कमी इस महामारी को नियंत्रित नहीं कर पा रही है। वजह हम लापरवाह है न सुधरने की कसम खा रखी है।


पवित्र पावनी मां गंगा नदी सहित कई अन्य नदियों में बेतरतीब ढंग से मिलीं सैकड़ों लाशों का वीडियो अपनी आंखों से देखने के बाद भी लोगों में दहशत नहीं देखी जा रही है, सिर्फ तर्क जरूर सुने जा रहे हैं। ठीकरा सरकारों पर फोड़ा जाता है।लेकिन हम स्वयं क्या कर रहे हैं, नैतिक जिम्मेदारी और सामाजिक सरोकारों के प्रति हमारा दायित्व क्या है? इस पर चिंतन क्यों नहीं हो रहा है और यही लापरवाही आर्थिक तंगी का बड़ा कारण बन रही है, लॉकडाउन के दौरान सारा कारोबार ठप्प है, लोग रोजमर्रा की वस्तुओं की खरीददारी के लिए मारामारी कर रहे हैं। बाजारों के नियमित रूप से खुलने के आसार अभी भी नहीं दिख रहे हैं। जनता और कारोबारी दोनों ही हलकान हैं।

गौरतलब, तो यह है कि जहां एक ओर देश में महामारी से आमजन त्रस्त है, बेमौत मरने का सिलसिला जारी है, आर्थिक ढांचा लगातार कमजोर होता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर केन्द्र एवं प्रदेश सरकार जरूरत मंद लोगों को राहत पहुंचाने के लिये उनके खाते में पैसा भेजने के साथ निःशुल्क राशन व खाद्य सामग्री का वितरण कर मरहम लगाने में जुटी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार प्रदेश के दौरे पर हैं। कोरोना प्रबंधन की जमीनी हकीकत को वह स्वयं अपनी आंखों से देख रहे हैं। और बेहतर प्रबंधन के दिशा-निर्देश दे रहे हैं। सत्ता पक्ष जुड़े लोग इस बुरे वक्त में भी अपनी महात्वाकांक्षा पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं।


पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है, कुछ संभावित नये चेहरों की ताजपोशी तो कुछ की विदायी की अटकलें ऐसे समय में लग रही हैं। जब देश और प्रदेश में कोहराम की स्थिति है। शहर से लेकर गांव तक में मातम और पसरे सन्नाटे के बाद भी कोई सबक नहीं लिया जा रहा, स्थिति तब और शर्मनाक हो जाती है जब इन हालातों को काबू में रखने के लिये दिन-रात हर जतन में जुटे मुख्यमंत्री की कुर्सी को भी खाली करने की अटकलें लग जाती है। प्रतापगढ़ के पूर्व विधायक बृजेश मिश्रा का विवादित बयान तो बानगी मात्र है, श्री मिश्र की सोच उनकी व्यक्तिगत राय हो सकती है, लेकिन यह रायशुमारी ऐसे वक्त पर आ रही है, जब मुख्यमंत्री कोरोना संक्रमित होने के बाद भी दिन-रात वर्चुअल बैठकें कर हालात को  नियंत्रित करने की प्रभावी योजना पर विचार एवं निर्देश दे रहे थे, और अब वह लॉकडाउन में प्रदेश का दौरा कर जिलों के कोरोना प्रबंधन का स्थलीय निरक्षण कर दिशा-निर्देश दे रहे हो तो दूसरी और इस संकट की घड़ी में एकजुटता दिखाने के बजाए पार्टी के ही कुछ बड़े नेता नये चेहरों की ताजपोशी का ताना-बाना बुन रहे हैं।


सवाल यह है कि शासन सत्ता में बैठे जिम्मेदारों के लिए यह वक्त जनता के प्रति हमदर्दी जताने के बजाय उ0प्र0 में कुर्सी हथियाने की लड़ाई शुरू हो गयी है। संघ और भाजपा संगठन से जुड़े नेताओं की राजधानी में इस बीच बढ़ी सक्रियता को भारतीय जनता पार्टी के लिए शुभ नहीं माना जा रहा है, विपक्ष सहित पार्टी का एक धड़ा इन गतिविधियों को लेकर दुष्प्रचार करने में काफी रूचि ले रहा है। वहीं प्रदेश के सी0एम0 योगी आदित्यनाथ इससे इतर दौरे एवं कोरोना संक्रमण पर पूर्ण नियंत्रण के लिए रणनीति बनाने के साथ अफसरों के पेंच कसने में लगे हैं। सी0एम0 योगी खुद भी कोरोना संक्रमित होने के बाद भी वह प्रदेश की जनता के प्रति काफी गंभीर थे, यही वजह है कि संक्रमण काल में भी हर संभव प्रयास कर आमजनों को बे-मौत मरने से बचाने की कवायद में लगे रहे। और निगेटिव रिपोर्ट आते ही वह प्रदेश में कोरोना से बचाव के इंतजामों का स्थलीय निरीक्षण करने में जुट गये। कहना गलत नहीं होगा कि लॉकडाउन के साथ योगी के कुशल प्रबंधन ने आज कोरोना की रफ्तार बिल्कुल रोक दी है। प्रदेश के 20 जिलों को छोड़कर कोरोना कर्फ्यू में ढील भी दे दी गयी है। राजधानी लखनऊ सहित कई महानगरों में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 600 से कम आते ही इन जिलों में भी कोरोना कर्फ्यू से राहत मिल जाएगी। 


कोरोना के इस अन्तर्राष्ट्रीय संकट से संघर्ष कर देश एवं प्रदेश में जो भी राजनैतिक घटना क्रम देखने को मिल रहे हैं। उससे आमजन स्तब्ध है। खासकर उ0प्र0 और पश्चिम बंगाल के घटनाक्रमों पर जनता का यही मत देखने को मिल रहा है। ऐसे वक्त में राजनीति की अति महवत्वाकांक्षाएं लोकतंत्र के लिये शुभ नहीं है। विपक्ष भी कोरोना संक्रमित लोगों की जिंदगी बचाने के लिये कार्यकर्ताओं को सहयोग की भावना के साथ उन्हें प्रेरित करने के बजाय 'ट्वीटर वॉर' को ही जनसेवा मान रही है। इन हालातों में ठीकरा सरकार पर फोड़ने की बजाय समाज के एक जागरूक व्यक्ति होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति को एक-दूसरे की मदद और कोरोना वॉरियर्स को उनके जज्बे और सेवा भाव को सलाम करना चाहिये। जो अपनी एवं अपने परिवार के जान की परवाह किये बिना आमजनता की जिंदगी को बचाने में अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैँ और मीडिया प्रबंधन के क्षेत्र मे अग्रणी भूमिका निभाते हैं)

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