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वाकिफ हूँ मिजाज से उसके तो ऐतबार कैसे हो .....

 

वाकिफ हूँ  मिजाज से उसके   तो ऐतबार  कैसे हो 

रंग बदलता है रहजन  हर मोड पे रहबर बन कर  !




हो गये  अपराध के  लिये  क्षमा  पश्चाताप  देता है , लेकिन  राजनीती मे किये गये  अपराध के लिये भविष्य भी क्षमा  नहीं  करता ! दायित्व से छुटकारा  इतिहास  नहीं  देता !


लेकिन एक चालाकी से भ्रम के प्रचार  को  हथियार  बना  कर  जो  इबारत  घढ़ी गयी  उसके  परिणामों  की  उपलब्धियां  समाधानों से  विमुख  वर्चसवादी सता की  राह पर चलने  लगें तो 

समूहिक  समाजिक सजग चेतना को  विर्गिकृत घृंणा के अंधकार मे  ढ़केलना  राजनितिक  अपराध कियूँ नहीं   माना  जाना  चाहिये !


आवाम  के  दुख  और देश की  पीडा की  व्याख्या को  मनोरंजन के उत्सव  मे  परिभाषित  करना राजनितिक  अपराध की  श्रेणी से  किस  तर्क  के  आधार पर बाहर रखा जा  सकता है।


नेत्रतव  की  दूरदर्शिता  व प्रतिबधता  की विफलताओं को  तंत्र की  विफलताओं मे  प्रस्तुत करना  क्या  राजनितिक  अपराध  की  परिधी से  बाहर  हैँ !


विपती  के समय में की गयी लापरवाहियियां और संवेदनहीनता को अतित की  तुलनाओं से  विकृत सक्षयों  के  आधार पर  ढ़कने के  प्रयास  राजनितिक  अपराध के दायरे से छूट नहीं  पा  सकते !


खोगोलिय  घटनाओं से उत्पन  ग्रहण के  प्रभाव ने समाज का  वो  नुक्सान  नहीं  किया  जितना  राजनितिक घटनाओं से  सृजनित   ग्रहण के  द्वारा हुआ  है !


देश मे  व्यप्त विभिन्न समस्याओं के  समाधानों की खोज के  गंभीर प्रयासों  के विपरीत वर्ग विशेष  के  हितों की  रक्षा व संवर्धन के लिये निर्णयों  ने  जिस  तरह  एक  पक्षिय  लाभ की स्थिती  बनायी गयी  उसे नेत्रतव के किस  अवयव  मे  मे माना जाना  चाहिये !


अपने अज्ञांन  की आवस्था की  स्विकर्यता  से ही  अहंकार  से  मुक्त  हुआ जा  सकता  है  तभी स्वयं को  क्षमा  करने की  शक्ति  की  उबलब्धी हो  पाती  है ! 


राजनीती  मे  जो  स्वयं को क्षमा कर  सके  वही  द्वेश घृणा  लालसा से  मुक्त हो  कर  लोक्तांत्रिक उदेश्यों को  सार्थक कर  पाता  है ! 


लेकिन म्हत्वकांक्षा का  विकार ऐसा होने  नहीं  देता , तब पश्चाताप की  गुंजयिश भी नहीं  बचती !  


राजनीती मे अज्ञांन  और महत्वकांक्षा  आत्मघाती  कटारें  ही  सबसे  निर्मम घात करती हैँ !

कियूँकी  राजनीती  मे  अंतर्दृष्टी ही  सबसे  बडा  गुण  होती है , अंतर्दृष्टी  का  अर्थ  होता  है अपने को  दुसरे के स्थान  पर  रख कर  समझने की  क्षमता !  

लेकिन अधिकतर राजनितिज्ञ  खुद को  अन्याय से  पीड़ीत मानते  हैँ  इसलिये  अंतर्दृष्टी  से  वंचित  होते  हैँ !  इसी  लिये  सेवा की  बजाय  सता  उन पर  हावी हो जाती  है  और सरोकारों  से  नाता  टूट जाता  है !


लोकतंत्र की श्रेष्ठ  व्यवस्था व कार्यप्रणाली बोधिक  विकलांता के रोग मे  समाज  को अरजकता की  स्थितियों मे ही धकेलती है ! यही राजनितिक अपराध इतिहास में बार बार दर्ज होता  रहा है ! 

धृतराष्ट्र व दूर्योधन महत्वकांक्षा के इस  अपराध से  सदियों  बाद  भी मुक्त  नहीं  हो  पाये !


सरोकार की  मांग  को  विरोध व निन्दा मे  परिभाषित  करना  राजनितिक  शुचिता के दोगलेपन  की सत्यता  ही है !


जगदीप सिंधु 

लेखक  वरिष्ठ पत्रकार,  राजनीतिक विश्लेषक एव मीडिया प्रबंधन के क्षेत्र मे सक्रिय व्यक्तित्व हैँ  .

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