अशोक गोयल मँगालीवाला
आज अफगानिस्तान से आ रही महिलाओ और बच्चो पर हो रहे अत्याचार की खबरों को देखकर ह्रदय बड़ा विचलित सा हो गया और अनायास ही दिल में आया कि काश आज मदर टेरेसा होती तो शायद इनको मातृत्व का कोई सहारा मिल पाता। कम से कम इन महिलाओ का दर्द बांटने और समझने वाला कोई तो होता। मेरा मन जब भी अशांत होता हैं तो मैं अपनी श्री दादी सती मंदिर में आकर बैठता हूँ तो मानो मुझे वही वात्सल्य भाव का बोध होता हैं जिसको लेकर यह मंदिर और अस्पताल हिसार में बनवाया गया यहाँ के अपने लोगों के भले के लिए, उनके बेहतर स्वास्थ्य के लिए। तब जाकर यह बात समझ में आती हैं कि मदर टेरेसा का अपना होना कितने लोगो के लिए आश्रय का काम करता रहता होगा।
आज हिसार का या देश का कोई भी इंसान मंदिर में आकर उसी वात्सल्य का बेरोक टोक लाभ ले पाता हैं क्योकि दादी सती मां का प्रेम तो निश्छल निर्मल और अविरल हैं बारिश की बूँद की तरह। और ऐसे ही मंदिर प्रांगण से लगा हुआ अस्पताल लोगो को मुफ्त स्वास्थ्य वात्सल्य से अपने आपको दादी सती माँ के आश्रय में होने का बोध कराता हैं। हिसार की बेहतरी के लिए मैंने अपने अंदर के वात्सल्य को तो जागृत किया हैं और आज मैं अपनी माटी की सेवा करने के लिए अपने अंदर बसी मदर टेरेसा की आत्मीयता को साक्षात कर पा रहा हूँ ठीक वैसे ही जैसे मंदिर प्रांगण में बैठते ही मानो मेरे बालो पर माँ प्यार से हाथ फेर कर सेहरा रही हो। आज के समय सच में मदर टेरेसा का होना जरूरी हैं और काश हम अपने अंदर मदर टेरेसा के बसे हुए भाव को जन सेवा में लगाकर अपनी सही श्रद्धांजलि देते।
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