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शिवनगरी में रावण की भक्ति का है प्रभाव, नहीं जलते यहां रावण व उसके वंशजों  के पुतले  

शिवनगरी में रावण की भक्ति का है प्रभाव, नहीं जलते यहां रावण व उसके वंशजों  के पुतले  
जिस किसी ने जलाया वो बनता है काल का ग्रास, अब नहीं होती रामलीला, ना है कोई सुनार की दुकान



गौरव सूद 


लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया 


धर्मशाला।  बिनवा नदी के मुहाने पर बैजनाथ में भगवान भोलेनाथ का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है जोकि पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसके साथ ही खीरगंगा घाट भी मिनी हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध है। शिवनगरी बैजनाथ में आज भी रावण की भक्ति का प्रभाव देखने को मिलता है, यही कारण है कि यहां लगभग 5 दशकों से ना तो दशहरा पर्व मनाया जाता है और ना ही लंकापति रावण या उसके भाईयों के पुतले जलते हैं। किवदंती है कि आज भी बैजनाथ में रावण का मंदिर है जहां उसके चरण अंकित हैं व वह कुंड भी मौजूद है जहां लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने दसों सिरों को काटकर कुंड में जला दिया था। शिव नगरी बेशक भगवान भोलेनाथ के भक्त को भूल गई , लेकिन भगवान शिव अभी भी अपने अनन्य भक्त की भक्ति को नहीं भूल सक ते हैं। रावण की तपोस्थली रही बैजनाथ में इसका जीता जागता उदाहरण दशहरा पर्व है। पूरे देश भर मेंं विजयादशमी के दिन जहां दशहरे को धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं बैजनाथ एक ऐसा स्थान है जहां दशहरे के दिन रावण का पुतला तक नहीं जलाया जाता।  अगर कोई पुतला जलाता भी है तो वे अगले वर्ष दशहरे से पहले पहले काल का ग्रास बन जाता है या फिर उस पर या उसके परिवार पर कोई घोर विपदा आन पड़ती है।



वर्ष 1965 में जलाया गया था रावण का पुतला 



जानकारी मुताबिक वर्ष 1965 में बैजनाथ में एक भजन मंडली में शामिल कुछ बुजुर्ग व लोगों ने उस समय बैजनाथ शिव मंदिर के ठीक सामने रावण का पुतला जलाने की प्रथा शुरू की थी। इसके बाद भजन मंडली के अध्यक्ष की मौत हो गई तथा अन्य सदस्यों के परिवार पर घोर विपत्ति आई। इसके 2 साल बाद बैजनाथ में दशहरे के दिन रावण के पुतले को जलाना बंद कर दिया गया जोकि आज तक जारी है। इसके अलावा बैजनाथ से करीब लगभग 2 किलोमीटर दूर ठारू में कुछ वर्ष रावण का पुतला जलाया गया लेकिन वहां भी कुछ समय बाद दशहरा पर्व मनाना बंद कर दिया गया। इसके अलावा पपरोला के रेलवे स्टेशन परिसर में रामलीला का मंचन भी होता था जोकि पिछले कई सालों से बंद है।



नहीं है कोई सुनार की दुकान 



बैजनाथ में वर्तमान में करीब 800 दुकाने हैं, लेकिन सबसे विचित्र बात यह है कि बैजनाथ में कोई भी सुनार की दुकान नहीं है। माना जाता है कि यहां कोई भी सुनार की दुकान खोलता है तो उसका व्यापार तबाह हो जाता है। जानकारी मुताबिक यहां आज तक 2 बार सुनार की दुकान को खोलने का प्रयास किया गया, लेकिन दुकान चल नहीं सकी। हालांकि बैजनाथ से डेढ़ किलोमीटर दूर पपरोला में सुनार की दुकानें हैं जहां देर दराज इलाकों से लोग सोने, चांदी के जेवरात लेने आते हैं।
क्या कहते हैं मंदिर के पुश्तैनी पुजारी --
मंदिर के पुश्तैनी पुजारी धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि बैजनाथ नगरी लंकापति रावण की तपोस्थली रही है। उन्होंने बताया कि शायद इसी प्रभाव के चलते रावण का पुतला जलाने का जिसने भी प्रयास किया वह मौत का शिकार हो गया। यही कारण है कि बैजनाथ में दशहरे के दिन रावण का पुतला नहीं जलाया जलाया जाता है।


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