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मुझको मेरे बाद जमाना ढूंढेगा


अनिल कुमार द्विवेदी

लोकल न्यूज़ ऑफ़ इंडिया

मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश




    आए हो निभाने को जब, 

    किरदार जमीं पर.

    कुछ ऐसा कर चलो कि, 

    जमाना मिसाल दें...


हालांकि शोहरत की विजयगाथा" के श्रेष्ठता को लेकर सचेत स्तंभकारों को एक "मीडियाकर्मी"के रूप में समाज के 'पथ-प्रदर्शक शक्तियों' पर लिखना हमेशा लीक से हटकर होता है तथापि 'नाउम्मीद बनने की आकांक्षा' को झूठलाते, मन और मिजाज से अपनों के प्रति आंखों में निश्चल स्नेह लिए कुछ पथ-प्रदर्शको के लिए,अविश्वसनीय रूप से शब्दों की तिलस्मी फिसलन के बीच कलम अनायास ही चलने लगती हैं और शब्दों के इन्ही तिलस्मी फिसलन के बीच बरबस उमडते अकल्पनीय भाव अनायास ही अट्हास मारकर करुण क्रंदन करते हुए चित्कार उठते हैं कि-


        लिखना किसको कहते हैं, 

        पूछो उन फनकारों से, 

        लोहा काट रहे हैं देखो, 

       कागज की तलवारों से।


'हालात से उबरने की ताकत' के बीच कुछ इन्हीं उपलब्धियों का एक सबब कहे जाने वाले सन 1943 में चौहानपट्टी,मिर्जापुर में जन्मे 'फौलादी इरादों' से वशीभूत'श्री लालजी द्विवेदी"से प्रकृति के क्रूर कालचक्र ने न सिर्फ ग्यारह साल की अबोध अवस्था में पिता का साया छीन लिया अपितु 'आत्मगौरव से सुवासित' माँ,पाच बहनों के भरण पोषण के अतिरिक्त अनेक 'अकथनीय दुश्वारियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए'स्थानीय इन्टर कालेज में चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरी करके समाज के सूरज बनकर "व्यवस्था के बुलंद स्तम्भ" भी कहलाए.


"लगातार बढ़ते रुतबे, जिंदगी और काम को नए नजरिए से देखने की चुनौती के बीच 'श्री लालजी द्विवेदी' ने तथाकथित पिछड़े ग्रामीण परिवेश से प्रतिभाओं को तराशने की प्रक्रिया में समाज को न सिर्फ रुतबेदार 'सिविल सर्विसेज' से "तआरुफ" कराने का सफल बीड़ा उठाया अपितु परिवार से घनश्याम शुक्ला (आई.एफ.एस), अनुराग शुक्ला (ए.सी.एफ.),मनमोहन प्रसाद त्रिपाठी( हिण्डालको), सतीश चंद्र दुबे(प्रवक्ता),आशीष उपाध्याय(कम्प्यूटर इन्जीनियर), अनिल कुमार द्विवेदी (प्रधानाध्यापक जूनियर हाई स्कूल) को उच्च सरकारी सम्मानित पदों पर बैठाकर जीवंत समृद्ध संस्कृत की दिव्य झलक के साथ समाज के रसूखदार लोगों की फेहरिस्त में बड़ा उलटफेर करते हुए 'सर्वोच्च मुकाम' भी हासिल किया। 



समाज के हर वर्ग से बेहदआत्मीय संबंध बनाकर अपनी अलग पैठ बनाने"समाज के चमकते सूरज" के अस्त होते ही "नियति के महामिलन" के समय भक्त भगवान से एक बार फिर हार गया. तमाम पारिवारिक कोशिशों के वावजूद भब्य धार्मिक परम्परा के बीच परिवेश में एक विचित्र सन्नाटा छा गया, आखों में आशू लिए हर ब्यक्ति की बात ही छोडिये प्रकृति भी एक अलग तरह की बेचैनी लिए क्लान्त थी, एक बार फिर कहर बरपा,परिवार की आकाक्षाओ को झुठलाते हुए 'बुलंद पहचान लिए समाज का "दमकता सितारा" अपने उत्तराधिकारियों को 'भब्य पारिवारिक विरासत' सम्भालने की चुनौती देकर 11 नवम्बर 2021 दिन- गुरुवार को परम शून्य में विलीन हो गये...


और हम सबको अनाथ छोड़ दिये... ... 



"सामर्थ्य" नहीं मेरी आगे 

घटना कैसे जीवन करूं,

शब्दों की अपनी सीमा है

कैसे आदि व अन्त करू.


लेकिन कर्तव्य निभाता हूँ

कर्मयोगी का चिन्तन जिन्दाबाद रहे

हम सबके उपर अपने पिता का

स्नेहिल आशिर्वाद रहे.


"सहृदय विनम्र श्रद्धांजलि"🙏

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