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क्या बीरेन की होगी बलि?

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विजय शुक्ल 

मणिपुर सुलग रहा हैं और अब इसकी आग की तपन थोड़ी लोगों को भी महसूस हो रही हैं।  सरकार के साथ हुए समझौते अब तोड़े जा चुके हैं और इसकी तपन को समझने का काम किया सांसद पद से कानूनन हटाए गए एक कॉंग्रेस नेता राहुल गांधी ने। जो अब लोगों के लिए आम आदमी जैसा हैं जिससे केजरीवाल से लेकर केसीआर तक और ममता से लेकर मोदी तक कि भौंहे तनी रहती हैं। 


मणिपुर झुलसता रहा और मोदी की विदेशी महिमा मंडन वाली ख़बरों में इजाफा होता रहा और उसकी तारीफ कॉंग्रेस के या यू कहे कि प्रियंका गांधी वाड्रा के खास प्रमोद कृष्णन भी मोदी चालीसा पढ़ते रहे पर राहुल रोक के बावजूद भी लोगों से मिले उन लोगों से जिनसे उनका सुख चैन सब छिन चुका हैं। 


अब एक बार इस हिंसा के इफेक्ट के रूप मे मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे की अटकलें शुक्रवार को पूरे दिन लगती रहीं। शाम होते-होते बीरेन सिंह ने ट्वीट करके इस्तीफे की अटकलों को खारिज कर दिया। इससे पहले उनके घर के बाहर मुख्यमंत्री के समर्थकों ने जमकर हंगामा किया। बीरेन सिंह के इस्तीफे की फटी हुई कॉपी भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। 


 अब यह पहली  बार नहीं जब बीरेन सिंह के इस्तीफे को लेकर इस अकटकले लग रही हैं।बीरेन सिंह 2015 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा आए। दो साल बाद राज्य में चुनाव हुए और भाजपा सत्ता में आ गई। बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। 2022 में एक बार फिर भाजपा ने सत्ता में वापसी की। हालांकि, चुनाव जीतने के बाद अटकलें लगने लगीं कि भाजपा असम की तरह मणिपुर में भी किसी नए चेहरे को मुख्यमंत्री बना सकती है। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। बीरेन सिंह को ही दोबारा राज्य की कमान मिली। बीते अप्रैल में एक बार फिर बीरेन सिंह को हटाए जाने को लेकर खबरें मीडिया में आने लगीं। कहा गया कि उनकी पार्टी के विधायक ही उनके खिलाफ हैं। कई विधायकों ने सरकारी पदों से इस्तीफा दे दिया तो इन अटकलों को और बल मिला। लेकिन, बीरेन सिंह इसके बाद भी बने रहे। पिछले दो महीने से मणिपुर हिंसा की आग में झुलस रहा है। एक बार फिर मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह पर पद छोड़ने का दबाव है। शुक्रवार को राज्यपाल अनुसुइया उइके से उनकी मुलाकात की खबर आते ही चर्चा शुरू हो गई की मुख्यमंत्री इस्तीफा दे सकते हैं। इसके पहले रविवार को उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को मणिपुर के हालात को लेकर 18 पार्टियों के साथ सर्वदलीय बैठक की थी। बैठक में सपा और राजद ने मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग की थी। इसके अलावा सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने की भी मांग की गई थी। इसी वजह से इन अटकलों को और बल मिला। 


कुल मिलाकर अब बीरेन की बलि के नाम का इस्तीफ़ा महज खाना पूर्ति जैसा ही साबित होगा पर शायद इतना कमजोर मुख्यमंत्री अब मणिपुर को तो नहीं चाहिए वर्ना मणिपुर कश्मीर जैसा ही बनेगा और आपको यह लिख लेना चाहिए कि कोई मणिपुर फाइल्स बनाने वाला अनुपम खेर टाइप का नेता नहीं आएगा और ना ही कोई पीएम इसका प्रचार प्रसार करेगा क्योंकि सरकार डबल इंजिन की हैं और यात्रा अमृत काल की हैं। 


आपको पता ही होगा कि मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 43% आबादी रहती है। इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। आंकड़ें देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं।


वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की है। 


भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। 'लैंड रिफॉर्म एक्ट' की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़े हैं।


मौजूदा तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।  


इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।  


एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नगा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया। 


 मैतेई ट्राइब यूनियन पिछले कई सालों से मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने की मांग कर रही है। मामला मणिपुर हाईकोर्ट पहुंचा। इस पर सुनवाई करते हुए मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 19 अप्रैल को 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा था। इस सिफारिश में मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने के लिए कहा गया है।


कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी दर्जा देने का आदेश दे दिया। अब हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच केस की सुनवाई कर रही है।आरक्षण विवाद के बीच मणिपुर सरकार ने अवैध अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई ने आग में घी डालने का काम किया। मणिपुर सरकार का कहना है कि आदिवासी समुदाय के लोग संरक्षित जंगलों और वन अभयारण्य में गैरकानूनी कब्जा करके अफीम की खेती कर रहे हैं। ये कब्जे हटाने के लिए सरकार मणिपुर फॉरेस्ट रूल 2021 के तहत फॉरेस्ट लैंड पर किसी तरह के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक अभियान चला रही है।वहीं, आदिवासियों का कहना है कि ये उनकी पैतृक जमीन है। उन्होंने अतिक्रमण नहीं किया, बल्कि सालों से वहां रहते आ रहे हैं। सरकार के इस अभियान को आदिवासियों ने अपनी पैतृक जमीन से हटाने की तरह पेश किया। जिससे आक्रोश फैला।  हिंसा के बीच कुकी विद्रोही संगठनों ने भी 2008 में हुए केंद्र सरकार के साथ समझौते को तोड़ दिया। दरअसल, कुकी जनजाति के कई संगठन 2005 तक सैन्य विद्रोह में शामिल रहे हैं। मनमोहन सिंह सरकार के समय, 2008 में तकरीबन सभी कुकी विद्रोही संगठनों से केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन यानी SoS एग्रीमेंट किया।


इसका मकसद राजनीतिक बातचीत को बढ़ावा देना था। तब समय-समय पर इस समझौते का कार्यकाल बढ़ाया जाता रहा, लेकिन इसी साल 10 मार्च को मणिपुर सरकार कुकी समुदाय के दो संगठनों के लिए इस समझौते से पीछे हट गई। ये संगठन हैं जोमी रेवुलुशनरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी। ये दोनों संगठन हथियारबंद हैं। हथियारबंद इन संगठनो के लोग भी मणिपुर की हिंसा में शामिल हो गए और सेना और पुलिस पर हमले करने लगे।


कुल मिलाकर मणिपुर को समझना और सुलझाना दोनों जरूरी हैं वर्ना कश्मीर के साथ साथ पूर्वोत्तर में एक नया फ्रंट खुल जाएगा जो देश की आबोहवा और आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित होगा।

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