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विजय पथ-सम्पादकीय-लेख-खास रपट लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या कमल मोरारका की मौत के बाद उनके GDC LTD साम्राज्य को ठिकाने लगा रहे हैं उनके अपने

क्या (GDC Ltd)जीडीसी लिमिटेड प्रबंधन ने  लालच, भय और प्रतिशोध का इस्तेमाल किया कभी कमल मोरारका के सबसे विश्वासपात्र को  बेदखल करने में  विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  दिल्ली।   पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल मोरारका का नाम कौन नहीं जानता।  पर कोई सोच भी नहीं सकता कि  एक इतनी बड़ी हस्ती की मौत गुमनामी की दुनिया में कैसे हो जाती हैं ? ना कोई समाचार ना कोई खबर ना कोई राजनैतिक हलचल और ना ही व्यावसायिक।  सब कुछ ख़ामोशी से मानो निपटाया गया हो।   आखिर ऐसा क्या था कि गैनन डनकरले कंपनी  लिमिटेड के नाम से व्यापार की दुनिया में एक बड़ा नाम इतनी खामोशी से विदा कर दिया गया हो।  बस यही बात हजम नहीं हो सकी. क्योकि मेरी दो तीन बार की मुलाक़ात में कमल मोरारका जी को जितना मैं समझ सका था वो एक इंसान की सोच उसकी राजनीतिक समझ और समाज के प्रति उसकी संवेदनशीलता के लिए काफी था।  एक बेबाक चेहरा , सामाजिक शख़्सियत और किसानो के प्रति सजग रहने वाला इतना बड़ा कद और राजनीतिक रसूख रखने वाला इंसान अपने परिवार और व्यापार के लिए ठन्डे बस्ते में डालने वाला नाम तो नहीं हो सकता।  बस यही वजह थी कि  हमने कोशिश की थोड़ा सा समझने और आ

वाकिफ हूँ मिजाज से उसके तो ऐतबार कैसे हो .....

  वाकिफ हूँ  मिजाज से उसके   तो ऐतबार  कैसे हो  रंग बदलता है रहजन  हर मोड पे रहबर बन कर  ! हो गये  अपराध के  लिये  क्षमा  पश्चाताप  देता है , लेकिन  राजनीती मे किये गये  अपराध के लिये भविष्य भी क्षमा  नहीं  करता ! दायित्व से छुटकारा  इतिहास  नहीं  देता ! लेकिन एक चालाकी से भ्रम के प्रचार  को  हथियार  बना  कर  जो  इबारत  घढ़ी गयी  उसके  परिणामों  की  उपलब्धियां  समाधानों से  विमुख  वर्चसवादी सता की  राह पर चलने  लगें तो  समूहिक  समाजिक सजग चेतना को  विर्गिकृत घृंणा के अंधकार मे  ढ़केलना  राजनितिक  अपराध कियूँ नहीं   माना  जाना  चाहिये ! आवाम  के  दुख  और देश की  पीडा की  व्याख्या को  मनोरंजन के उत्सव  मे  परिभाषित  करना राजनितिक  अपराध की  श्रेणी से  किस  तर्क  के  आधार पर बाहर रखा जा  सकता है। नेत्रतव  की  दूरदर्शिता  व प्रतिबधता  की विफलताओं को  तंत्र की  विफलताओं मे  प्रस्तुत करना  क्या  राजनितिक  अपराध  की  परिधी से  बाहर  हैँ ! विपती  के समय में की गयी लापरवाहियियां और संवेदनहीनता को अतित की  तुलनाओं से  विकृत सक्षयों  के  आधार पर  ढ़कने के  प्रयास  राजनितिक  अपराध के दायरे से छूट नह

राजनीतिः अति महत्वाकांक्षाएँ लोकतंत्र के लिए घातक

  राजेन्द्र सिंह राजनीति में अतिमहत्वाकांक्षा लोकतंत्र के लिए सबसे खतरनाक है। उच्च पदों पर आसीन होने के लिये सतही तिकड़बाजी हमेशा जनहित को प्रभावित करती है। महत्वाकांक्षा का यह नजारा तब देखने को मिल रहा है, जब आम जनता कोरोना काल से बुरी तरह त्रस्त है। बेमौत मर रहे लोगों की अंतिम विदाई के लिए सामग्री तक न पा रही हो, ऐसी स्थिति में सत्तापक्ष एवं विपक्ष जब अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिये मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार कर स्वहित की बयार की हवा दे रहा हो तो निश्चित रूप से आमजन के लिये यह कठिन समय है, और इस दौर में चल रही इन बेमौसमी बयारों से सबका आहत होना स्वाभाविक है। समूचा देश कोविड-19 के प्रकोप के गंभीर रूप से पीड़ित है, लाखों लोग संक्रमित होने के साथ ही अपनी जाने भी गंवा चुके हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उ0प्र0 सहित लगभग सभी राज्य इस महामारी की चपेट में हैं। इस भीषण महामारी को रोकने में सरकारी संसाधन नाकाफी है। इस काल में सरकारी एवं निजी अस्पताल छोटे पड़ गये हैं, कोविड जांच, बेड की कमी और ऑक्सीजन की मारामारी से समूचा देश गंभीर दौर से गुजर रहा है। लॉकडाउन के बाद हालात पर थोड़ा काबू

ममता और मोदी में इन्तजार की कलह

विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  बंगाल मानो सियासी रण बन गया हो और कोई भी मौका सियासत का  भाजपा छोड़ना भी नहीं  चाहती हैं. आखिर आपदा में अवसर की योजना पर कमा करने की यह होड़ क्या वाकई भाजपाई नीति का हिस्सा बन गयी हैं या ममता का रवैया मोदी से टकराव का बन गया हैं।  बात प्रोटोकाल की जो हैं और अब ममता का कहना हैं कि  मोदी जी ने खुद उनका इन्तजार करवाया। पूरा मामला क्या हैं आइये उसकी क्रोनोलॉजी समझते हैं।  पीएम नरेंद्र मोदी को 30 मिनट इंतजार कराने का विवाद बढ़ गया है. टीएमसी सुप्रीमो और सीएम ममता बनर्जी ने दावा किया है कि उनको इंतजार कराया गया था. शनिवार को कोलकाता में पत्रकारों से बात करते हुए ममता बनर्जी ने दावा किया कि उन्हें पीएम मोदी से मुलाकात करने के लिए इंतजार करना पड़ा था. आज उन पर इंतजार कराने का आरोप लगाया जा रहा है. वहीं, राज्य के मुख्य सचिव आलापन बंदोपाध्याय को केंद्र बुलाने पर भी ममता बनर्जी ने मोदी सरकार की खबर ली. उन्होंने पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर बदले की राजनीति करने का आरोप लगाया. कोलकाता में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सीएम ममता बनर्जी ने मुख्य सचिव आलापन बंदोपाध्या

देशवासियों से मितरो तक वाला भारत

आज सत्तर साल पार बुढ़ापे वाले भारत में मैंने 38  साल वाले भारत को सुना। लगा मानो हमने मध्यमवर्गीय भारत से आज गरीब भारत की दहलीज तक आने का सफर तय कर लिया हो।  विकास की बयार के झूठे सपनो के बीच हमने अपना अस्तित्व खोने की एक युवा यात्रा का साक्षी बनने का गौरव नहीं दंश झेला हो।  यह तो सच हैं कि  नानी के घर ले जाने वाली इक्के तांगे  और बैलगाड़ी वाली दुनिया से कार तक आ गए पर हकीकत तो यह हैं कि  अब नानी के साथ मानो नानी के अपनेपन वाली दुनिया का वो समाज भी हमने खो दिया इन बयालीस सालो में।  राजीव के भाषण में किसान मजदूर , गरीब आदिवासी माँओ के देश या विदेश में रह रहे मर्द और बच्चे शब्द बहुत कुछ कह रहे हो या हमको बताना चाह रहे हो कि  एक समय था जब दस महीनो का सफर पंजाब से असम  तक को जोड़ने के साथ साथ शिक्षा नीति और देश नीति में बदलाव की घोषणाओं का था।  वो अलग बात हैं तब भाषण में पंडित जी और इंदिरा का होना लाजमी  था अब जैसे अटल जी का होना होता हैं।  पर पंडित जी से अटल तक का अपना एक सफर था।  शायद तब तक मध्यवर्गीय वालो का भारत ज़िंदा था और उनकी वजह से भारत के सपनो का देखा जाना भी।  आज के भारत को जब मैं अ

सरकारी अस्पतालों के पेंच कसने की जरूरत

आमजन झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज के लिए मजबूर, खुले ओ0पी0डी0 सेवाएं राजेन्द्र सिंह लखनऊ । उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के चलते सरकारी अस्पतालों की बंद पड़ी ओ0पी0डी0 चिकित्सा सेवाएं और कोविड-19 की जांच रिपोर्ट की अनिवार्यता से आम-जनमानस हलकान है। इलाज के अभाव में बीमार दम तोड़ रहे हैं और तीमारदार यह खौफनाक मंजर अपनी आंखों से देखने को विवश हैं। निश्चित रूप से देश एवं प्रदेश की जनता के लिए यह संकट की घड़ी है। सरकार के प्रयास इस कठिन समय में भले ही नाकाफी हो लेकिन जीवन को बचाने के लिए यही एक मजबूत आधार है संयम और हिम्मत के साथ कोविड गाइडलाइन का पालन और वैक्सीनेशन के प्रति जागरूकता ही संकट से उबरने का एक मात्र विकल्प है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेमौत मर रहे लोगों के मामले में आदेश, निर्देश के साथ कई बार तल्ख टिप्पणी भी की है और कहा है गांवो और छोटे कस्बों में चिकित्सा सेवाओं की स्थिति बद्तर है। आमजन को चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में रामभरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। उच्चन्यायालय ने 27 अप्रैल के आदेश के अनुपालन में 12 जिला जजों की नियुक्ति कर सबंधित जिलों की जमीनी रिपोर्ट तलब की है। अ

म्योरपुर ग्राम पंचायत से संगीता देवी पत्नी गणेश जायसवाल 35 मतों से हुऐ विजयी

  सन्तोष दयाल  लोकल न्यूज़ आफ इण्डिया म्योरपुर । म्योरपुर ग्राम पंचायत से संगीता  देवी पत्नी गणेश जायसवाल 35 मतों से विजयी हुई।    म्योरपुर  ग्राम पंचायत से कलावती देवी पत्नी दीपक सिंह को 35 मतों से हराकर विजयी हुऐ!

मुद्दा सोशल हैं : नेहरू प्लेस में एक महिला के ठीहे पर पुलिस की मुस्तैदी का राज आखिर है क्या ?

  विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  दिल्ली।  महिला सशक्तिकरण का महीना अभी बीता भी नहीं हैं पर एक मामला नेहरू प्लेस की महिला का ऐसा आया हैं जिसको देखकर तो पहली नजर में हर कोई यही कहेगा कि  यह सरासर नाइंसाफी हैं।  बाजार के यूनियन या संगठन बनते हैं लोगो की देख रेख के लिए पर क्या कोई मार्केट एसोसिएशन  का प्रतिनिधि इतना बड़ा हो सकता कि  वो एक महिला के खिलाफ खड़ा हो जाय? और क्या आदेशों और प्रतियो की कॉपी लेकर घूमती इस महिला के लिए कोई महिला संगठन या कोई महिला आयोग या कोई किरण बेदी सरीखी महिला पुलिस अधिकारी नहीं खड़ी होगी ? यह सब सवाल  शायद  इस महिला के जेहन में रोजाना गूंजते होंगे  और जबाब में उसके ठीहे पर बैठी पुलिस की टीम रोजाना होती हैं जिनका परम कर्तव्य उसके ठीहे पर रखे सामान को उठाकर फेकना और उसको दूकान ना लगाने देना होता हैं।  पर ऐसा क्यों ?  क्या यह महिला कोई संगीन अपराध कर रही हैं या सिस्टम से इसने बैर मोल ले लिया हैं ? जो भी हो इसका पूरा मामला समझने और समझाने की जरूरत बाजार एसोसिएशन को होनी चाहिए ना की अपने मन की बात के सहारे इसका उत्पीड़न हो।  अब आगे आपको अखबार  में आपको रोजाना इस महि

वनभूमि पर कब्जा अभियान को लेकर चले इट पत्थर ,फ़ारवाचर जख्मी , रेंजर बालबाल बचे बन कालोनी के बगल की घटना

  राजेश कुमार सिंह  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  बीजपुर , सोनभद्र। स्थानीय पुनर्वास स्थिति रेनुकूट बीजपुर मार्ग के उत्तर पटरी पर वन बिभाग के कालोनी के पास वनभूमि पर एक पक्ष द्वारा दीवाल बनाने को लेकर शनिवार को वनकर्मियों पर जम कर इट पत्थल चले । जानकारी के अनुसार पत्थल बाजी में वन बिभाग का एक फारवाचर जख्मी हो गया। गनीमत रही कि मौके पर पहुँचे वन रेंज अधिकारी मु० जहीर मिर्ज़ा इस पत्थल बाजी में बालबॉल बच गए। बाद में पुलिस को दी गयी सूचना पर मामला हाईप्रोफल होने के कारण रफादफा करा कर शांत कराया गया। बताया जाता है कि वर्तमान समय मे वनभूमि पर निर्माण कार्य की महामारी जैसी आपदा चल रही है। हर कोई कब्जा अभियान में नहाना चाहता है। इसी को लेकर पुनर्वास स्थिति एक चर्चित ब्यक्ति की वनभूमि में बढाई जा रही बाउंड्री को वन कर्मी रोकने पहुँचे थे। जहां सूचना पर रेंजर भी पहुँच गए और निर्माण हो रही बाउंड्री को गिराया जाने लगा फिर क्या था इसी बीच वन कर्मियों पर ईंट पत्थल चलने लगे जिसमे दुर्गा प्रसाद वन कर्मी के पैर में एक पत्थल लगने से वह जख्मी हो कर गिर गया। हलाकि बवाल बढ़ता देख कब्जा धारी मौका देख फरार हो गए। इसबा

कौन तय करेगा देशभक्ति का पैमाना

विजय शुक्ल  आज हर शख्श सवालिया निशान  के घेरे में हैं।  सत्ता सियासत से इतर पत्रकार हो या किसान या फिर आम आदमी सबके लिए कुछ ख़ास अलग अलग पैमाने वाली देशभक्ति की पैमाइश हैं जिसको तय करने वाले लोग शायद यह भी नहीं जानते की देशभक्ति हैं क्या बला।  क्या सिर्फ सोशल मीडिया पर या व्हाट्सप्प पर बड़ी बड़ी बाते लिखने वाले लोग चिलम चढ़ाकर यह तय करेंगे कि  देश किसका हैं ? अगर हमारे प्रधानमंत्री मन की बात करते हैं तो अच्छी बात हैं।  हमारे मुखिया को हम सबको सम्हालने सवारने का पूरा हक़ हैं।  पर अगर किसान भले ही किसी एक राज्य के जागरूक बन सड़क पर अपने मन की बात करने आये हैं तो उनके लिए कील ठुकवाना भी जायज तो नहीं कहा जा सकता।  संसद में अगर सांसद आये हैं तो उनको चुनने के पीछे लोकतंत्र ही रहा होगा उनके इलाके वाला भले वो पक्ष का हो या विपक्ष का।  पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल विहारी बाजपेयी जी का कथन की जिस देश में विरोध के स्वर को ना सूना जाए वह लोकतंत्र का कोई मायने नहीं शायद आज उन्ही की भाजपा वाली सत्ताधारी सरकार के लिए एक कहावत हैं।  मेरे लिखने का  कही से भी मतलब कांग्रेस , समाजवादी या आम आदमी पार्टी को स

नहीं रहे मोतीलाल वोरा , पत्रकार से मुख्यमंत्री पद तक सफर

विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  दिल्ली। मोतीलाल वोरा नहीं रहे।  चुनावी  कैंपेन के सिलिसले में उनसे कई बार मिलना रहा। अच्छे सुलझे हुए खजांची होने के साथ साथ सबकी सुनने की उनकी कला अपनापन तो देती ही थी।  उनका जीवन भी फ़िल्मी दुनिया सरीखा सा रहा मानो कोई रील चल रही हो।  राजस्थान में जन्म लेने वाले अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर से पढ़ाई करने वाले वोरा का राजनीतिक सफरनामा बड़ा ही अलग और रोमांचित करने वाला रहा है। चाहे वो  दुर्ग  से पत्रकारिता करते हुए पार्षद निर्वाचित होना और फिर विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बन जाना रहा हो या फिर  राज्यसभा सदस्य बनते ही वे केंद्रीय मंत्री पद से नवाजा जाना  सब दिलचस्प था।  कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार माने जाने वाले वोरा राजनीतिक शुचिता के लिए भी पहचाने जाते हैं।कांग्रेस वरिष्ठ नेता पूर्व कोषाध्यक्ष व मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा ने 92 वर्ष की उम्र में अस्वस्थता के चलते आज दिल्ली के निजी चिकित्सालय में अंतिम सांस ली।  गांधी परिवार के खासमखास थे वोरा और राहुल गांधी को आगे बढ़ाने में हमेशा अग्रसर भी  मोतीलाल वोरा राजनीति में आने से पहले

गिरते पारे पर अन्नदाता की बढ़ती फ़ौज

विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  दिल्ली।   वैसे तो ताली थाली और दिया जलाने वाली आम जनता  जिसमे सब शामिल रहे थे अपने पीएम के साथ क्योकि उनको लगता था कि  मंदिर की रार वो या कश्मीर की ३७० वाली चिंघाड़ मोदी जी ने सब निपटा दिया।  कही अदालत के जरिये तो कही बिल के जरिये। कुछ को पसंद आया कुछ को नहीं भी भाया पर सबने साथ दिया।  समय भी सही था कोरोना की कैद में इस तरह की एक दो कैद और सही। अब अगर कश्मीर के लोगो की बात करेंगे तो उनका दर्द तो वही जाने और उन्होंने ही झेला हैं सो हम यहां बैठकर उनके दर्द की टींस कत्तई नहीं महसूस कर सकते बाकी लोग  करते हैं तो यह उनकी कला हैं।  बहरहाल नागरिकता बिल के निपटारे के बाद मानो सरकार ने ठान लिया हो कि  अब वो सब कुछ निपटा देंगे क्योकि अगर लोगो की माने तो ना मकान बचा हैं और ना दुकान।  पर मीडिया वालो की माने तो सब चंगा हैं जबकि हर तरफ  पंगा ही पंगा हैं।  बहरहाल आज किसान बिल पर चारो तरफ शहादत से लेकर अन्नत्याग जैसा कार्यक्रम चल रहा हैं और टीवी पर सरकारी एजेंडे को सेट करती डिबेट्स भी।  अब रही बात किसानो की तो वो मस्त होकर बैठ गए हैं बॉर्डर पर।  रोटी , पिज़्ज़ा और पकौड़े

मोदी और किसानो के बीच फंसे भाजपाई

विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  दिल्ली . कितनी अजीब बात हैं आज मोदी जी के प्रति शत  प्रतिशत वफादार भाजपाई बड़ी असमंजस में हैं और मानो आगे कुआँ  पीछे खाई वाली कहावत इन्ही के लिए बनायी गयी हो।  एक तरफ जहां किसान बिल को लेकर किसान सड़क पर हैं और ज्यादातर  खेती किसानी से जुड़े लोगो के मोदी जी के पीछे पीछे भक्त तो बन गए पर आज जब वो अपने परिवार के लोगो को सड़क पर देख रहे हैं तो उनका साथ देना चाहते हैं और शायद दे भी रहे हैं।  वही दुसरी और सोशल मीडिआ पर धारदार पोस्ट करने वाले इन  भाजपाई रण बांकुरो के होश फाख्ता हैं और यह ना तो किसान बिल के समर्थन में लिख पा रहे हैं ना विरोध कर  पा रहे हैं।  क्योकि  विपक्ष में लिखे तो भाजपा सख्त  और पक्ष में लिखे तो किसान तल्ख।  अब ज़रा उनके बारे में सोचिये जो पंजाब और हरियाणा में हैं उन की हालत तो और खराब हैं क्योकि किसान उनके घर बार को ढूंढकर कही उनके चौखट पर तालाबंदी ना कर दे।  अब जिनको चुनाव लड़ना हैं वो ना तो पार्टी के विरुद्ध जा  सकते हैं और ना किसानो के।  बस वो इन्तजार कर रहे हैं कि  कोई करिश्मा हो और किसान वापस चले जाय क्योकि उनको यह पता हैं कि  मोदी जी तो

थोड़ी ज्यादा खराब हैं मेरी भाषा , हो सकता हैं यह मेरे माटी की तासीर बयान करती हो

                                                                                                                   फोटो साभार : अंबरीश कुमार  विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  दिल्ली।   अपनों की दुनिया में से एक और नाम कम हो गया।  उसकी देह अब माटी में मिल गयी पर उसकी रूह का करिश्मा मेरे जेहन में सदा के लिए वास कर गया। जी हाँ मंगलेश डबराल जी की ही बात कर रहा हूँ। एक मुस्कुराता चेहरा ठीक वैसा जैसे पहाड़ की खूबसूरती मुस्कुराती रहती हैं।  बड़े सरल और सहज वैसे ही जैसे उनके गाँव के पास से बहती मंदाकिनी और भगीरथ की निर्मलता।  आज वो बेबस याद आने लगे उनकी सीट के पास से दो बार चाय का कप लेकर मैं गुजरा और वो दौर शुक्रवार पत्रिका के प्रकाशन का मानो वापस लौट आया हो।  उनकी मस्त देवानंद सरीखी लहराती  चाल के साथ की विजय जी क्या  थोड़ी देर के लिए मैं आपकी बालकनी किराए पर ले लूँ.  इतना सहज मैंने और शायद किसी के साथ महसूस किया हो।  और जब बात वर्तनी और संसोधनो की आती तो मानो वो पहाड़ जैसे अटल खड़े रहते।  कोई समझौता नहीं और कोई गुंजाइश नहीं किसी भी प्रकार की गलती की।   आज किसी ने मेरी एक खबर पर मुझसे चर्चा में

निराला के लिए करुणा और परपीड़ा हरण थे धर्म के मूल तत्व

निराला के लिए करुणा और परपीड़ा हरण थे धर्म के मूल तत्व   डॉ. अरविंद कुमार शुक्ल   दु:ख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूं आज जो नहीं कही। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का व्यक्तिगत जीवन दुख का सागर है। बचपन में ही माँ का गुजर जाना, और युवावस्था में जीवनसाथी मनोहरा देवी का साथ छोड़ देना जिनके द्वारा श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन, ह्रदय भव भव दारुणम् को सुनकर निराला जी हिंदी की ओर आकृष्ट होते हैं। मनोहरा देवी के निधन से उत्पन रिक्तता वात्सल्य में तलाशते हैं 'आकाश बदलकर बना मही' किंतु महाकवि के साथ काल की निष्ठुरता का अंत कहाँ होने वाला था, 'कन्ये गत गतकर्मों का अर्पण कर, कर, करता मैं तेरा तर्पण। और यह अर्पण और तर्पण सूर्यकांत त्रिपाठी के जीवन का स्थाई भाव बन जाता है। जो कुछ भी है, दूसरों के लिए अर्पित। बचपन में मां का साया छूट गया था, इसलिए मात्र बेटा संबोधन से मोहित हो वृद्धा को जाड़े में अपनी रजाई दे देते हैं और 300 रुपये में से 100 रुपये साहित्यिक मित्र को, 60 रुपये परीक्षार्थी को और 40 रुपये का मनीऑर्डर जरूरतमंद को। यह है सूर्यकांत त्रिपाठी की शून्य साधना।     अंतिम जन के लिए सब कुछ सम

दशानन ने नहीं बल्कि उसके इस सौतेले भाई ने बसाई थी सोने की लंका

दशानन ने नहीं बल्कि उसके इस सौतेले भाई ने बसाई थी सोने की लंका   पंडित विनय शर्मा  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया    हरिद्वार . रामायण  से जुड़ी कहानियां तो हम अकसर ही सुनते आए है. रामायण ने हमें राम की विजय, एक आदर्श पुत्र, पति, भाई, और प्रशासक, योद्धा, रावण, बहु-प्रधान असुर राजा पर अद्वितीय, की जीत के बारे में बताया. लेकिन आज रामायण से जुड़े उस सम्राट की बात कर रहे है जिसके बिना रामायण की कहानी अधूरी रह जाएगी. हम बात ककर रहे लंका के सम्राट जिनके पास और भी बहुत कुछ है जो आंख से मिलता है. एक जटिल चरित्र जो एक धर्मनिष्ठ राजा था, उसे अक्सर खलनायक के रूप में अद्वितीय माना जाता है. ज्यादातर देशों में वह सीता का अपहरण करने वाले और युद्ध शुरू करने वाले खलनायक के रूप में दागी जाती है, जिसका दुरुपयोग करने वाला एक क्रूर दमनकारी शासक ज्ञान और वरदान है. फिर भी श्रीलंका में रावण की अलग राजा और मानव की छवि है. उन्हें भगवान शिव का एक महान अनुयायी, एक महान विद्वान, एक योग्य शासक और अवन का एक उस्ताद, रावणहत्था के रूप में जाना जाता है.  वहीं रामायण में स्वर्ण नगरी लंका का अद्भुत वर्णन किया गया है. कहा जाता है क

जाने दुनिया की सबसे रहस्यमय द्वीप, जहां साल में केवल एक दिन जाते हैं लोग

जाने दुनिया की सबसे रहस्यमय द्वीप, जहां साल में केवल एक दिन जाते हैं लोग       अंजलि यादव  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  दिल्ली. प्रकृति का अद्भुत नजारा देखने के लिए या अक्सर लोग छुट्टियां बिताने के लिए किसी न किसी आइलैंड पर चले जाते हैं. क्योंकि आइलैंड की खूबसूरती ही ऐसी होती है, जो लोगों का मन मोह लेती है. लेकिन आज हम आपको दुनिया के ऐसे आइलैंड के बारे में बताएंगे, जो रहस्यों से भरा है. सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि इस आइलैंड पर आने के लिए लोगों को साल में सिर्फ एक दिन की इजाजत मिलती है. द्वीप को नक्शे में ढूंढ पाना मुश्किल दरअसल, हम बात आइनहैलो द्वीप की कर रहे हैं, जो स्कॉटलैंड में स्थित है. दिल के आकार का यह द्वीप इतना छोटा है कि इसे नक्शे में ढूंढ पाना भी बेहद ही मुश्किल है. आइनहैलो आइलैंड को लेकर कई तरह की रहस्यमय कहानियां भी प्रचलित हैं. ऐसी मान्यता है कि इस द्वीप पर भूत-प्रेत समेत शैतानी ताकतें बसती हैं। ये ताकतें इतनी शक्तिशाली हैं कि जो भी अकेले या छोटे समूह में द्वीप पर जाने की कोशिश करे, वो गायब हो जाता है. बुरी आत्माएं होने की मान्यता स्कॉटलैंड में खासकर ऑर्कने के लोगों में ऐस

जाने पटना कॉलेज में किसके के समर्थन से जीते थे लालू

जाने पटना कॉलेज में किसके के समर्थन से जीते थे लालू अंजलि यादव  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया  दिल्ली।  जैसा की सभी जानते है की बिहार में विधानसभा चुनाव 2020 को लेकर जोरदार तैयारी चल रही है. वही हम बिहार के चुनाव को देखते हुए बिहार के रोचक चुनावी किस्‍सों के साथ पेश हुए हैं. जैसा की सभी जानते है की लालू प्रसाद यादव अपने चुटीली बातों और अपने मनमोहक भाषा शैली के लिए चर्चित हैं. वहीं उनकी अपनी पार्टी राष्‍ट्रीय जनता दल की कांग्रेस से दोस्ती है. लालू को भाजपा के धुर विरोधी नेता के रूप भी पहचाना जाता है. तो आइए आज हम जानेंगे की कॉलेज में ABVP के समर्थन से जीतने के बाद राजनीति में आपने कदम रखने सफर तक कैसे पहुंचे थे. समाजवादी आंदोलन से राजनीति की शुरूआत करने वाले लालू के बारे में खास किस्‍सा ये भी है कि छात्र राजनीति में उन्‍हें बड़ी जीत 1973 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के समर्थन से मिली थी. ठीक इसी तरह सूबे की राजनीति में उन्‍हें बड़ा ब्रेक भी 1990 में भाजपा के समर्थन से मिला था, जब जनता दल  के नेतृत्‍व वाले संयुक्‍त विधायक दल के नेता के रूप में उन्‍हें बिहार का मुख्‍यमंत्री बनने का म

महाराजा ने ना की होती मदद तो विदेश में नहीं पढ़ पाते बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर 

महाराजा ने ना की होती मदद तो विदेश में नहीं पढ़ पाते बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर  अंजलि यादव  लोकल न्यूज ऑफ इंडिया    दिल्ली. ये बात तो सभी जानते है कि भारत रत्न से नवाजित डॉ. भीमराव आंबेडकर का दलित समाज के उत्थान और उन्हें जागरुक करने में बहुत बड़ा योगदान हैं. और साथ ही यह भी की बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव से जूझते हुए विषम परिस्थितियों में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपनी पढ़ाई शुरू की थी. जब डॉ. भीमराव आंबेडकर युवा थे, तो उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना था. ऐसे में उनके सामने आर्थिक संकट एक बहुत बड़ी समस्या थी. तो आइए जानते है की कैसे देश के महान हस्ती ने अपने जीवन में किन-किन परिस्थितिओं का सामना करके अपनी उच्च शिक्षा प्रप्त की थी. कोलंबिया यूनिवर्सिटी से चाहते  थे पढ़ना बता दें कि युवा भीमराव आंबेडकर अपनी स्नातकोत्तर पढ़ाई कोलंबिया यूनिवर्सिटी से करना चाहते थे. उनके विदेश में पढ़ने के सपने को साकार करने के लिए एक महाराजा ने मदद की थी. हाल ही में करेंट अफेयर्स पर आधारित रियलिटी शो कौन बनेगा करोड़पति में हॉट सीट पर बैठे एक प्रतियोगी से यह सवाल पुछा गया था. हालांकि प्रतियोगी के लिए इस

प्रणाम बापू ! बापू  तो हमारा  इम्युनिटी सिस्टम थे जिसकी आज देश को बहुत जरूरत हैं - फौज़िया अर्शी 

प्रणाम बापू ! बापू  तो हमारा  इम्युनिटी सिस्टम थे जिसकी आज देश को बहुत जरूरत हैं - फौज़िया अर्शी    फोटो :गूगल से साभार  विजय शुक्ल  लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया  दिल्ली।   आज बापू दिवस हैं। और आज शायद बापू की कमी सबसे ज्यादा खाल रही होगी तो उन लोगो को जिन्होंने बापू को जरूरी समझा हैं उन नासमझ अंधभक्तो को जो राष्ट्रवाद की अफीम में अभी डिजिटल हो रहे हैं उनको तो नाथूराम गोडसे ही अच्छे लगेंगे।  मेरी आपत्ति कोई गोडसे के अस्तित्व में होने या न अहोने से नहीं हैं और ना राष्ट्रभक्ति से हैं पर जिस तरह से आज राष्ट्रभक्ति की आड़ में बलात्कार का व्यापार चल रहा हैं इससे हैं।  क्योकि मैं भी एक बेटी का बाप हूँ अपनी बहनो का भाई हूँ ।  जानता हूँ की बेटियां क्या मायने रखती हैं और बहनो की राखी का हमारी कलाई में क्या महत्व होता हैं? मैं कोई ब्राह्मण संगठन बनाकर, दलित सम्राट बनकर , मौर्य वंशज होने का दावा करके सरकार के लिए सत्ता की हनक के लिए समाज को अपने चंगुल में फंसाने वाला नहीं हूँ और ना ही सत्ता की चापलूसी को स्वीकारने के लिए बाध्य।  अगर सच में मोदी जी महात्मा हैं तो अपनी पार्टी के अंदर बलात्कारी , छेड़छाड़ करने